इस्पात-नगरी बोकारोक साहित्यिक संस्था

बोकारो मे मिथिला महोत्सव संपन्न

 

बोकारो मे सम्पन्न साहित्यलोकक संगोष्ठी एवं कवि-सम्मेलन

– हरिश्चन्द्र हरित

साहित्यलोक वस्तुत:मैथिली-साहित्य, अपन संस्कृति ओ अपन स्वर केँ अभिव्यक्ति दैत निर्बाध गति सँ गतिमान एकटा एहेन संस्था थीक, जे ओहि लौह-नगरीमे सेहो मैथिल आ मैथिलीक पहिचान बनि गेल अछि ।

मिथिला सांस्कृतिक परिषद् जतय साल मे एकबेर पावनि-तिहार सन समारोह कय निश्चिंत भ़ जाइत अछि, ओतय ई श्रेय साहित्यलोक केँ भेटैत छैक जे ओ साहित्य-सृजनक माध्यम सँ साँस्कृतिक-जागरण करैत संस्कृतिक रक्त-संचार बनल मैथिल जनकेँ जगौने रहबाक दुरूह कार्य मे लागल रहैत अछि । से साहित्यलोक जखन दरभंगा-मधुबनीक लोककेँ जे साहित्यक-लोक बूझि अपन संगोष्ठीमे सादर सहभागी बनौलनि तँ लागल जे आब अपन लोकक बीच आबि गेल छी, साहित्यक लोक हम सब साहित्यलोक मे जे आबि गेल छी । एते काल तँ आयोजकक लोक छलहुँ से आब साहित्यक लोक भेलहुँ ।

साहित्यलोक मे ओहिदिनक चर्चाक विषय छल

कविताक उपस्थापन/प्रस्तुतीकरण – अर्थात् एहेन देखल जाइत अछि जे नीक कविताक सेहो अपेक्षित “रिस्पौंश” ओहेन नै भेटैए, जे ओहि कवि आकि कविताकेँ भेटक चाही । विषयक प्रस्तावना कुमार मनीष अरविन्द रखलनि । विशद चर्चाक बाद निष्कर्षक निचोड़ छल जे कविताक प्रस्तुतिक समय भूमिकासँ कविकेँ परहेज करक चाही, एहेन कविता पढ़ल जाए जे सहजतासँ लोक बूझि सकय आबेसीसँ बेसी लोक कवितासँ जुड़ि सकय, कोनो गम्भीर विषयक दीर्घ कविता नै पढ़ल जाए, कविकेँ ध्यान राखक चाही जे, हम जे किछु कहि रहल छी तकर केहेन प्रभाव लोकपर पड़ि रहल अछि, लोक सुनियो रहल अछि आ की नै ? संगहिं कोनहु परिस्थिति मे पाँच मिनटसँ बेसीक कविता नहिए पढ़ल जाए, एकरा संगहि एहि विषय पर सेहो चर्चा भेल जे विडियोग्राफीक कारणे कयल गेल प्रकाश-व्यवस्थामे इजोतमे ठाढ़ कविकेँ आगूक लोक अन्हार मे बैसल बूझि पड़ैछ आ कविकेँ लगैछ जे कतय आ ककरालेल हम कविता पढ़ि रहल छी ? आदि-आदि ।

संगोष्ठीक बाद एकटा झमटगर कवि-सम्मेलन

भेल जकर अध्यक्षता संस्थाक वरिष्ठ प्रतिनिधि तुलानन्द मिश्रजी कयलनि । कवि-सम्मेलन मे सर्वश्री गिरिजानंद झा “अर्धनारीश्वर”, दयाकान्त झा, बुचरू पासवान, अजित आजाद, अमलेन्दुजी, मंजर सुलेमान, प्रवीणजी, हरिश्चंद्र हरित, सतीश चंद्र झा, कुमार मनीष अरविन्द, आ युवा साहित्य सेवी अमनकुमार झा (जिनका बोकारोक भविष्य कहल जाइ छलनि, आ जिनकर नाटक “कमरथुआ”
क लोकार्पण राति मे भेल छल) अपन-अपन कविताक संग बेस जमलाह । डा. बुद्धिनाथ झा जीक गरिमामयी उपस्थिति सँ सेहो संगोष्ठीक आभा बढ़ल ताहि मे संदेह नहि, जनतब दी जे एहि गोष्ठी मे ओ संयोजकक भूमिकाक सफल निर्वहन कयल एकबेर पुन: साहित्यलोकक साहित्य-सेवाक लेल सराहना करैत कृतज्ञता ज्ञापित करैत कृतार्थ छी ।