होली विशेष आलेख
– संकलनः प्रवीण कुमार झा, बेलौन, दरभंगा (हालः दिल्ली)
- मूल लेखकः शिव मोहन झा, हालः मुम्बई
ओना त पावैन त्यौहार के असली मजा तखने अबैत छल जखन एतेक पाय कौरी नै छल या पैसा क दिक्कत रहैक। कम पाय में बेसी आनंद । लेकिन जमाना बदैल गेलै । आब पावैन त्यौहार स्टेटस सिंबल भ गेलै । कोनो पावैन त्यौहार आब अहाँ के स्टेटस पर निर्भर करैत छैक न की ओकर ओहन तैयारी होइत छैक जेहेन आई से 15 साल पहिने होइत रहैक । बात लगभग 20 साल पहिने के छी जखन मुंबई आयल रही त होली के दू दिन बाद हम अपन परिचित एकटा भाई टाइप आदमी के पुछलियेंन, होली केहेन रहल त हुनकर जवाब रहैक हमरा लेल होली की आ दिवाली की रोज नया कपडा पहिरैत छी रोज नीक भोजन करैत छी आ रोज दारू पिबैत छी । तै दिन से लोक से इ पूछनाय छोड़ि देलियैक जे केहन रहल होली आ दिवाली । ओनाही आब गाम में सेहो भ गेलै न लोक लग वो सामाजिकता रहलैक आ न पाबैन मानबैक लेल ओ ख़ुशी । पाबैन त्यौहार सेहो आब एकटा सिर्फ रूटीन काज भ गेल छैक न की आस्था । हर पाबैन त्यौहार से किछु न किछु आस्था जुरल छैक आ आस्था के हिसाब से ओकर तैयारी होइत रहैक । लेकिन से बात आब नै छैक आ सिर्फ ड्यूटी बुझी बेसी लोक अपन पाबैन त्यौहार मनबैत छैथ न की आस्था के हिसाब से समाजक संग।
होली त गाम के पावैन छलैक जकर तैयारी सरस्वती पूजा बाद सुरु भ जाइत छलैक आँगन घर साफ सफाई स ल के नया गहूमक फसल के स्वागत करबा तक । आ बिच बिच में मैथिली होलीक गीत संग राइत के रिहर्सल होइत रहैक दलान दरवाजा, संगहि भगवानक गीत आ मर्यादित जोगीरा सारारारा के संग और भांगक सरवत आ पान सुपारी बांटल जाइत छलैक । लेकिन आब होली दुश्मनी फरिछाबै वाला पाबैन भ गेलैक । आब होली मतलब भोजपुरी फूहड़ गीत के संग अश्लील जोगीरा के नाटक भ गेलैक जे अहाँ अप्पन सम्माननीय के संग नै मना सकैत छी ।
पहिने टोल पड़ोस में एक आधटा धनिक आ बांकी साधारण आदमी रहैत छलैक आ सब मिलजुलि के रहैत छलाह, संगे पाबैन त्यौहार जबर्दस्त रूप से मनायल जाइत रहैक; आब जमाना बदैल गेलै । आब एक आधटा साधारण आदमी छैथ टोल पड़ोस में, बाँकी सब धनिक । लेकिन पाबैन त्यौहार ओना नै मनायल जाइत छैक जेना पहिने मनायल जाइत रहैक । सब अपने में मगन । नै छैन्ह पहिलुका सनक लगन टोल पड़ोस स ।
एक बेर हमर एकटा परिचित दलान पर कहने रहैथ जे दियाद आ टोल पड़ोस सबल आ धनीके बढ़ियाँ होइत छैक । जे मौका मुसीबत अहाँ के काज आयत, हुनकर बात के गिरह बैन्ह नेने छी । दियाद आ समाज सबल आ धनिक रहत त अहाँ के बारे में दुर्भावना सोचै लेल हुनका लग टाइमें नै रहतैक ओहो खुश आ अहुँ खुश रहब ।
लेकिन ओ बात आब उल्टा भ गेलै न आब दलान रहलैक न आब ओ सामाजिकता । न आब ओ देवी रहलैक न ओ कराह ।
एखनो आशा अहि जे लोक गाम घर जाइत त शहरी बातावरण छोड़ि गामक पुरनका रंग में रैंग जाइथ आ ओनाही ख़ुशी से पाबैन त्यौहार मनबैत । जखन गरीबी में ओतेक जश्न होइत रहैक त अमीरी में कियाक नै हम सब मिलके ओनाही जश्न मनाबी ।
जोगीरा सारारारा के फेर ओनाही मनाबी जेनाही हमर पूर्बज आ अग्रज मनबैत रहैथ । जोगीरा सारारारा ।
होली के शुभकामना । जय जय!!