संस्मरणः मैथिली कवि सुन्दर झा शास्त्री आ कवि धीरेन्द्र (नेपाल)
काल्हि विश्व कविता दिवस थीक। विराटनगर (नेपाल) मे सिर्जनविन्दु द्वारा एहि अवसर पर एक साहित्यिक आयोजन राखल गेल अछि। नेपाली, नेवारी, मैथिली, उर्दू, मारवाड़ी आदि विभिन्न भाषाक दिवंगत कवि लोकनिक कालजयी रचना सबहक प्रस्तुति वर्तमान समयक कवि लोकनि द्वारा कैल जेबाक अछि।
एहि आयोजन मे मैथिली कविताक प्रस्तुति प्रवीण नारायण चौधरी, कर्ण संजय एवं शिव नारायण पण्डित ‘सिंगल’ आदि मैथिली कवि लोकनि द्वारा कैल जेबाक अछि। नेपालक मिथिला मे ओना तऽ अनेकानेक कवि मैथिली भाषा मे हजारहुँ वर्षक इतिहासक संग साहित्यिक योगदान कएने छथि, परन्तु समकालीन युव मे किछु नाम अत्यन्त महत्वपूर्ण अछि, डा. धीरेन्द्र, सुन्दर झा शास्त्री, रमाकान्त झा, जीवनाथ झा, मथुरानन्द चौधरी माथुर, प्रताप नारायण झा, चन्द्रशेखर लाल शेखर, आदि जे आब एहि लोक मे सदेह नहि छथि परन्तु हिनका लोकनिक कालजयी रचना आइयो जीबित अछि। तहिना मध्यकालीन युग केर विद्यापति आ मल्लकालीन नेपाल मे सैकड़ों रचनाकार केर होयब नेपाल मे मैथिली साहित्यक गहिंराई केँ प्रखर सूर्य समान झलकाबैत अछि। विराटनगर मे सेनवंशीय राजाक समय मे मोरंग पर लिखल अनेको मैथिली काव्य सँ वर्तमान समय धरिक राम नारायण सुधाकर समान दिग्गज मैथिली कवि लोकनि एहि परंपरा केँ आरो बल दैत अछि जे मैथिली नेपाल मे सुरक्षित आर संरक्षित रहैत आयल अछि। अनेकानेक महत्वपूर्ण पाण्डुलिपि सब नेपालहि मे सुरक्षित भेटल जे मिथिलाक बौद्धिक सम्पदा केँ आधुनिक समय मे सप्रमाण प्रस्तुत केलक अछि।
आउ, एतय कवि धीरेन्द्र व सुन्दर झा शास्त्रीक दुइ रचना साभार ‘विदेह’ केर आर्काइव मैथिली जिन्दाबाद केर पाठकवर्ग लेल राखीः
मानस-धरती व्यर्थे कोड़ह
किछु भाव-कुसुम व्यर्थे लोढ़ह।
किछु नाहक चारण-भाट जकां,
स्तुतिगान करति लाजो छोड़ह॥
ककरासँ करबह तों अरारि॥कवि.॥
सोझे पुछैत अछि अज्ञानि।
केओ भक्ति-भावसँ गीत रचय
कवि सूर-बिन्दु सन विज्ञानी॥
से कवितेके दय रहल गारि॥कवि.॥
वन भेल घरक लगहक बाड़ी।
महगी अछि ऊंच अकाश चढ़ल
खायब दुर्लभ अछि तरकारी॥
कत जनके देत जान मारि॥कवि.॥
राजर्षि जनक हरबाह बनल।
बनमे जे पोसल पूर्व गाय-
से कृष्ण जकाँ चरबाह बनल॥
शरिगर भूमे फाटल दराड़ि॥
तोरा संग बजैत छी
खा’ लै’ छी तोरा संग–दू खिल्ली पान!
तेजी सँ चलै छी,
जोरसँ बजै छी,
रहैत अछि ठोर पर हरदम मुस्कान!
सहि लेब अवज्ञा फेकल नूर जकाँ?
बदलि गेल रंजक होएत ने अवधान?
हँसी देखलह अछि,
चंचलता देखलह अछि,
नोर आ बिहाड़िकें घोंटि पीबि जाइ।
डुबा दी व्यष्टिक चिन्ता समष्टिक समुद्रमे!
मोन नहि छल जे समुद्रक पानि नोनगर होइछ
पियास ओ मिझाओत नहि।
मुदा नमस्कार बन्धु!
(बिना बुझने बिहाड़िक पूर्वक शान्ति,
बिना बुझने मित्राताक पण्डुकीक हत्या।)
किन्तु गप्प एतबे जे मनुक्ख मरि गेल,
ई जकरा देखैत छह–ओ थिक मशीनी आदमी।