बन्दन वर्मा, सहरसा केर फेसबुक पोस्ट सँ साभार –
सहरसा जिलाक सत्तरकटैया प्रखंड अन्तर्गत लछमिनियाँ गाम मे एकटा चित्रकार-कलाकार अत्यन्त साधारण मजूरी पर जीवन-निर्वाह कयनिहार लेकिन संकल्पशक्ति सँ अत्यन्त महान व्यक्तित्व ‘भोगेन्द्र शर्मा निर्मल’ द्वारा ‘विद्यापतिधाम’ केर कृत्ति पर बन्दन वर्माजी द्वारा लिखल किछु पाँति हिन्दी मे बहुत मार्मिक, सटीक आ प्रेरणास्पद अछिः
बन्दनजी लिखैत छथिः
“साधना एक कलाकार की …..
बिहार के सहरसा जिला मुख्यालय से सटे सुदूर देहात लक्ष्मीनिया गाँव में जब तीन वर्ष पूर्व मिथिलांचल के युग पुरुष विद्यापति के सम्मान में ” विद्यापति धाम ” ने मूर्त्त रूप लिया तो अनायास ही लोगो का ध्यान उस फटेहाल कलाकार की ओर आकृष्ट हुआ जिसने होश संभालने के साथ ही पतनोन्मुख मैथिल संस्कृति और उसकी लोकप्रिय भाषा मैथिली को पुनः पहचान और सम्मान दिलाने के लिये अपना पूरा जीवन ही समर्पित कर दिया था . बीते तीन वर्षों में विद्यापति धाम की खूबसूरती , उसकी सृजनशीलता और उसकी लोकप्रियता की वजह से हौसला , जज्बा और संभावनाओं से लबरेज और पेशे से चित्रकार इस सनकी और फटेहाल कलाकार भोगेन्द्र शर्मा आज किसी परिचय का मोहताज नहीं रहा .
मगर भोगेन्द्र शर्मा वो नाम नहीं जो एक कदम की दूरी तय करने को ही अपनी मंजिल समझ सुस्ताने लगे . वो इसीलिये कि शुरू से ही तंगहाल जिंदगी से जूझते इस फटेहाल कलाकार की कल्पनाशीलता ने विद्यापति धाम की स्थापना के बाद फिर से एक और नयी सनक को पाल लिया था .
दरअसल मिथिला और मैथिली के लिये समर्पित भोगेन्द्र ने अबकी बार मैथिली को ही मूर्त्त रूप में ढ़ालने की साधना शुरू कर दिया . फिर इस सनकी कलाकार की सनक और साधना के साथ – साथ उसकी प्रतिबद्धता ने एक भव्य और कलात्मक आकृति का मूर्त्त रूप लेना शुरू कर दिया . आज भोगेन्द्र शर्मा के सामने पंद्रह फीट के माँ मैथिली अर्थात जानकी , वैदेही , जनकनन्दिनी या फिर माँ सीता की आदमकद प्रतिमा अपने अस्तित्व में आ चुकी है जिसे उन्नीस नवम्बर के विद्यापति धाम स्थापना दिवस से पहले अंतिम रूप देने के लिये ये सनकी कलाकार पागलों की तरह दिन – रात एक किये हुए है .
सलाम भोगेन्द्र ; तुझको बारम्बार सलाम …..
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