मैथिली साहित्य केर विकासक इतिहास पर स्वयं मैथिल विद्वान् कतेक शोध केलनि ई सर्वविदिते अछि, लेकिन अंग्रेज विद्वान् आ शोधकर्ता लोकनिक शोध तथा विचार सँ मैथिली भाषाक विस्तृत रूप वैश्विक परिवेश मे प्रसारित भेल एकर विलक्षण विवरण भेटैत अछि। डा. जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन केर नाम एहि पाँति मे सर्वोपरि अछि। योरोपिय देश मे जर्मनी, बेलायत, फ्रांस आ लगभग हरेक विकसित राष्ट्रक विद्वान् द्वारा मैथिली पर किछु न किछु कार्य करबाक चर्चा बेर-बेर सुनैत आबि रहल छी। संयोजनक कमी आ मैथिली प्रति सरकारी उपेक्षा सँ ई सब महत्त्वपूर्ण कार्यक विवरण कतहु एकठाम संकलित नहि भेटैत अछि, लेकिन अलग-अलग विद्वान् व विचारक केर शोधपूर्ण लेखनी सँ समय-समय पर एहेन जानकारी हमरा सबकेँ उपलब्ध होइत रहैत अछि। डा. रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा लिखल पोथी विद्यापति के पदावली मे सेहो एहेन कतेको उक्ति सँ दर्शन करबाक सौभाग्य भेटल छल, जाहि मे विद्यापतिक पदावलीकेँ सूर्य आ चन्द्रमाक अस्तित्वक संग-संग जिबैत रहबाक दावी देखि कतबा प्रेरणा भेटल छल से शब्द मे कोना राखल जा सकैत छैक, बस सृजनशक्ति सँ सींचित साहित्य प्रति आकर्षण ओतहि सँ शुरु होयबाक व्यक्तिगत अनुभव रखैत छी।
गाम-घरक परिवेश मे पलल-बढल जीवन लेल ग्रामीण संस्कृतिक अतिरिक्त किताबी शिक्षाक अलावे बाहरी ज्ञान प्राप्त करबाक साधन एक समय रेडियो टा छलैक। बड़-बुजुर्ग लोकनि शख सँ रेडियो सदिखन काँख मे रखिते टा छलाह। समय-समय पर समाचार आ संगीत, नाटक, चर्चा, आदिक प्रस्तुति रेडियो द्वारा सुनल जाइत छल। रेडियो मे ताहू दिन विभिन्न वेभ मेगाहर्ज पर अलग-अलग भाषाक विचार-विमर्श सुनबा लेल भेटैत रहल छल। विज्ञानक चमत्कार आइ जतेक विस्तृत रूप मे अछि से १९९०-२००० केर दशक सँ पहिने कम छल। दूरदर्शन आ मोबाइल केर चर्चो नहि छल, मुदा रेडियो फ्रीक्वेन्सी ई संकेत जरुर देने छल जे भविष्य मे सुनबाक संग लोक देखियो सकत। मैथिली भाषा सेहो रेडियो मे समुचित स्थान पौलक, एहि पर शोधमूलक आलेख नहि पढि सकबाक कारणे बेसी विस्तार सँ नहि लिखि सकैत छी लेकिन एतेक अनुमानो सँ कहि सकैत छी जे रेडियो प्रसारणक संग-संग मैथिली भाषाक प्रयोग रेडियो द्वारा शुरु कैल गेल देश स्वतंत्रता प्राप्तिक बादे।
मैथिली लोक-गीत, गाम-घरक परिवेश पर विचार-चर्चा, खेती-पाती संबंधी जानकारी आ नाटक – यैह किछु विधा द्वारा मैथिली भाषा रेडियो मे अपन स्थान अन्य भाषाक समानान्तर स्थापित केलक। पूर्व मे प्रस्तुत एक नाटक केर दृश्य – ओ पुरान तस्वीर फेसबुक पर आकाशवाणी पटना द्वारा शेयर कैल देखबाक अवसर भेटला सँ ई लिखबाक लेल प्रेरित भेलहुँ; संगहि एहि दिशा मे आरो महत्त्वपूर्ण शोधमूलक आलेखक संग एक स्मारिका बनय सेहो लालसा बढल। डा. गंगेश गुंजन – प्रख्यात मैथिली तथा हिन्दी साहित्यकार पूर्व मे रेडियो कार्यक्रम