मैथिली फुल नहि फुलबारी थिक
हमर प्रिय कवि विद्यानन्द बेदर्दी बड नीक कहैत छथि, “मैथिली फुल नहि फुलबारी छी”। एहि फुलबारी मे रंग-बिरंगक फुल फुलाइत अछि।
मिथिलाक भूगोल जहिना प्रकृति द्वारा मस्तक पर हिमालय, दाहिना हाथ गण्डक धार, बाम हाथ कोसी धार आ चरण पखारैत स्वयं देवनदी गंगा धार बहि रहल छथि – ई तिरहुतदेश त मिथिलाक मूल छीहे, एकर प्रभावक्षेत्र गंगापारहु केर सन्थालपरगना, मगध ओ झारखण्ड धरि स्पष्टे अछि।
बंगालक संस्थापक लोकनि कोनो बेजा नहि कहैत छथि जे मूल हमरो मिथिले थिक। मिथिलाक पाण्डित्य आ नादिया (बंगाल) केर पाण्डित्य पर कतेको रास तुलनात्मक विश्लेषण कतिपय चर्चा मे उल्लेख कयल जाइछ।
आजुक परिदृश्य एहेन छैक जे मैथिल कतहु कियो नहि, राजनीतिक पहिचान बदलि चुकल अछि। बड लम्बा इतिहास छैक एकर। भौगोलिक पहिचान सेहो दरभंगा-मधुबनी वला मिथिलाँचल, कतहु मिथिलानगरी यानि जनकपुर, कियो कोसी, कियो तिरहुत, कियो वैशाली, कियो सीमाँचल, कियो मोरङ्गदेश, कियो मधेश आदि कहिकय एकर विहंगम स्वरूप केँ अपना हिसाब सँ वर्णन करैत अछि।
यथार्थता इहो छैक जे मिथिलाक वर्णन शास्त्र-पुराण मे विशद् रूप मे कयल गेल अछि आ तेँ ई अकाट्य इतिहास बनिकय आइ धरि जिबैत अवस्था मे देखि रहल छी हम सब।
“मिथिलेति त्रिवर्णीयं श्रुतितोऽपि गरीयसी।
मकारो विश्वकर्त्ता च थकार: स्थितिपालक:॥
लकारो लयकर्त्ता वै त्रिमात्रा शक्तयोऽभवत्।
प्रणवेन समंविद्धि सर्वाधौध निवारणम्॥”
अर्थात् “मिथिला शब्द मे जे तीन वर्ण अछि, ओहि मे म’कारक अर्थ ब्रह्मा, थ’कार श्रीविष्णु तथा ल’कार लयकर्त्ता रुद्र मानल गेल छथि। आर, एहि तीन ‘म’ ‘थ’ ‘ल’ संग जे ‘त्रिमात्रा’ ‘इ’ ‘इ’ ‘आ’ लागल य ओ ‘शक्ति’ यानि सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती थिकीह। ई शब्द वेदक ॐ-कार बोधक हेबाक कारण सम्पूर्ण पाप-ताप केर संहारकर्त्ता थिक।”
“इमे वै मिथिलाराज आत्मविद्या विशारद:।
योगेश्वर प्रसादेन द्वन्द्वर्मुक्ता गृहेष्वपि॥”
श्रीमद्भागवत केर ई वाक्यांश केँ शिरोधार्य कय पराम्बा जानकीक ध्यान धरैत, वृहद् विष्णुपुराण केर वचन मुताबिक, आत्मविद्याश्रयी हम मैथिल राजा जनकक प्रजा छी। राजारूप प्रजा – हम सब मैथिल छी। जे एहि भाव सँ सहमत नहि छी तिनका जबरदस्ती हम कहू जे अहाँ सेहो मैथिल छी या मैथिल बनू, तेकर जरूरत आब नहि छैक। आब त ग्लोबल विलेज (सम्पूर्ण संसार एक गाम) केर अत्याधुनिक परिकल्पना पर मानव समुदाय अडिग अछि। ई कोनो जरूरी नहि जे अहाँ मैथिल बनी, तथापि मैथिलक परिभाषा बड ओजपूर्ण अछि। कनी मनन करियौक –
