गीतः
– प्रवीण नारायण चौधरी
एक घर के कथा यौ भैया – लड़ैत दुइ दियादिनीक बात
नहि विस्मय जे घर-घरके – टटका एहने हाल!!
बड़की बुझाबथि छोटकी दियादिनी, पर्दा प्रथा आ लाज
छोटकी मचैककय देथि जबाब जे, ई नहि लागत पार!!
आर छोटकी केना सम्हरल जबाब देली से सुनियौ…
साड़ी भारी नहि चाहै छी, ई हुनको नै नीक लागै छन्हि
हम नै पुरनकी कनियाँ, मॉडले ठीक लागै छन्हि
नहि पहिरब हम चुड़ी लहठी, या नहि हँसुली-अशर्फी
नव जमाना नया जे फैशन, पहिरब से सरशर्ती
रंग बिरंगी कानके झुमका, केश कटिंगर लटकेर ठुमका
ई सब दियर पसीन करय छन्हि,
हम नै पुरनकी कनियाँ, मॉडले ठीक लागै छन्हि
पहिरब हम त टाइट जीन्स आ तय पर छोटकी टॉप
घूमय जायब शापिंग मौल आ करब रौक हिपहॉप
बनल रहब हम छौंड़िये सब दिन, नित नवेनव फैशन सब दिन,
माडर्न पिया अपील करय छन्हि,
हम नै पुरनकी कनियाँ, मॉडल ठीक लागै छन्हि
नहि तानल हैत घोघ फोग, नहिये कैल होयत लाज
ससुर डैडी भैंसूर भैया, लेबनि सभक साथ
छोड़थु ईहो पुरना तरीका, सिखथु सबटा नव सलीका
भैयाकेँ सेहो नीक लगय छन्हि,
हम नै पुरनकी कनियाँ, मॉडले ठीक लागै छन्हि
राखब गर्भ जाधरि बच्चा केँ, सुतले रहब बेड
अस्पताल सीजर जन्मायब, नो टेंसन बट रेस्ट
बच्चा सेहो दाइये पोसत, के छूअत ओ हगल-मुतल
नव युग यैह रीत चलय छन्हि,
हम नै पुरनकी कनियाँ, मॉडले ठीक लागै छन्हि
हरिः हरः!!