मैथिली जिन्दाबाद केर आजुक समाचार जे मैथिली भोजपुरी अकादमी दिल्ली अपन फेसबुक पेज पर मैथिली-भोजपुरी भाषा केँ विखंडित करबाक लेल विभिन्न बोली आदिक नाम पर मंच उपलब्ध करा रहल अछि, गैर-संवैधानिक एवं राजनीतिक शब्दक आधार पर उद्देश्य सँ हंटिकय एहेन काजक विरोध हेबाक चाही – एहि पर अखिल भारतीय मिथिला संघ, दिल्लीक अध्यक्ष विजयचन्द्र झा संज्ञान लैत अकादमीक उपाध्यक्ष नीरज पाठक संग टेलिफोन वार्ता करैत आग्रह कयलनि अछि जे एहि तरहक विवादास्पद कार्य अकादमी द्वारा नहि कयल जाय अन्यथा एकर दुष्परिणाम मैथिली आ भोजपुरी भाषा तथा विभिन्न बोली बीच एक तरहक भेदभाव उत्पन्न करत आर एकरा भाषा विखंडनक कार्य मानल जायत। संघ द्वारा उपाध्यक्ष पाठक सँ ईहो निवेदन कयल गेलैक जे निश्चित सब बोलीक कलाकार, कवि, विद्वान् लोकनि केँ अकादमी स्थान दियए, बेसी सँ बेसी लोक केँ समेटय, लेकिन मूल भाषा मैथिली केर नाम बदलि स्वतंत्र भाषा वा बोलीक नाम पर कदापि एहेन कार्य नहि कयल जाय। एहि तरहक कार्य करबाक अर्थ मूल भाषाक विखंडन होइत छैक ई मैथिलीभाषी केँ मान्य नहि होयत।
एम्हर मैथिली भोजपुरी अकादमीक फेसबुक पेज पर कार्यकारी समिति नाम सँ पुनः एकटा स्पष्टीकरण जारी कयल गेल अछि जाहि मे यथाभावी आ गैर-जरूरी विन्दु सब जोड़िकय विवादित कार्यक औचित्य तकबाक असफल प्रयास कयल गेल अछिः
“सभी माननीय विद्वतजन प्रणाम
अकादमी को इस बात का संज्ञान नहीं था कि
1. जैसा कि विदित हुआ, आप सब अंगिका को भाषा नहीं मानते! यद्यपि अकादमी ने अपने पक्ष से कभी इस तरह का बयान नहीं दिया सिवाय इसके कि बिहार एवं पूर्वांचल की जनपदीय भाषाओं को मंच देने का आशय केवल पेज की लोकप्रियता और अन्य भाषाई लोगों (उन भाषाओं जिनको अन्य राज्य सरकारों ने मान्यता दे रखी हैं) तक पहुंचने का था। इसके अतिरिक्त और कोई उद्देश्य नहीं रहा। बहरहाल, हम सब यह समझ पा रहे हैं कि अंगिका कोई भाषा नहीं है जैसा आप लोग दर्ज कर रहे हैं।
2. फिर एक दुविधा यहाँ आन पड़ी है कि बिहार में जब अंगिका अकादमी बनाई गई तब यह समन्वित विरोध नहीं दिखा? क्योंकि बिहार सरकार ने ही इसे स्थापित तथ्य बनाया है!
3. भाजपा की झारखंड सरकार के मुख्यमंत्री श्री रघुबर दास जी ने अंगिका को द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिया तब यह समन्वित विरोध नहीं दिखा? आश्चर्यजनक बात है।
4. आप सब किसी भाषा के विरोधी हो सकते हैं पर आप सब हमारे लिए हमेशा सम्मानित आदरणीय विद्वतजन हैं और आपकी प्रत्येक सार्थक राय हमारे लिए महत्वपूर्ण है।
5. आप सबके विरोध को देखते हुए यह ज्ञात होता है कि यह निश्चित ही एक गंभीर बात है कि बिहार और झारखण्ड की भाजपानीत सरकारों ने अंगिका को अलग से मान्यता देकर गलत किया है शायद? आप सबको इस हेतु विरोध अवश्य करना चाहिए। परंतु मैथिली भोजपुरी अकादमी ने अपने पेज के विस्तार हेतु और सदाशयता से बिना किसी राजनीतिक विचार बिंदु के पूर्वांचल और बिहार में व्यवहृत भाषाओं के साहित्यकारों, संस्कृतिकर्मियों को अपने पेज से लाइव होने का अवसर दे रहा है। जैसा कि कहा गया है पूर्णतया पेज को सबके लिए सर्वसुलभ बनाने के लिए है न कि किसी भाषा के पक्ष और किसी के विपक्ष में। अकादमी प्रत्येक भाषाओं मातृभाषाओं का सम्मान करती है और करती रहेगी। क्योंकि हमें ऐसा लगा कि दो बड़ी और समृध्द भाषाओं को उदार हृदय से अन्य जबानों जिनको कोई मंच नहीं मिलता, उनको भी इस प्लेटफॉर्म से यबक सामने लाया जाए। बहरहाल,
6. आप सब विद्वानों के टिप्पणियों को अपना आधार बनाकर अकादमी भाजपा समर्थित बिहार सरकार और झारखंड सरकार से यह पूछना चाहेगी कि किन तथ्यों के आधार पर उन्होंने अकादमी और द्वितीय राजभाषा का स्थान प्रदान किया।
7. आप सभी सम्मानित विद्वानों से आग्रह है कि आप सब भी इन दोनों राज्य सरकारों से सामूहिक रूप से अवश्य पूछिये कि उनसे यह तथ्यात्मक भूल कैसे हुई?
