कहब आसान छैक मुदा….
‘दहेज मुक्त मिथिला’ – कतेक सहज आ सुन्दर सुनय मे लगैत अछि… लेकिन ई आत्मा सँ स्वीकार करब बहुत कठिन छैक। तेकर कारण अनेक य। दहेज प्रथा सँ वैह युवा वा युवती अथवा गार्जियन मुक्ति पाबि सकैत अछि जेकरा पास हृदय मे एकरा सँ घृणा हो, लोभ नहि बल्कि त्यागक भावना हो। आर त्याग के कय सकैत अछि? सब? नहि! बिल्कुल नहि। त्याग वैह करैत अछि जे अपन ओकादि बनेलक। जेकरा अपन निजी उपलब्धि पर आत्मविश्वास बनि गेल छैक वैह टा दोसरा सँ कोनो तरहक कैञ्चा (धन) अथवा चीज-वस्तुक लोभ सँ दूर भऽ सकैत अछि। दहेज मुक्त मिथिला वैह टा भऽ सकैत अछि।
बात करब ताहि समयक जहिया दहेज केँ स्टेटस सिम्बल बुझल जाइत छल समाज मे। लोक उत्कीरना बुझय ई सुनबैत जे हमर बेटा केँ एतेक लाख नगद आ चीज-वस्तु त कतेक-कतेक कि-कि न देलक! हकार दय केँ लोक दहेजक समान देखबैत छलैक। कतहु-कतहु आइयो धरि यैह रीत कायम अछि, धरि हमरा बुझने आब नीक लोक कहेनिहार ई सब देखौंस मे नहि पड़ि रहल अछि। तखन त अहंकारी-प्रदर्शनकारी एखनहुँ समाज मे बहुत रास भेटिये जायत जे दहेजक पाय पर घर ढोढबबैत अछि लेकिन समाज मे अपन सेखी बघारने घुरैत अछि। त ओहेन समय मे सेहो किछु लोक दहेज केर पैसा सँ फुरफैंस्सी नहि करबाक वचन लेने छल।
ओकर आसपासक लोक बड खिस्सा करैत रहलैक… कहैत रहलैक जे ‘धू! ओकरा छहिये की… कथी पर कियो दहेज देतैक!’ आदि। लेकिन लोकक खिस्सा आ कौचर्य मे ओ नहि फँसय चाहल। ओकर सोच ई छलैक जे जाहि कोनो परिवारक बेटी सँ हमर विवाह हुअय ताहि परिवार केँ कोनो तरहक कष्ट कदापि नहि हेबाक चाही। बड़ा कम खर्च मे सब किछु भऽ जाय। अपनो खर्च करब लेकिन जतबा अछि ततबे मे सब निर्वाह करब। ओकरा पास ताहि समय जहिया सोना ३ हजार रुपये भरी छलैक ताहि दिन २५ हजार टका बचत के पैसा छलैक। लगभग २-३ भरि मे विध जोगर गहना बनबा लेलक, एकटा औंठी ६ आना के, सवा भरी के मंगटीका, कान, नाक सबटा मिलाकय ओकरा सोनाक खरीद पूरा भऽ गेलैक। तेकर बाद कपड़ा-लत्ता अपन परिवार लेल कम, सासूर परिवार मे विध लेल उचित मात्रा मे कीनि लेलक। विवाह मे जे कनियां लेल साड़ी आदि देबय पड़ैत छैक से सबटा कीनि लेलक।
बरियाती अनबाक आ नीक सँ सम्मान करैत पुनः गाम धरि पहुँचा देबाक लेल ओ अपन ससूर सँ अनुरोध केलक जेकरा ओ सब सहर्ष स्वीकार कय लेने छलाह। जखन वरक त्याग केर भावना रहैत छैक त सासूर पक्ष सेहो बड़ा उदारता सँ सब काज करैत छैक। से ओ विवाह केर बरियाती आ सब काज एतेक सौहार्द्रता आ प्रसन्नता मे सम्पन्न भेलैक जे आइ ३० वर्ष बादो धरि लोक याद करैत छैक। कहैत रहैत छैक जे फल्लाँक विवाह मे चूड़ा सेहो एहेन खुऔने छल जे हाथ गमगम करय… मिठाई, दही, आम, माछ, मांस, सब सुस्वादु भोजन ओहि बरियाती सब केँ एखन धरि मोन छैक। सब आइ धरि आशीर्वाद दैत छैक। कनियां-वर सेहो खूब प्रसन्न अछि। भरल-पुरल परिवार, कोनो चीजक कमी नहि छैक। लेकिन ताहि दिन ओकरा सौंसे गाम आ समाजक लोक बड बेसी उल्हन-उपराग देने छलैक… परोक्ष रूप सँ।
आजुक युवा मे सेहो एहि तरहक आत्मबल रहतैक तखनहि दहेज मुक्त मिथिला संभव अछि। लेकिन सोच ई रहतैक जे फुरफैंस्सी सासूर केर पाइ पर करब आ झूठे लोक केँ कहबैक जे हम आदर्श विवाह केलहुँ…. त ब्यर्थ मे आदर्श केँ सेहो लाज हेतैक जे हमर नामकरण आ परिभाषा जे बनेलनि ओ लाजे गर्त मे हेता। आब युवा आ युवती दुनू अपन-अपन पैर पर ठाढ भऽ रहल अछि। दुनू केँ चाही जे अपन विवाह मे कोनो खर्च आडम्बर आ देखाबा मे बर्बाद नहि करी। अपन-अपन खर्च करी। केकरो पर कोनो दबाव नहि पड़य। जेकर जेहेन सामर्थ्य हो, तेहने खर्च करी। तखन अहाँक मिथिला जरूर दहेज मुक्त होयत। चलू, तखन भेटैत छी नव दहेज मुक्त मिथिला मे!
हरिः हरः!!