सुभाषचंद्र झा, सहरसा। अक्टुबर १, २०१६. मैथिली जिन्दाबाद!!
एक तरफ राज्य सरकार व मंत्री – विधायक सबहक पैघ-पैघ दावा आ दोसर तरफ रोजगारक अकाल – एहि बीच मे फँसल अछि मिथिलाक गरीबी रेखा सँ निचाँक अधिसंख्य जनता।
जकरा अपन माय, बाप, पत्नी व बाल बच्चा केँ छोड़ि रोजी रोटी के लेल परदेश जाय पड़ै छै ओकर अंतर्दशा केर पीड़ा वैह बुझि सकैछ जे एकर भुक्तभोगी रहल हो । पलायन केर सिलसिला शायद अदौकाल सँ चलि आबि रहल अछि । एहि कारण महाकवि विद्यापति सेहो गीतक माध्यम स लिखैत छथि जे ‘उठू उठू सुन्दरि जाइछी विदेश सपनहू रूप नहि भेटत सनेश’ ।
तहिना धबौली ग्रामक मजदूर कहैत अछि जे हमसब पंजाब जा रहल छी जतय अनाज मंडी में काज करब ओतय स एक महिना मे पन्द्रह हजार रूपया कमाई होइत छैक । स्टेशन पर पेटकुनिया देने मजदूर रंजन, मरांडी कहलक जे जनसेवा एक्सप्रेस ट्रेन में जगह नहि भेटबाक वजह सऽ तीन दिन स ट्रेन में चढ़बाक प्रयास करैत छी मुदा शौचालयो तक मे जगह नहि भेटैत छैक ।
स्टेशन सुत्र बतौलनि जे अखन प्रतिदिन 18 स 20 लाख मूल्यक टिकट बिक्री होइत अछि मुदा मजदूर यात्री केँ कोनो सुविधा ट्रेन में नहि भेटि रहल अछि । जखन कि जनसेवा एक्सप्रेस, जनसाधारण, पुरविया, गरीब रथ सब ट्रेन में भीड़ काफी रहैत अछि । मिथिला केर मजदूर सब कहलक जे दशहरा पर्व पर लोक घर आबैछ मुदा हमरा सब केँ पर्व में पलायन मजबूरी व नियति बनल अछि ।