यह अकादमी मैथिली और भोजपुरी के लिए पूर्णतया समर्पित संस्था है। कोरोना काल में लोकडाउन पीरियड तक ही ऐसे आयोजन का सूत्रपात किया गया था। इसका बस जितना कहा गया उतना ही उद्देश्य रहा है।
आप सब के सार्थक सुझावों का स्वागत है
सादर
कार्यकारी समिति
मैथिली – भोजपुरी अकादमी, दिल्ली सरकार”
विदित हो जे दिल्ली सरकार द्वारा गठित मैथिली भोजपुरी अकादमी मूलतः मैथिली भाषाभाषीक अनुरोध पर शीला दीक्षित केर अगुवाई मे रहल कांग्रेस सरकार द्वारा गठन कयल गेल छल जाहि मे मैथिली संग-संग भोजपुरी केँ सेहो जोड़ि देल गेल छल। अखिल भारतीय मिथिला संघ केर अध्यक्ष विजयचन्द्र झा एहि बातक विरोध जतबैत आबि रहला अछि जे मैथिली मात्र संविधानक आठम अनुसूची मे सूचीकृत भाषा रहबाक कारण एकरा लेल स्वतंत्र अकादमी हुअय, तथापि एक जनप्रिय नेतृ शीला दीक्षित केर सद्भावना सँ भोजपुरी भाषाभाषी केँ समेटबाक कार्य केर ओ समर्थन कयलनि, मुदा आइ धरि संयुक्त उपक्रम सँ कोनो तरहक आर्थिक सहयोग तक नहि लेने रहबाक आख्यान स्मरण करैत वर्तमान केजरीवाल सरकारक अधिनस्थ अकादमी द्वारा उपरोक्त अवैधानिक कार्य प्रति असंतोष जतेलनि अछि। एहि क्रम मे उपाध्यक्ष नीरज पाठक संग बातचीत करैत समाधान लेल अनुरोध कयलनि अछि। मैथिली जिन्दाबाद सँ बातचीत मे ओ ईहो बतेलनि जे यदि वर्तमान कार्यकारिणी एहिना मनमानी काज करैत रहत तँ एकरा लेल उच्च न्यायालय मे रिट सेहो दायर कयल जायत। कानूनी उपचार सँ न्याय ताकल जायत।
अकादमीक फेसबुक पेज पर एहि विषय पर काफी जोरदार घमर्थन चलि रहल अछि। एहि क्रम मे अंगिकाभाषी सज्जन केर टिप्पणी सेहो अकादमीक पेज सँ मैथिलीभाषीक विरोध पर तीक्ष्ण टिप्पणी करैत आपसी विभाजनक प्रमाण स्वयं राखि देल गेल अछि। एहि विन्दु पर मैथिली जिन्दाबाद केर संपादक प्रवीण नारायण चौधरी जवाब दैत कहलखिन अछि –
“बिहार में अंगिका या बज्जिका भाषिका को भाषा के रूप में विकसित करने, लेखन-प्रकाशन व विभिन्न बौद्धिक गतिविधियों को बढ़ाने अकादमी का गठन से मैथिली भाषाभाषी दुःखी नहीं हैं। अच्छी बात होगी कि हमारे भाई लोग भी विकसित होंगे। हमसे कित्ता काटकर ही सही कहीं बढ़ेंगे तो भी हमको प्रसन्नता होगी। दिल्ली में भी ये लोग पृथक अकादमी गठन करा लें तो खुशी होगी। लेकिन मैथिली अकादमी में घुसपैठ कराने और जानबूझकर मैथिली को कमजोर, विखंडित सिद्ध करने की कुत्सित राजनीति गलत है। बिहार में बनी अकादमी का तर्क मैथिली भोजपुरी अकादमी द्वारा देना और साथ में अंगिका के सृजनकर्ता द्वारा आपसी प्रतिस्पर्धा की भड़काऊ बयान जारी करना यह सिद्ध करता है कि मैथिली भोजपुरी अकादमी का मनसा किस तरह फूट डालो शासन करो जैसी है। इससे अकादमी मैथिली भोजपुरी की कल्याण कम अकल्याण ज्यादा कर रही है। यह खतरनाक राजनीतिक षड्यंत्र नहीं तो और क्या हो सकता है!”
बिहार मे अंगिका वा बज्जिका लेल स्वतंत्र अकादमीक गठन, झारखंड मे दोसर राजभाषाक रूप मे मान्यता, ओहि दुइ राज्य केर बीजेपी सरकारक निर्णय अनुसार एहि बोली सब केँ भाषाक दर्जा देबाक उदाहरण आदि वर्तमान प्रसंग सँ कोनो सरोकार नहि रखैत अछि। मैथिली भोजपुरी अकादमीक निहित विधान अन्तर्गत बिहार, झारखंड व आन राज्य राजनीतिक परिदृश्य अनुसार काज करबाक कोनो उद्देश्य स्पष्टतः नहि अछि। अतः मैथिली आ एकर बोली बीच मतभेद उत्पन्न करबाक कार्य अकादमी द्वारा नहि कयल जेबाक चाही। निश्चित सभक सहभागिता सुनिश्चित हुअय, लेकिन या त मैथिली या भोजपुरी भाषा-बोलीक रूप मे। एहि सँ इतर लेल एहि मंचक दुरुपयोग आपस मे मतभेद केँ आर गहींर टा करत, एहि सँ बचबाक जरूरत अछि। ई भावना संपादक चौधरीक रहलनि।