विराटनगर, अक्टुबर ५, २०१६. मैथिली जिन्दाबाद!!
कतार देशक राजधानी दोहा मे नेपालदेशक मिथिलाक सलहेशक वस्ती सिरहा जिलाक लहान – ४ रघुनाथापुर निवासी अशोक कुमार सहनी केँ मैथिली भाषा ओ मिथिला संस्कृति उत्कृष्ट योगदानक सराहना करैत मैथिली जिन्दाबाद सम्मान २०१७ देल जायत।
एहि सम्बन्ध मे मैथिली जिन्दाबाद संपादक प्रवीण नारायण चौधरी सम्मानित सहनी सँ दूरभाष पर वार्ता करैत एहि बातक जानकारी करौलनि अछि। सहनी केँ हुनक आगामी नेपाल आगमन पर ई सम्मान समारोहपूर्वक देबाक घोषणा हुनका जानकारी करौलनि। सहनी प्रति राखल गेल उद्गार केर पाठ एतय निम्नरूपेण निवेदित अछिः
“अहाँ सिरहा आनलाइन वेब पत्रिका पर मैथिली भाषा मे आ मूलतः मिथिला संस्कृति सँ जुड़ल पक्ष पर विशेष केन्द्रित समाचार, विचार, तस्वीर आदि पोस्ट करैत छी। अहाँ अपन मिथिला – अपन मधेश आदि विभिन्न फेसबुक पेज सेहो अपरेट करैत छी आ विभिन्न लेखक, कवि, संवाददाता आदिक बात-विचार केँ विस्तृत पटल सँ प्रकाशित करैत छी। अहाँ पेशा सँ एकटा टेलर रहितो अपन सब खाली समय केँ अपन मातृभाषा, मातृभूमि आ राष्ट्र प्रेम मे बितबैत छी। मैथिली-मिथिलाक विभिन्न आयाम पर चलि रहल अभियान केँ सेहो अपन कठिन परिश्रम सँ अर्जित आय खर्च कयकेँ पोषण दैत छी। अपन सहयोग देबाक लेल हेल्प मधेशी, सांझक चौपाड़ि पर व अन्य संस्थागत अभियान मे सदिखन सक्रिय रहैत छी। विदेशक धरतीपर रोजगार करैत एको क्षण एहेन नहि जेकरा अपन माटि-पानि आ लोक-वेद लेल नहि सोचैत होए। सचमुच अहाँ पर जानकी-रमण केर आ गौरी-शंकर केर असीम कृपा अछि। पहिने हिन्दी मे लिखैत रही जे बेसी लोक पढत-बुझत आ प्रतिक्रिया देत, मुदा सोशल मीडिया क्रान्ति मे मैथिलीक श्रेष्ठता सँ प्रभावित भ अपन मातृभाषाक काज मे समय आ साधन लगबैत छी, हर तरहें अहाँ सँ योग्य एहि घड़ी मे आर दोसर कियो नजरि नहि पड़ल। अतः मैथिली जिन्दाबाद केर वर्ष २०१७ केर मिथिलाक सेवकरूप मे अहाँ केँ सम्मान करैत छी। जानकीक कृपा सदिखन बनल रहय!
मैथिली जिन्दाबाद परिवार केर तरफ सँ सहनीजी केँ हार्दिक बधाई!!
श्री सहनी लिखित आजुक एक अनमोल रचनाः
कर्म करु त फल मिलबे करतै,
आय नै मिलतै त काल्हि मिलतै।
जतेक निचा,गहिरा इनार रहै छै,
ओहने मिठगर पाइन रहै छै।
जिनगी के कठिन प्रशन-उतर ,
एहि जिनगी सँ हल मिलै छै।
हिनकहि आग्रह पर एकटा आरो हिनकर अति विशिष्ट रचना सेहो राखि रहल छीः
कागज़े में छै राखल आब उ चेहरा गाम के,
मुदा देखाइ ने दैछै अखनो उ चेहरा गाम के।
सुख में, दुख में, धूप में जे माथपर नज़र आबै छेल,
हेरा गेलै नै जानि कत उ लाल गमछा गाम के।
आबैत-जाईत पूछै छेल सबकोई के हालचाल,
भगेलै किया चुप-चाप उ पीपर पुरनका गाम के ।
जबसे उ गेलै छोइडके परदेस उ दलान के,
अखनो राह तकै छै ओकरा उ बिछौना गाम के ।
साझ के चौबटिया में की होइछल हला-गुला,
खाली याद में बाँचल छै अब उ किस्सा गाम के।
हॉल-चाल आब एक-दोसर के के पूछै छै कोई नै,
की पता अगिला साल की हेत आब उ गाम के।
माई के आइख में अखनो आश अछि उ करै की,
परदेशी सब त बिसरि गेल छै रस्ता उ गाम के…!