महाकवि विद्यापति सँ भेटल प्रेरणा

संपादकीय – मई १०, २०१७.

सबसँ पहिने त ई कहि दी जे महाकवि कोकिल विद्यापतिक नामहि सुमिरन एतेक सुखदायी अछि जेना हम हिनका स्मरण नहि कय स्वयं परमपिता परमेश्वरक ध्यान कय रहल छी, सचमे भगवान् समान विद्यापतिक ध्यान काज हमर मानसपटल मे काज करैत अछि। अपन नित्य दैनन्दिनी मे करदर्शन, विष्णुप्रिया (धरती माता) केँ प्रणाम केला उपरान्त मूर्ति-दर्शन व आत्मचिन्तनक क्रम मे गणेशजी आ तेकर बाद विद्यापति जीक दर्शन-स्मरण, जन्मदाता जनक (पिता) केर दर्शन-स्मरण, पुनः बद्रीविशाल, राधा-कृष्ण, गौरी-शंकर-गणेश, रामभक्त जानकीदूत महावीर, तुलसी, सूर्य केर दर्शन-प्रणाम करब अपन सौभाग्य बुझैत हरेक नव दिनक आरम्भ करैत छी। ईश्वर-परमेश्वरक मूर्ति दर्शन सँ आत्मचिन्तन एवम् आध्यात्मिक अनुभूतिक चरम विन्दु ‘मुक्ति’ पेबाक अनुभव होएत अछि।
 
विद्यापतिजी एक महापुरुष भेलाह। हुनका अवतार सेहो कहल जाएछ। गीता मे निर्दिष्ट नीति अनुरूप कोनो महान पुरुष अपन कइएको जन्म सँ अर्जित धर्म ओ आत्म-अनुभूतिक आधार पर नया जीवन मे माता-पिता, कुल-परिवार, संगी-साथी, जीवन सँ जुड़ल विभिन्न उपलब्धि आदि हासिल करैत अछि। विद्यापतिक बाल्यकाल सँ जीवनोपरान्त धरिक सब वृत्तान्त मे पूज्य श्रीमान् केर दर्शन त भेटिते अछि, हुनकर जीवन-चरित्र सँ समस्त मानव समुदाय लेल सेहो बड पैघ शिक्षा भेटैछ। ‘विद्याधनं सर्वधनं प्रधानम्’ – हिनक प्रखरता आ तीक्ष्ण बौद्धिक प्रस्तुतिक क्षमता हमरा सर्वाधिक प्रभावित करैत अछि। जखन कतहु मौका भेटल, विद्यापति आत्मविश्वास सँ भरल प्रस्तुति रखैत छलाह, निश्चिते राजा एवम् प्रजा दुनू केँ प्रीत होएत छल।
 
विद्यापतिक अल्प वयस सँ लोकप्रिय बनबाक बात सँ जरनिहार लोकक कमी नहि छल सेहो स्पष्ट अछि। भिन्न-भिन्न तरहें निन्दा आ आलोचना हिनको होएत छल। आलोचक केँ डाह होएत छलन्हि। कूतर्क सँ विद्यापति केँ ‘निम्न दर्जाक व्यक्तित्व’ बनेबाक लेल मिथिलाक कुचक्री खेलक्कर विद्वान् तहियो प्रयास करैथ, मुदा प्रत्युत्तर मे विद्यापति मन्द मुस्कियाइत तेहेन तर्क राखि दैथ जे आम जनमानस मे पहिलो सँ बेसी लोकप्रियता हुनके भेटैन। एहि सँ हमरा लोकनि केँ सेहो सीख भेटैत अछि जे डाही – दम्भी प्रतिद्वन्द्वी सँ कथमपि ईर्ष्या आ प्रतिशोधक भावना सँ नहि बल्कि हुनका अपनहि दम्भक ताप सँ गलय लेल छोड़ि देबाक चाही। वर्तमान भौतिकतावादी युग मे ई नीति आरो बेसी कारगर हेबाक बहुत रास अनुभव हम अपन आइ धरिक जीवनकाल मे समेटने छी। एहि प्रेरणाक मूल स्रोत मे माता-पिता-गुरु-परिजन संग महापुरुषक रूप मे विद्यापति एकमात्र स्रोत छथि।
 
