कियैक कहल जाइछ जे दुनिया महाप्रलयक दिशि जा रहल अछि

मानवीय उपद्रव सँ प्रकृति आ जीवमण्डल बीच संतुलन खलबलाइत - संसार तदनुसार विनाशक तरफ - पढू संपादकीय।

universeहालहि घटल विभिन्न महाविनाशकारी मानव तथा जीव-संहारक प्राकृतिक आपदाक संख्या बढैत देखि गलगुल-गलगुल होमय लागल अछि जे आब ई संसार प्रलयंकारी विनाशक दिशि उन्मुख अछि। अलग-अलग धाराक अलग-अलग दाबी – ज्योतिषक गुना-भाग एक तरफ आ दोसर तरफ विज्ञानक अपन दृष्टि आ दाबी अछि। तंत्र-मंत्र आ वेद-पुराणक बात पर खींच-तान चलि रहल अछि। मनुष्य हवा मे उड़ैत-उड़ैत चन्द्रमा, मंगल, वृहस्पति पर तऽ पहुँचिये गेल, सूर्य मे सेहो कोनो दिन पहुँचब ई विचार केँ नकारल नहि जा सकैत छैक। एकरा संयोग कहि सकैत छियैक जे हिन्दू पौराणिक शास्त्र मे एतेक दाबी कैल जा चुकल छैक जे हनुमानजी बच्चे मे एक दिन फल बुझिकय रविकेँ अपन ग्रास बना लेने छलाह। चारूकात अन्हार भऽ गेला पर लोक सब कारण पता लगबैत कतेक विनती केलक तखन परमात्मा – अखिल ब्रह्माण्डक स्वामी रवि केँ हनुमानजीक ग्रास सँ मुक्त करौलनि। आब एकटा देवकुलक बच्चा मे ई सामर्थ्यक बात मनुष्य केँ यदि सूर्य धरि अपन पहुँच बनेबाक प्रेरणा दैत छैक तऽ एहि मे बेजाय किछु कियैक कहल जाय। लेकिन अनेक आविष्कार आ आश्चर्य भरल वैज्ञानिक योगदान सँ मानव सुख एक दिशि दुइ-चारि डेग बढिते छैक आ कि दोसर दिशि कोनो न कोनो प्राकृतिक आपदा ओकरा अपन ओकादि याद करा दैत छैक।

प्रकृति ओना तऽ जीवमण्डलक प्रत्येक जीव तथा नियति लेल सहयोगीक भूमिका मे छैक, प्रकृति प्रति पर्यावरणविद् केर मतसँ मानवकार्य सेहो हित मे हो तखनहि संतुलन रहत कहब कोनो बेजा नहि छैक। परन्तु भौतिकतावादी संसारक विकास मे अनेको कार्य प्रकृति विरुद्ध कैल जा रहलैक अछि, परिणामस्वरूप ग्लोबल वार्मिंग आ खतरनाक क्रिया-प्रतिक्रिया सँ विनाशकारी त्रासदीकेँ मानू जे मानव स्वयं आमंत्रित कय रहलैक अछि तहू सँ विमति नहि राखल जा सकैत छैक। संतुलन कोना बनत? ई प्रश्न क्रमश: गूढ भेल जा रहलैक अछि। पहिने अहाँ विनाश केँ आमंत्रित करू, बाद मे राहत बाँटू। पहिने खुराफात आ अन्त मे सौरी – ई सौरी अंग्रेजीक छोट शब्द बड़का काज पृथ्वी पर तऽ करत, मुदा प्रकृतिक अभियांत्रिकी केर संचालनकर्ता धरि ई आवाज संस्कृत टा मे पहुँचबाक दाबी करैत छैक सनातन धर्मक गूढ महाशास्त्र वेद। ताहि संस्कृतक वर्तमान मे कतेक परिचर्जा कैल जाइत छैक से किनको सँ छूपल नहि अछि। एतय तऽ राजनीति सबसँ बड़का शास्त्र थिकैक, जाबत होश अछि, खूब पिबू। यैह जीवन छैक। तथापि कतहु न कतहु, कोणो-सान्हिमे ऋषि-मुनि जीवित होयबाक चरित्र सेहो अभरैत छैक आ एहि बीच खींचा-तानी मे संसार चलैत जा रहलैक अछि, अपन गति सँ। निर्बाधरूपेण ई अहिना चलैत रहतैक। समयक वर्तमान धारा संग हम-अहाँ चलि रहल छी। बस, अपन भागक काज करैत चलू!