लोककलाक संरक्षक ग्रामीण माय-बहिन केँ सलामः श्यामसुन्दर

श्यामसुन्दर यादव – संचारकर्मी, लेखक, साहित्यकार, शोधकर्ता आ सामाजिक अभियन्ता – राजविराज, सप्तरी सँ अपन फेसबुक मार्फत अपडेट लगबैत किछु रास फोटोग्राफ सेहो पोस्ट करैत छथि। ओ लिखैत छथिः

bhitti chitra1“हमर जन्मस्थान सप्तरीक जमुनी मधेपुरा गाविस वाड नम्वर–९ छपकी भथौल । जाहि ठाम विभिन्न जाति सभक मिश्रित बसोवास रहल अछि । किछु काम स’ टहलवाक लेल टोलपर निकलल छलौं । एहि क्रममे गामक काका देवकुमार सरदार (बाँतर)क आङ्गन गेलौं । हमर नजरि फुसक घरक भित्तामे बनाओल गेल पारम्परिक चित्र पर परल । देखि कए अति हर्षित भेलहुँ । पुछलौं जे ‘ई चित्र के बनाओने छथि ? जवाफ आएल ‘तोरे भाबो, रामक कनियाँ कोइलाडी बर्साइनबाली ।’

bhitti chitra2सङ्गमे रहल कैमरामे चित्रसभ कैद करए लागलौ । फेर हँसैत काकी बाजलीह ‘बौवा, टुटलहा घरके की फोटो खिंचै छहक ? तोरा भाबोके बड्ड लुईर छौ । पुछलियैन्ह ‘कतए छै हमर भाबो ? ओ कहलन्हि ‘भाबो त जारैन लाबए गेल छौ ।’
हुनका धन्यवाद नहि कहि सकलौं । मुदा भावो कोइलाडी बर्साइनबालीके दिल स’ धन्यवाद देबए चाहैत छी । अहाँक कला कौशलताके सलाम करैत छी । सङ्गे फुसक घरमे अहाँके हात स’ सजाओल गेल चित्र स’ छट्कैत अहाँक घर पक्कीवाला घरस’ बेसी महत्वपूर्ण अछि । मिथिलाक गाम देहातमे पहिचानके बचाकए रखनिहाइर दादी, माता, बहिनसभप्रति शतशत नमन । हमरा सभक पहिचानके अहिना संरक्षित क’ कए गौरवान्वित करैत रहिहे।”

bhitti chitra3कोइलाडी बर्साइनवाली कनियांक ई कलाकृति सँ सजल भीतघर (फूसक घर) केर सुन्दरता बड़का बिल्डिंग केर सुन्दरता सँ बहुत ऊपर अछि। अपन रहयवला स्थान केँ पवित्र राखब, सजाकय सुन्दर बनायब, एतेक नीक जे श्यामसुन्दर जी समान कोनो देवता सेहो अंगना औता तऽ हुनकर आँखि केँ ई सोहाओन वातावरण आकर्षित करैन, प्रभावित करैन, ओ प्रसन्न होएथ, सब आशीर्वाद दैथ। आध्यात्मिकता एहि सजावट लेल एतबे तर्क प्रस्तुत करैत अछि।

bhitti chitra4अभिवादनशील लेल सुसंस्कारक प्रदर्शन ई घर-अंगना आ चौबटिया-चौक आदिक सजावट मे सेहो परिलक्षित होएत छैक। गरीबी-अमीरी आ कच्चा-पक्का मकान केर अर्थ एहि संस्कार मे कतहु सँ बाधक नहि बनैत छैक। परमात्मा सँ सीधे सम्बन्धित आत्मा – आर आत्माक बसेरा ई मनुष्य शरीर आ परिवेश, सब किछु पवित्र आ रमणगर होयबाक दर्शन एहि लोककला मे भेटैत अछि।

bhitti chitra5मिथिलाक संस्कार मे राजा पर्यन्त विदेह कहेला, जन-गण-मन मे यैह आध्यात्मिकता बसैत अछि, यैह सब कारण सँ एकर पहिचान सनातन जीवित अछि। कोनो जाति वा समुदाय, अपन एक अलग विशिष्टताक संग जीवन-यापन करैत अछि। पर्यावरण संग मित्रतापूर्ण ढंग सँ गृहस्थी चलेबाक परंपरा एहि ठामक खासियत थीक। जहिना गीतनाद सँ अपन भावनाक प्रकटीकरण कैल जाएछ, तहिना सुसंस्कार एहि चित्र सबहक जरिया सँ अभिव्यक्त होएछ। मिथिलाक जीवनशैली केँ यैह कारण पूर्ण वेदान्त अनुरूप मानल गेल अछि।

हरिः हरः!!