चुन्नू बाबुक कूकी डार्लिंग
(दहेज लेल आइएएस दूलहाक मार्मिक कथा)
आइ चुन्नूजी घरवाली केँ प्रसन्न करबाक लेल भोरे सँ जी-जान एक केने छलाह। सुति-उठि ओ एकदम फिल्मी स्टाइल मे हिन्दी गीत गुनगुनाइत किचन जाय अपनहि सँ चाय बना कप आ प्लेट सहित ट्रे मे दु-चारि ब्रिटानिया मारीगोल्ड केर बिस्किट सहित अपन शयनकक्ष मे प्रवेश करैत सूतल कनिया केँ उठेबाक लेल आवाज देलनि – “डार्लिंग! उठू-उठू! देखू अहाँक वफामे पागल दीवाना-मस्ताना चुन्नू चाय सहित चरणक गुलाम बनि ठाढ अछि।” कनिया सेहो हाफी लैत आँखि मुननहिये अपन दुनू बाँहि पसारैत चुन्नूजी केँ अपन आगोश मे समेटबाक आमंत्रण केली, चुन्नूजी हड़बड़ाइत-गड़बड़ाइत कोनो हिन्दी फिल्म मे एहेन मर्म सँ भरल दृश्य नहि देखि सकबाक बा कि यादि मे नहि रहि जेबाक कारणे कोहुना-कय चाय-बिस्किट ट्रे कात मे राखि अल्हड़ जेकाँ ओहि आमंत्रण केँ स्वीकार करितथि ताबत धरि कनिया कूकी-रानीकेँ क्रोध फेर हाइ भऽ गेलनि। एम्हर बेचारे चुन्नूजी हुनकर ओहि बाँहि मे पैसबाक लेल प्रयास करय लेल जान-प्राण छोड़ि झुकले छलाह कि चारि पलटनिया उनटा दिशा मे घुसकैत कूकी रानी हुनका पलंग पर मुहे भरे खसाकय दिनक शुभ-शुरुआत कय देलखिन। ताहि ऊपर सँ कूकी-रानी आँखि गुरारैत बजलखिन जे “कि अहुँ एखन धरि पुरनका हिरो सब जेकाँ रेस्पान्स करैत छी… अरे! आइ-काल्हिक हिरो जेकाँ क्वीक बनू न चुन्नूजी! लल्लू!!” बेचारे, एक तऽ मुँहे भरे खसला आ ताहि ऊपर सँ कनियाक उलहन! लेकिन आइ चुन्नूजी कनियाकेँ प्रसन्न करबाक कसम जे खेने छलाह! सम्हैर कय उठलाह आ कहलखिन, “अरे छोड़ू कूकी डार्लिंग! देखु हम अहाँ लेल कतेक एक्सिलेन्ट क्लास के चाय बनेलहुँ।’
दुनू गोटा ओतय सँ गार्डेन आबि गेला। चायक चुस्की लैत स्लिपींग गाउन मे कूकी बजली, “तऽ एहि विकेन्ड मे अहाँ हमरा कतय घुमायब लल्लू डार्लिंग?’ लल्लू नाम सुनिकय चुन्नूजी केँ भितरे-भीतर कूही होइत छल, मुदा कूकी कतेक पैघ बापक बेटी आ कोन हिसाबे हुनकर बाप सँ पाइ गनाकय चुन्नू बाबुक बियाह भेल छल, ई सब सुमिरैत बस चुपचाप वर्दाश्त करैत बनावटी हँसी आनैत जबाब देलखिन, “कहू न कूकी! कतय घूमबाक इच्छा होइत अछि?’ कूकी केहुनी सँ ठुनका मारैत कहलखिन, “सचमुच अहाँ लल्लूक लल्लूवे छी। अरे! ई शहर कोनो हमर छी जे हम कहब? अहाँ कहू! पहिने खूब घूमैत होयब। कोन जगल लऽ चलब?” चुन्नूजी केँ आब विश्वास होमय लगलैन जे कूकीक सोझाँ ओ लल्लू छथि आ एहि मे कल्याणो अछि, “हेँ-हेँ-हेँ! कूकी! हम सब साधारण किसानक….”, “नहि चलत ई किसानपंथी हमरा लंग… ओहिना नहि हमर बाबु एकटा आइएएस संग बियाह करौलनि… बिसैर जाउ जे अहाँ किसानक बेटा छी आ गामक गँवार छी… आब जेना हम कहब बस तहिना…”, “हँ-हँ! ताहि मे कोनो दिक्कत नहि।” वाद-विवादकेँ अन्त यैह कहैत भेल जे आइ शहरक सब सँ बड़का सापिंग-मौल मे घूमब आ सिनेमा देखि वापस आयब।
एक किसानक बेटा विद्याबल सँ – लगनसँ आ मेहनतसँ आइएएस अधिकारी बनिकय एकटा जिलाक मालिक बनि गेल अछि। ओ कलक्टर साहेब बनिकय पूरा जिलाक सब निकायक हाकिम बनल अछि। मुदा ओकर सम्मान एक कूकीक आगाँ कोना फूकी होइत छैक ई लेखक आ पाठक केर बीचक रहस्य रहय दियौक। आउ देखी! आगाँ कोना घुमाइ होइत अछि। कूकी अपना केँ पूर्णरूपेण आधुनिकताक मेकप मे ढालि चुकली। चुन्नू कतबो श्रृंगार करता तऽ अपन गौंआँ छाप कतय जायत, बस कीमती पैन्ट, ताहि पर बेशकीमती कमीज आ केश थकैर कय डिजाइनदार स्टाइल मे कौलर सरियबैत – चमकैत जूता धारण कय फटाफट रेडी भऽ गेल छथि।
जोड़ीक कल्पना करू – कतय देवानन्द आ कतय काजल अग्रवाल! ड्राइवर गाड़ी निकाललक आ पहुँचि गेला दुनू गोटे बाजार। पहिल दिन छल। कनियां लेल किछु कीनबाक अछि। पसन्द मे मेल नहि अछि। दोकानो पर चुन्नू लल्लू साबित होइत छथि। अन्त मे कूकी डार्लिंग केर मर्जी पर छोड़ि देल जाइत छैक। कीना गेल समान। बिल सुनिते चुन्नूक पाकेट जबाब दय देलकनि। संजोग नीक जे कूकीक डैडीक देलहा पाइ किछु सेविंग एकाउन्ट मे सुरक्षित अछि आ डेबिट कार्ड सँ बिल पे कय देल जायत। चलू इज्जते बचेबाक अछि, बचि गेल। ऊपर सँ कनियां केँ खुश करबाक लेल आतूर चुन्नूजी आइ कोनो हद पार कए सकैत छथि। लेकिन कूकी अपन च्वाइशक समान किनलाक बाद एतेक खुश भऽ गेल छथि जे सापिंग मौल मे आब कलक्टर साहेबक डांर्ह मे हाथ दय घूमय लागल छथि। छूट्टीक दिन, चुन्नूजी ई सोचि परेशान जे लोक देखैत हैत तऽ कि सोचैत हैत… एतेक पैघ हाकिमक घरवालीक सोझाँ एहन दुर्दशा…. तथापि एकटा मित्र भेटैत छथिन तऽ हुनकर बिना पूछनहिये चुन्नूजी रटल फिल्मी डायलाग बाजय लगैत छथि। “हाहाहा! चौधरीजी!! कि समाचार! अहाँ एखनहु पुरान विचारधारा केँ माननिहार लोक बुझाइत छी। हे ई देखू! हम अपन कनियां कूकी डार्लिंग संग कतेक खूलेआम घूमि रहल छी।” चौधरीजी जबाब देलखिन, “प्रणाम सर! मुदा हम…”, “अरे छोड़ू! अहाँ नहि पूछलहुँ, हम कहि देलहुँ… लोकक संस्कारे देखिकय पता चलैत अछि। अहाँ अपन कनियां केँ आइ छुट्टीक दिन घरे