वरिष्ठ संचारकर्मी अनुरंजन झा द्वारा मिथिलाक अर्थशास्त्रपर राय मांगल गेल अछि, एहि सन्दर्भ मे देल गेल जबाब निम्न अछि।
अनुरंजन भैया को प्रणाम है! बहुत ही सार्थक सवाल करके सभी मिथिला राज्य समर्थकों को आपने सोचने के लिये एक राह दिया। जरुरत है कि हम ऐसे बहस को इलेक्ट्रानिक मीडिया पटल पर भी स्थान दें। वैसे सोसल मीडिया का भी प्रभावकारिता कम नहीं…. अब चलते हैं विषय की ओर!
मिथिला राज्य का अर्थशास्त्रः
वर्तमानः
कृषि – ६०%
सेवा – २५%
प्रवासियों से आय आर्जन – १०%
उद्योग – ५%
भविष्यः
कृषि – ४०%
सेवा – २५%
उद्योग – २५%
प्रवासियों से आय आर्जन – १०%
वर्तमान बिहार मे सेहो यैह अर्थशास्त्र अछि। पटनाक पर कैपिटा इनकम आन ठाम सँ ५ गुना बेसी अछि।
कृषि – जल, जमीन और जंगल का उचित दोहन जो वर्तमान राज्य की अदूरदर्शिता तथा उपेक्षापूर्ण नीतियों के कारण आज तक पिछड़ा ही रहा है, पूर्वाधार का निर्माण और वैज्ञानिक कृषि प्रणाली को सही तरीके से लागू नहीं किया जा सका है। समुन्नत किस्म के बीजों का इस्तेमाल, कीटनाशकों का प्रयोग, उचित सिंचाई व्यवस्था – किसी भी क्षेत्र मे विकास का कोई योजना नहीं बन पाना हमारे कृषि प्रणाली को आगे ले जाने के बजाय पीछे ही रखा है। जल कृषि जो पहले नदियों के चौतर्फा फैलाव से अत्यधिक होता था, अवैज्ञानिक बाँध परियोजना और उसका भी उचित देखभाल न कर पाने, सुलिस गेट, नहर, आदि के माध्यम से जल-ग्रहण क्षेत्रों को भी वंचित रखना – अलग राज्य होनेपर इन तीनों संसाधनों का समुचित उपयोग से विकसित होना तय है। वर्तमान बिहारी क्षुद्र राजनीति और भ्रष्ट शासन व्यवस्था से निजात पानेपर ही मिथिला का आर्थिक विकास संभव है। एक सन्दर्भ लिखना आप जैसे सुविज्ञों के लिये जरुरी है….. १९४३ में ब्रिटिश भारत का वायसराय वैभेल ने जिस प्रकार से परियोजना और बजेट निर्धारित किया था, आज भी भारत सरकार और बिहार सरकार केवल ब्याज सहित कोष उपलब्ध कराये और जल-व्यवस्थापन का वह सपना पूरा करे तो बाढ के स्थायी निदान के साथ-साथ समुचित जल-भंडारण से साल भर यहाँ तक कि सुखाड़ की स्थिति में भी सिंचाई के लिये जल प्राप्त होगा, जल पर्यटन, परिवहन, पक्षी संरक्षण स्थल आदि का सपना पूरा हो सकेगा। हम संछेप में इस विन्दुपर कोमा लगा रहे हैं। आज जो अवस्था है उसमें कृषि से प्राप्त आय पर निर्भरता को कम करके सेवा क्षेत्र तथा उद्योग में प्रतिस्थापित करना आवश्यक है। विभिन्न शोध-पत्रों से यह स्पष्ट हो चुका है कि जमीन के नीचे जलस्तर घटने का मूल कारण नदियों की पानीको बाँध के अन्दर से सीधे गंगा जैसी बड़ी नदियों को जलापूर्ति करते फरक्का (बंगाल) बिजली परियोजना को तो लाभ दो, रिटर्न हमें क्या मिला कि बिजली, पानी, सिंचाई हर चीज से महरुम हम ही रह गये। इससे तो बेहतर पूर्व स्थिति को हम मानते हैं – जो कहते थे न ‘आयल पाइन, गेल पाइन, बाटे बिलायल पाइन’।