पौराणिक आधार पर मैथिल एहि ठामक भूपाल – जनकवंश केँ मानल गेल अछि। विष्णुपुराण मे वर्णित –
कृतौ सन्तिष्ठतेऽयं जनकवंश:॥३२॥
इत्येते मैथिला:॥३३॥
प्रायेणैते आत्मविद्याश्रयिणो भूपाला भवन्ति॥३४॥
विष्णुपुराण मे निमिवंशक राज्य केँ मिथिला कहैत सब राजाक नामक उल्लेख कयल गेल अछि आ अन्त मे हुनका सब केँ जनकवंश केर कहैत ‘इत्येते मैथिलाः’ आ ‘प्रायेणैते आत्मविद्याश्रयिणो भूपाला भवन्ति’ अर्थात् आत्मविद्याक आश्रित भूपाल (राजा) कहल गेल अछि।
एहि महान् उक्तिक व्याख्या हमरा काल्हि धरि (अपन जीवनक बाल्यकाल सँ युवाकाल धरि) नजरि पड़ैत रहल। हम सब माटियेक घर मे, माटियेक वर्तन, माटियेक चुल्हा, माटियेक उपजा, माटिक ठाउं-पीढ़ी, चौका, भगवतीक पीरी आदि मे रहैत छलहुँ। बड पवित्र छल भोजन। शुद्धताक बहुत पैघ विचार छल। सरिसव सागे उपजाकय अयाची समान जीवन जियनिहार अधिकांश छल। एक-दोसरक घर सँ धुआँ निकलल आ भोजन पाकल सेहो देखनिहार छल। सब आत्मविद्याश्रयी ‘मैथिल’ छल। विदेहक सन्तान छल। विदेहे समान छल। तेँ मैथिल छल।
पता नहि, बाद मे रंग-बिरंगी कुव्याख्या सँ मैथिल कतहु बाभन त कतहु सोइत, जातीय संकीर्णता मे केना परिणत भेल तेकर सन्दर्भित साहित्य हमरा पढ़य लेल नहि भेटल, परञ्च व्यवहार मे अपभ्रंश रूप मे जरूर देखायल। हम मैथिल त हम मैथिल केर होड़ सँ एहेन उपद्रवी परिणाम निकलल होयत से अन्दाज लगबैत छी। आब त एहेन-एहेन सन्तान अपनहि परिवार आ अपनहि आंगन मे जन्म लय चुकल अछि जे हमर भाषा केँ सेहो खण्डित करय चाहि रहल अछि। आपसी जातीय वैमनस्यता चरम् पर पहुँचल अछि आ सत्ताक स्वाद लेल तेना भ’ कय लालायित अछि कुसमाज जे अपन ऐतिहासिक विरासत केँ अपनहि सँ लतखुर्दन कय केँ एहि लोक सँ परलोक धरिक भोग केँ पापमय बना रहल अछि।
आत्मविद्याक आश्रय त दूर, खुलेआम आसुरिकता (भौतिक सुख) केँ अपनाकय ‘मैं बड़ा तो मैं बड़ा’क बम्बइया फिल्मी धर्म पर आगू बढ़ि रहल अछि। आइयो जनकरूप ‘मैथिल’ अवश्य छथि, लेकिन हम बहुल्यजनक दृष्टिपटल सँ दूर छथि। जखन हमर अपनहि आँखि मे पिलिया रोग रहत त संसारक हरियरी निश्चितरूपे पियरे-पियर देखायत। तेँ, हम मैथिल मैथिली फुलबारीक रंग-बिरंगी फुल समय पर चेती। बुझबाक यत्न करी जीवनक असल अर्थ, अपन मैथिल पुरखाजन जेकाँ। धन-सम्पत्तिक लोभ मे फँसि पापपूर्ण जीवन सँ बचय जाय। सहज जीवनदर्शन पर शुद्धता सँ पुण्यार्जनक बाट पर बढ़ैत चली।
हरिः हरः!!
पुनश्चः मैथिली जिन्दाबाद पर मैथिली एसोसिएशनक नव कार्यकारिणी गठन सम्बन्धी समाचार – अपन फुलबारीक बात-विचार जरूर पढ़य जाय। ॐ तत्सत्!!
मैथिली एसोसिएशन नेपालक १५ सदस्यीय नव कार्यकारिणी समितिक गठन कयल गेल