जितेन्द्रनारायण ठाकुर, विराटनगर, २३ सितम्बर २०१६. मैथिली जिन्दाबाद!!
“जितिया पाबनि बड़ भारी, धियापुता केँ ठोकि सुतेलनि अपने खेलनि भरि थारी” ई कहाबत मिथिला मे बहुत लोकप्रिय अछि। एकर अर्थ होएछ “जितिया पाबनि करब बहुत कठिन होएछ, एकरा निर्वाह करय वास्ते महिला लोकनि धियापुता सुतलाक बाद पेट भरिकय खाएत छथि, जाहि सँ ई व्रत पूरा करबाक सामर्थ्य भेटनि।”
जितिया पाबनि संग जुड़ल एहि कहाबत सँ दू टा अर्थ भेटैत अछि। पहिल जे ई पाबनि मनायब अत्यन्त कठिन छैक आर दोसर जे एकरा निर्वाह करबाक वास्ते व्रतधारी महिला भैर-भैर थारी भोजन सुतली राइतो मे खाएत छथि। यैह दुइ प्रकारक भाव केँ देखबयवला एहि लोक-कहिनीक जितिया पाबनि संग घनिष्ट संबंध छैक।
जितिया पर्वक बारे मे भविष्य पुराण मे वर्णन कैल गेल अछि। आश्विन मास कृष्ण पक्षक अष्टमीे तिथि केँ उपास राखब आर तिथि परिवर्तन भेलाक बाद ‘पारणा’ अर्थात जितिया व्रत केँ विधिवत् रुप मे किछु अन्न ग्रहण करैत तोड़ब । व्रतक दिन भले आठम तिथिकेँ पड़ैत हो मुदा एकर तैयारी लोक महीना शुरु होइते करब शुरु कय दैछ। विभिन्न जातीय महिला संघ संस्था सब त आब जितिया पाबनिक पहिने सँ समारोह आदिक आयोजन करैत एकर गंभीर सन्देश सँ एक-दोसर केँ परिचित कराबय लागल अछि। एहि तरहक समारोह सब सँ स्वाभाविके तौरपर हर्ष-उल्लास आ जोशक वातावरण देखाएत अछि तराई-मधेस मे।
मिथिला मे जितिया व्रत लेनिहाएर महिला सब एक दिन पहिने सँ ‘सधवा’ अर्थात् सोहागिन महिला द्वारा ‘माछ, मडुवा’ खेबाक चलन छैक, जखन कि विधवा महिला ‘अर्बा-अर्वाइन यानि अनोन अन्न सँ बनल खाना खेबाक चलन छैक ।
जितिया व्रत शुरुवात केनाय आर अष्टमी तिथिक शुरुवात सँ पहिने चुरा-दही खेबाक चलन छैक, एकरा चलन-चल्तीक भाषा मे ‘ओठगन’ कहल जाएत छैक। ओठगन आश्विन कृष्णपक्ष अष्टमीक तिथि सँ पहिने कैल जाएत छैक।
जलो धरि नहि ग्रहण करैत निराहार व्रत करबाक कारण जितिया पर्व करब कठिन मानल जाएत छैक। करीब दुइ दिन धरि उपास राखबाक कारणे अष्टमी तिथि शुरु होएबा सँ पहिने दही-चुरा पेट भरि भोजन केँ सेहो उपरोक्त मैथिली लोक कहिनी सँ जोडल गेल छैक । प्रायः अष्टमी तिथि केँ शुरुआत भिनसरबेक समय मे लगभग ३ स ४ बजे केर आसपास होएत छैक। ताहि समय धिया-पुता सब सुतल रहबाक कारण ई कहिनी एहि तरहें व्यंग्य शैली मे कहल जाएछ।
निराहार रहयवला एहि व्रत मे अष्टमी तिथि केँ शुरुवात संगे व्रत राखनिहाएर सब पोखरि, नदी तथा जलाशय मे स्नान करैत पूर्वाभिमुख भऽ तामक अर्घा सँ जलार्घ्य भगवान सूर्य केँ चढबैत छथि, तेल तथा खैर सेहो झुंगनीक पात पर चढबैत छथि, बाद मे वैह तेल अपन सन्तान सबहक माथ मे लगा देबाक परंपरा छैक। पुत्रकेँ दीर्घायु बनेबाक कामनाक संग महिला द्वारा गायक गोबर लँ अंगना नीपि पवित्र पारि शालिवाहन राजाक पुत्र जिमुतवाहनक कुश केर प्रतिमा बनाकय कलश केँ जलमे स्थापना करैत कलशकेँ चारूकात सुसज्ज्ति कय पोखरीक निर्माण कैल जाएछ। तेकर बाद पाकैर गाछक ठाढि आनि ओकरे गाछक प्रतीक मानि ताहि ऊपर माटिक मुरुतरूप मे चिल्होरि राखि नीचां गीदरनी केर आकृति बनाकय राखल जाएछ, ओहि दुनूक माथ मे सिन्दूर लगाओल जाएछ, फूलमाला, अक्षत, धूप-दीप, नैवेद्य जाहि मे केराउ केर ओंकरी आर खीरा अनिवार्य रूप सँ राखल जाएछ तेकरा सहित बाँसक पात राखि पूजा केला सँ वंशवृद्धि होएत छैक आर पुत्रक जे कोनो खराबो ग्रहचक्र होएत छैक ताहि सँ मुक्ति भेटबाक संग-संग सब प्रकारक मनोरथ पूरा होयबाक जन आस्था लोकमानस मे निहित छैक।
जितिया व्रतक पहिल दिन व्रतधारी महिला जिमुतवाहनक कथा सुनैत छथि आर कथावाचन केनहाइर महिला पुरोहित केँ यथासाध्य दक्षिणा देल जाएत छैक। एहि वर्ष शुक्र दिन विहान पख ओटगन कय केँ शुक्रवार दिन भरि निर्जला-निराहार व्रत राखल गेल आ शनि दिन पारण कैल गेल अछि।