साक्षात्कारः बी के कर्ण, संस्थापक – मिथिला मंथन
सन्दर्भ अछि, सुगौली संधि लागू होयबाक दिन ४ मार्च – २०१६ मे पूरा भेल २०० वर्ष जे मिथिला विभाजित भऽ गेल दुइ देश मे। आजुक दिन उपवास रखबाक विशेष अभियान पर अभियन्ता श्री बी. के. कर्ण संग मैथिली जिन्दाबाद केर संपादक प्रवीण नारायण चौधरीक बातचीत।
४ मार्च मिथिलाक दुइ देशक सीमा मे विभाजित होयबाक दिन – सुगौली संधिक दिन सँ एकटा ऐतिहासिक आ पौराणिक संस्कृति आ सभ्यताक धारक क्षेत्र जेकरा मिथिला, बज्जि, विदेह, तिरहुत आदि कतेको नाम सँ जानल जाएछ ओ दुइ देश बीच बँटा गेल। एहि दिवस पर अखण्ड मिथिलाक सांस्कृतिक-भाषिक-सामाजिक एकताक निमित्त श्री बी के कर्ण केर नेतृत्व मे आजुक एक दिवस लेल उपवास रखबाक अपील कैल गेल छल, जेकर समर्थन भारत तथा नेपाल केर कतेको ठाम पड़ल।
स्वयं श्री बी के कर्ण जे वर्तमान समय हैदराबाद मे आप्रवासी मैथिल केर रूप मे रहि रहल छथि, ताहि ठाम सपरिवार, माता-पिता सहित उपवास लेल बाकायदा प्रशासनिक नियम केँ पूरा करैत पूरा कएलनि।
एहि लेल हैदराबाद मे धरना स्थल पर बैसिकय ओ एक दिनक उपवास रखलैन। एहि बीच हुनका सँ तेलुगु टेलिविजन चैनल्स सहित अन्य अन्य मिडियाक प्रतिनिधि लोकनि द्वारा मिथिला कि, कतय आदि पर ढेर रास जिज्ञासा सब राखलैन।
आउ, स्वयं श्री बी के कर्ण संग आजुक दिन राखल उपवास आर तेकर प्रभाव पर चर्चा करी।
प्रवीण : आदरणीय बी के कर्ण जी, अपनेक अपील पर मैथिली जिन्दाबाद मे पहिनहियो समाचार संप्रेषण अपने संग साक्षात्कार केर रूप मे प्रकाशित भेल छल। आब जखन कि ४ मार्च पैछला शुक्र दिन बीत गेल, केहन रहल अपनेक अनुभव?
कर्णजी : मिथिला के नाम पर एक दिनक उपवास, मिलाजुला कहल जाइछ जे अनुभव बहुत ही सार्थक रहल। क्रांतिकारी आ संतोषप्रद। क्रांतिकारीक मतलब जे “मिथिला” नाम लोकप्रिय कियैक नहि अछि? जे बिहार राज्यक आधार लेबय परैत अछि या नहि तं रामायणक आधार। अनुभव इ भेल जे मिथिलाक लोकप्रियता में बड़ कमी अछि , धीरे धीरे सीकुरि रहल अछि। मिथिला नामक जन -जन के बुझबा में आबय -एही सं जुरल छी आ रहब।
संतोषप्रद : जे इतिहास नहि बिसरब, एहि दिन मिथिला बिभाजनक दिवस के रूप में हर वर्ष उपवास करब, जहिया तक जीवैत रहब। उपवास क शक्ति महशुस के लहुँ , विचार में शुद्धिकरण , हौसला बुलंद भेल। मिथिलाक लेल समर्पित सेवक लेल दृढ़ संकल्पित भेलहुँ। ऐहिक लेल अपन पत्नी श्रीमती किरण कर्णक संग उपवासमे काफी आध्यात्मिक प्रेरणा भेटल। श्री सिद्धिनाथ झा जी क साथ उपवास में, एकटा यज्ञक सिद्धिक धारा सँ अनुग्रहित भेलँहु। श्री सौरभ सुमन (श्री राम मोहन झाजीक बालक) सेहो उपवास स्थल पर आबि, नवतुरियाक मिथिलाक प्रति उत्साह सँ उत्साहित भेलहुँ।
प्रवीण : एहि अपील केर प्रभाव एकटा तऽ स्पष्ट देखलहुँ जे लोकमानस मे मिथिलाक दुइ देशक सीमा मे बँटि जएबाक कारण पता चलल। आर कि सब संदेश आम जनमानस धरि गेल ताहि पर अपन विचार देल जाउ।
कर्णजी : हाँ , संदेश की गेलैक से नहि पता ? पर हाँ, हम सब प्रयास में लागल रहब जे मिथिला क्षेत्र भारतवर्ष केर इतिहासक स्वर्णिम धरोहर अछि आ रहत। २ हज़ार कि. मी. मिथिला सँ दूर तेलुगु क्षेत्र में मिथिला सँ रूचि देखिकय काफी सन्तोषक अनुभव केलक।
मिथिला क्षेत्रक इतिहास, बिहार राज्यक इतिहास बड़ पुरान अछि, मिथिलाक वर्णन वेद-पुराण में अछि त लोग सब पुछिलक जे बिहार राज्य के अंदर मिथिला क्षेत्र कियैक अछि ? सन्देश अछि, हर मैथिल जे मिथिला वासी, प्रवासी आ मिथिला प्रेमी छथि जे मैथिली, बज्जिका, अंगिका, जोलहा उर्दू, भोजपुरी आ हिंदी में बजैत छी, मिथिलाक औद्योगिक आ सामाजिक विकासक लेल, जे जे कहैत, से से करैत, जाहिसँ मिथिलाक लोकप्रियता भेटतैक।
ध्यान राखब अपन अपन मिथिलाक भाषा में : “मिथिला को अपनाना है. मिथिला को विकसित बनाना है”।
प्रवीण : आब ऐगला डेग कि होयत?
कर्णजी : २२ अप्रैल २०१६, उज्जैन में सिंहस्थ कुम्भ में मिथिलाक झंडा लय कय घूमब आ प्रचार करब जेना तीन वर्ष पूर्व महाकुम्भ प्रयाग में हम, हमर पत्नी किरण आओर श्री रत्नेश्वर झाजीक संग घुमल रही। फोटो देखल जाऊ।
“मिथिला दुःखी तऽ देश दुखी, मिथिला सुखी तऽ देश सुखी” एहि स्लोगन सँ पूरा कुम्भ घुमलहुँ, एकैटा उद्देश्य अछि मिथिला महिमा दोसर समाज में लोकप्रिय होइ, मतलब जे जन-जन तक मिथिला महिमा बुझाय, बिहार केर आधार पर नहि। तकर बाद जुलाई मिथिला में उद्योग पर सेमिनार।
प्रवीण : हैदराबाद मे मिडिया एकरा कोन तरहें लेलक? हमः मिथिलाक मूल भूमि पर एकर केहेन असैर पड़ैत देखलहुँ अपने?
कर्णजी : हैदराबाद में मिड़िया बहुत उत्सुक अछि, “सीता माता बिहार में कैसे है, वह तो मिथिला की है , मिथिलेश कुमारी।” मिथिला में एकर असैर तत्कालीन नहि पडत कारण, मैथिल बड़ कठिन सामाजिक प्राणी होइत छथि, सबटा समाधान खींचातानी में देखैत छथि, पर मिथिला विकासक शुरुआत भऽ गेल अछि, जय मिथिला, जय जय मिथिला।