द्वारा मैथिली केँ उत्कर्ष बढौलनि। हुनकहि मार्फत ई तस्वीर एतहु राखय लेल संयोग भेट रहल अछि। एहि तस्वीर मे अन्य प्रसिद्ध मैथिली कवि प्रभास कुमार चौधरी सहित अन्य पुरोधागण अपन ओहि जमानाक जिवट-स्वरूप मे देखा रहला अछि। डा. गुंजन एहि मे सँ बहुतोक पछात परिचय प्रोफेसर, निदेशक, वरिष्ठ अधिकारी आदिक रूप मे करैत छथि। विस्तार सँ पैसबाक समय नहि रहबाक कारणे बस विषय केँ छूबैत रेडियो द्वारा मैथिली केँ देल प्राणदान पर हम केन्द्रित रहय लेल चाहैत छी। ई स्पष्ट अछि जे रेडियो द्वारा मैथिली केँ अंगीकार करब एहि भाषाक आयू वृद्धि करय मे महत्त्वपूर्ण भूमिकाक निर्वाह केलक।
बाद मे आकाशवाणी दरभंगा सँ संचालित अनेको रेडियो कार्यक्रम हम ग्रामीण परिवेशक लोक वास्ते जीवनचर्याक हिस्सा बनबाक अनुभूति सेहो प्राप्त केने छी। खास कय भोर आ साँझ – भोर रेडियो द्वारा रामायण आ आध्यात्मिक प्रस्तुतिक संग शुरु होइत छल, खन प्रादेशिक समाचार, खन बिबिसी आ खन अल ईण्डिया रेडियो केर सिलोन केन्द्र सँ फिल्मी गीतक बिनाका प्रस्तुति, कतेको स्वाद सँ भरल छल रेडियो। संध्याकालक ‘गाम-घर’, ताहि पर खुरखुर भाइ, बटुक भाइ, कोन बहिन आदिक प्रस्तुति आ चर्चाक मिठास सँ सराबोर रहैत छलहुँ। ताहि मे लोकगीतक संङोर सेहो विलक्षण होइत छल। छोट-छोट नाटिका आदिक प्रस्तुति सेहो समय-समय पर भेटिते छल। अनेको सामाजिक कूरीति पर प्रकाश दैत रेडियो कार्यक्रम मानू जे संस्कार मे कमीकेँ पूरा करबाक कार्य बखूबी करैत छल। मैथिली मे कैल गेल प्रस्तुति सँ अंग-प्रत्यंग एकटा अलगे सजीवता प्राप्त करैत छल। ओना हिन्दी या अंग्रेजीक ज्ञान सच पूछी तऽ रेडियो सँ शुरु भेल, विद्यालय मे शिक्षक केर हिन्दी प्रयोगक कोनो महत्त्व नहि होइत छल, जाबत ओ मैथिली मे बात नहि बुझबैथ ताबत संतोष नहि होइत छल। तैँ रेडियो जीवन-संस्कारक अभिन्न अंग बनि गेल कहबा मे कोनो अतिश्योक्ति नहि आ मैथिली रेडियो द्वारा सुनब एकटा अलग उत्साह, जोश आ हिम्मत दैत छल समस्त जनमानस केँ।
हालहु एफएम रेडियोक जमाना मे धीरेन्द्र प्रेमर्षि आ रूपा झा द्वारा संचालित रेडियो कार्यक्रम हेल्लो मिथिला मैथिल जनमानसक मानसपटल पर एकटा अलगे छाप छोड़लक। खासकय एहि मे जेना टेलिफोन द्वारा आम जनमानस केँ अपन विचार रखबाक अवसर देल गेल – संगहि देश-विदेश कतहु रहनिहार केँ रेडियो पर फोन लगाय अपन लोक धरि आवाज आ समाद पहुँचेबाक मौका भेटल आ संगहि प्रेमर्षिजी तथा रूपाजी केर विकसित ज्ञान सँ समाजकेँ एकटा दिशा-दशा परिवर्तन हेतु जे प्रेरणा भेटल ताहि सब सँ रेडियो कार्यक्रमक महत्त्व मैथिली लेल आइयो ओतबे प्रासंगिक आ आवश्यक बुझाइत अछि। वास्तव मे मिथिला आइयो गामहि मे ९०% जिबैत अछि। गामहि सँ जुड़ल बातक जोर आइयो चलैत छैक। मोबाइल, टेलिविजन, इन्टरनेट – कतेको प्रकारक आधुनिक सुविधा आबियो गेलाक बावजूद मिथिला गामक परिवेश मे बाँचल अछि आ रेडियो ओतबे आवश्यक आइयो छैक।