छोड़ने छी आ हम कूकी डार्लिंग केँ लऽ के केना बाजार घूमि रहल छी ताहि पर चुटकी लेलहुँ।” बेचारे चौधरीजी! कि बाजी नहि बाजी – सिर झुकाकय मुस्कुराइत मने-मन सोचैत छथि, “ई अहाँ थोड़े बाजि रहल छी चुन्नू बाबु! ई तऽ अपनेक ससूरक लगायल दाम आ भुगतान कैल रकम सँ गारा मे बान्हल कूकीक करामात बाजि रहल अछि। हे भगवान्! ई दहेज सँ खरीदल कलेक्टरक ई हाल!” पुन: चौधरीजी अपना केँ धरफरी मे किछु कीनबाक अर्जेन्सी सँ आयल कहि प्रणाम कय अपन दिशा मे चलि गेला।
आब चुन्नू बाबु कूकी डार्लिंग संग ५-सितारा रेस्त्राँ-बार मे जाय डिनर केर अर्डर देलनि। मुदा कूकी कहलखिन जे जाबत खाना बनत ताबत किछु ड्रींक्स केर इन्तजाम करू। चुन्नू बाबुक होश उड़ि गेल। बेचारे ओ एतेक सीधा लोक जे आइ धरि लोके सबहक मुँहें सुनैत रहला ड्रींकक बारे मे। मुदा ओ तऽ भोरे प्रण केने छलाह जे कूकी केँ खुश करबाक अछि। कहलखिन, “ओह! व्हाइ नट! यू ड्रींक? वेटर…”, कूकी चुन्नू बाबुक मुह दिशि देखि चुम्मा लैत सरेआम कहलखिन, “डार्लिंग! हाउ स्वीट!! ई जीवन मे ड्रींक बिना मजा कहाँ छैक।” चुन्नू बाबुक पैरक निचाँ सँ जमीन चारि-चारि हाथ घुसैक रहल छल… पैछला अप्रैल २५, २०१५ केर काठमांडु-भूकंप जेकाँ तरतराहट होमय लागल। ई सोचिये कय जे ड्रींक लेल पत्नीक संग राति कोना बितत। लेकिन ओ तऽ कूकीकेँ प्रसन्न करबाक लेल संकल्पित छथि। खैर, जैह बातक डर छल, वैह सब घटि रहल छल।
कम सँ कम ४ लार्ज पेक वोदका आ एक पेक ककटेल ड्रींक ‘सेक्सी सिक्सर’ केर मारिकय कूकी खाना पर टूटि पड़ली आ चुन्नू बाबु लेल ई सब दृश्य अजीबोगरीब रहितो कूकीक डैडी जे आर्मी मे ब्रिगेडियर छलाह तिनकर तनकल मोछक नोंक सुमिरैत अपन कलेक्ट्री एकटा चपरासी सँ बेसी किछु नहि देखाइत जेना-तेना कूकीकेँ सम्हारैत घर पहुँचला आ राति कोना बितल से कि लिखू, बस भोरे कलेक्टर साहेब अपन मुह देखबय योग्य नहि छलाह। अफिस सँ एक सप्ताहक छुट्टी लैत जेना-तेना घाव-घोस ठीक भेलाक बाद ऐगला सप्ताह सँ अफिस ज्वाइन केला। दोसर दिन फेर कूकी केँ खुश करबाक लेल सोचय सँ पूर्वे ओ तूफानी-दिवानी रातिक दृश्य स्मृति कय बेचारे काँपि उठैत छलाह। लेकिन मरता कि नै करता वला बात – बेचारे अपन स्वतंत्रताकेँ दहेजक पाइ मे ब्रिगेडियर साहेबक हाथे लीलाम कय चुकल व्यक्ति कोहुना जीवन जीबि लेब सोचि आइयो जीबि रहल छथि। चौधरीजी कहियो-कहियो चुस्की लेबय लेल भेटैत छथिन तऽ मोन धरि पारि दैत छथिन। अपने ठीक तऽ दुनिया ठीक!