आज हमारे यहाँ से करोड़ों में पूँजी अन्य राज्यों को ऊँची और तकनीकी शिक्षा पाने के लिये – दक्ष जनशक्ति बनने के लिये दिया जाता है। हमारी पूँजी दूसरे राज्यों को… जरा सोचें… जो मिथिला प्राचीनकाल से विद्यागारा रही वह आज भ्रष्ट बिहारी शिक्षा नीतियों के मार से खुद के बच्चों को अन्य राज्यों को भेज शिक्षित और दक्ष बनाने के लिये बाध्य है। फिर यहाँ कितना लिखूँ…. तर्क को बखूबी समझनेवाले इसे विस्तार से जरुर समझ सकेंगे।
सुव्यवस्थित-बीमाकृत मजदूर आपूर्ति व्यवस्था से हम विदेशी मुद्रा अर्जन कर सकते हैं। आज हमारे यहाँ के लोगों (पिछड़े वर्गों, दलितों, निरक्षरों) को मातृभाषा के माध्यम से प्राथमिक शिक्षा से वंचित रखकर और अधिक पिछड़ा और अनपढ बनाकर मजदूर तो बनाया गया, राज्य के द्वारा अन्य राज्यों में मजदूरी कमाने के लिये जनसाधारण एक्सप्रेस से भेंड़-बकरियों की तरह अन्य राज्यों में बोली-गोली-पेटपर लात खाने अनाथों की तरह भेजा गया… उनको न्युनतम मजदूरी मिला कि नहीं, वे उचित मानवीय सुविधाभोगी हैं या नहीं, उनके बच्चों को शिक्षा का मौलिक अधिकार का लाभ मिल रहा है या नहीं…. कोई माय-बाप नहीं है। यदि राज्य मिथिला का अलग है तो निश्चित तौरपर इन सरोकारों पर गहरे दृष्टि के साथ सुधारात्मक कार्रबाई करना राज्य संचालकों का दायित्व होगा। उदाहरण के तौरपर आपको दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, आसाम, गुजरात, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ, उत्तराखंड, हिमाचल, आदि राज्यों में सरकार द्वारा निर्धारित न्युनतम मजदूरी नहीं मिल पा रहा है…. राज्य मौन है।
औद्योगिक संभावना – जल, जमीन, जंगल के समुचित रख-रखाव व दोहन से हमारे यहाँ प्रोसेस्ट फूड सेक्टर, चीनी मिल, पेपर मिल, बिजली उत्पादन केन्द्र, सूत उद्योग, टेक्सटाइल्स, और पूर्व से विद्यमान विभिन्न रुग्ण उद्योगों का पुनर्नवीकरण…..
हमारे आय-स्रोत मैनपावर सप्लाई के अतिरिक्त सोफ्टवेयर इन्डस्ट्रीज, आउटसोर्सिंग, आइटी पार्क, काल सेन्टर्स जो विभिन्न देशों के लिये सस्ते दरोंपर सेवा उपलब्ध करायेगी…. आज देश के विभिन्न कोणे में जाकर हम ही ज्यादा सेवा दे रहे हैं, घर पर रहकर और भी अधिक कर पायेंगे। विश्वास बढाएं!
भैयाजी! आपका भी साथ मिले तो मिथिला राज्य की अर्थशास्त्र पर हम ७ दिन तक सेमिनार में आपको एक-एक पैसा का हिसाब दे सकते हैं। कमाने के लिये मालिक बनना होता है, ब्यापारिक बुद्धि भी रखना पड़ता है। चाकरी करने की मानसिकता से ऊपर उठना पड़ता है। आज हमलोग अधिकतर चाकर बने हुए हैं। बाहर रहकर बाहर की दृष्टिदोष से ग्रसित हैं। ऐसे में अपने गाँव ‘मिथिलादेश’ को पहचानने की शक्ति से अनभिज्ञ हो गये हैं। आइये, कभी हमारे कार्यक्रमों में तर्क की कसौटीपर विवेकवान् मैथिल बन विचार करिये, या फिर हमें मौका दीजिये। 🙂
हरिः हरः!!