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मधुकर बाबाक रचना विद्यापति समान जन-जन केर कंठ मे – मधुकर महोत्सव चैनपुर

चैनपुर, सहरसा। २१ जनवरी २०१९. मैथिली जिन्दाबाद!!

चैनपुरक प्रसिद्ध नीलकंठ महादेव मन्दिर परिसर मे बीतल शनि दिन १९ जनवरी २०१९ केँ गुरु मधुकर महोत्सव केर रूप मे भोरुक रथयात्रा सँ लैत अबेर संध्या धरि कइएक सत्र मे साहित्यिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक कार्यक्रम सभक आयोजन कयल गेल।

देवाधिदेव महादेव केर महान भक्त एवं कवि-साहित्यकार पंडित मधुकर झा उर्फ मधुकर बाबाक ९५ जयन्ती दिवस पर राखल गेल आयोजन मे पूर्व विधायक संजीव झा, मैथिलीक वरेण्य साहित्यकार राम चैतन्य धीरज एवं अरविन्द मिश्र नीरज, शैलेन्द्र शैली, मिथिलाक्षर शिक्षा अभियान केर अभियन्ता पारस कुमार झा, समाजसेवी सुमन खाँ समाज, सुभाषचन्द्र झा, डा. भास्कर राय, सुखदेव ठाकुर, डा. कुमर कान्त झा, मुखिया सोनी देवी ठाकुर, समाजसेवी दीप नारायण ठाकुर, विकास मिश्र, पंकज झा, रामफूल मिस्त्री, दिलीप कुमार, निर्मल मिश्र, आदि भाग लेलनि।
मधुकर बाबाक जन्म १९ जनवरी १९२४ केँ भेल छलन्हि, मृत्यु २६ अप्रैल २०१७ केँ भेलनि। ओ अपन आजीवन समय मे शिक्षक होयबाक अतिरिक्त साहित्य सेवा आ महादेव सेवा मे लगौलनि। हुनका विद्यापतिक दोसर अवतार सेहो मानल जाइत छन्हि। हिनकर कतेको रास भजन जन-जन केर कंठ मे ओहिना सुशोभित होइत अछि जेना महाकवि विद्यापति केर। हिनकर रचना मे समाज सौगात, मधुकर पदावली, आदि मुख्य छन्हि।

महोत्सवक अध्यक्षता शम्भूनाथ झा सांवरिया केलनि। संचालन डाॅ0 कुमुदानन्द झा प्रियवर द्वारा कयल गेल। रामचैतन्य धीरज – बाबा मधुकर मैथिली साहित्यिक शब्दक शिल्पकार छलाह। कवि नीरज – लोक भाषा केँ लोककंठ मे पहुंचाबैय केर श्रेय विद्यापतिक बाद बाबा मधुकर केँ देलनि।

रामफूल मिस्त्री गुरु मधुकर केर महोत्सव केँ स्मृति मे अनैत कहलनि अछिः

अद्भुत मधुकर गाथा

हे गुरुवर मधुकर उत्प्रेरक अछि,
अपनेक अद्भुत गाथा।
हम अज्ञानी किछु पौने छी,
प्रेरित छी जनिकय अद्भुत गाथा।।१।।

हम व्यथित जन – संकुल केॅ॑,
अपनेक छोड़ल नश्वर काया।
मुदा सद्वाक्य विचरैत अति,
जे दय गेल अछि ओ काया।।२।।

हम मधुकर – प्रेरित पथ पर,
चलबाक करब हम चेष्टा।
‘भारतप्रेमी’ कृपावदान करु,
हे गुरुवर, नहि करब कुचेष्टा।।३।।

अपर विद्यापति मधुकर जयन्तीक अवसर पर आयोजित एहि महोत्सव मे कतिपय विद्वानक उद्बोधन सॅ॑ महोत्सव अविस्मरणीय बनि गेल।वरुणजी, कुमुदानन्दजी, पंकजजी, सत्येन्द्रजी आ राजूजीक अथक प्रयास फलीभूत भेल। उपर्युक्तसहित पारसजी, शैलीजी, मनोजजी आदिक सान्निध्य साहित्यिक ऊर्जा बढ़ौलक।

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