संस्कृत भाषाक प्राथमिकता, श्रेष्ठता आ सर्वोच्चता रहैत विद्यापति जनवाणी ‘अवहट्ट’ (तहियाक मैथिली) केँ लेखन-वाचन मे महत्व देलनि। एहि लेल सेहो ताहि समयक विभिन्न नामी-गामी विद्वान् हुनकर कठोर आलोचना कयलाह, परन्तु विद्यापतिजी तर्क रखैत कहलखिन जे संस्कृत भाषा पर सभक पहुँच नहि छैक, ई मात्र विद्वान् आ पारखी लोक बुझि पबैत छथि। बरु हम देसिल वयना (मातृभाषा) मे लिखब-पढब त जन-जन केँ बुझय मे अओतैक। मर्म जतेक बेसी लोक बुझत, लेखनीक महत्व ततेक बेसी होयत। आर सब केँ बुझल अछि जे लगभग ८०० वर्ष पूर्व चलल ई विद्यापति सूत्र केँ आइ धरि कतेक महापुरुष लोकनि अपनौलनि आ कतेक उच्च मूल्यक प्रतिष्ठा एवम् प्रसिद्धि पउलैन। हम सेहो एहि प्रेरणा सँ वंचित नहि छी। दुनियाक भाषा सँ लैत राष्ट्रीय स्तरक भाषा मानल जायवला भाषा मे लेखनी केलहुँ मुदा आत्मसंतोष मैथिली लेखन सँ भेल, प्रसिद्धि जे किछु भेटल अछि ओ मात्र अपन मातृभाषाक सेवा सँ। नहि त कतेक लोक जेकाँ हमहुँ कमइतहुँ-खइतहुँ आ संसार सँ चैल जइतहुँ, पूछनिहार कतहु कियो नहि रहैत। त जीवनक आजुक उपलब्धिक मूल कारकतत्त्व मे विद्यापति सँ भेटल प्रेरणा शक्ति कार्यरत अछि ई मानय मे कनिको हर्ज नहि।
 
राजधर्म, राष्ट्रीयता, राज्यरक्षा – एहि गुण सँ सम्पन्न छलाह हमर ईष्ट विद्यापति। अपन जिम्मेवारी मात्र लेखक या कविक रूप मे नहि, बल्कि राज्यरक्षक सिपाही बनिकय – लड़ाकू वीर बनिकय सेहो मिथिलाक रक्षार्थ ओ अपन जीवन लगौलनि। आइ जँ हमरा लोकनि हेरायल-भोथियायल मिथिलाक वैशिष्ट्य केँ स्थापित करबाक लेल मिथिला राज्यक बात करैत छी त निश्चिते एकर प्रेरणादाता विद्यापतिजी थिकाह। देखिते छी – चोर-बनोर केर फोटो विधानसभा, संसद, राष्ट्रीय सभागृह आदि मे लागल अछि; मुदा हमरा लोकनिक योगदानदाताक अवहेलना कोन स्तर धरि भेल अछि से किनको सँ छूपल नहि अछि। भारत दिश जाहि राज्य मे गछारल अछि मिथिला ओहि ठामक राज्यगीत मे एहेन महापुरुष लेल कोनो स्थान नहि, धरि राजनीति सँ प्रेरित अन्य पुरुषक चर्चा टा भेटैछ। विद्यापति यवन शासकक आक्रमणकारी सँ संघर्ष करैत मिथिलाक अस्तित्व जोगेबाक लेल वीरतापूर्ण ढंग सँ बौद्धिक सम्पदा, राजा, राजाक रानी आदिक रक्षार्थ आजीवन योगदान देलनि। हमहुँ संकल्पित छी जे आजीवन अपन मौलिक पहिचान ‘मिथिलाक पहिचान – मैथिल’ प्राप्त करबाक लेल संघर्ष करब।
 
मिथिलाक सभ्यता मे शाक्त, शैव आ वैष्णव तिनू सम्प्रदायक स्थिति समान अछि। भक्ति सँ शक्ति अर्जित करब एतुका जीवन प्रणालीक अभिन्न अंग अछि। घरे-घर मे शक्तिपीठ स्थापित अछि। भगवतीक सीर – कुलदेवीक आराधना बिना कोनो शुभ कार्य पूरा नहि होएछ। तुलसी आ सूर्य केँ जलार्घ्य स्त्री-पुरुष समान रूप सँ अर्पण करैछ। ताहि धरती मे अवतरित विद्यापति समान महापुरुष केर भक्ति कथा सेहो ओतबे प्रेरक आ अनुकरण योग्य अछि। जहिना विद्यापति अपन सेवक उगना मे महादेवक दर्शन कएलनि, उगना संग भांगक प्रसंग सँ लैत गंगाजल ग्रहण करबाक प्रसंग आ फेर महादेवक दर्शन – ई सब हमर देह केँ सिहरा दैत अछि। आइयो अपना संगे रहल मित्र, भाइ, ड्राइवर, सेवक – एहि सबमे जँ हम महादेवक दर्शन कय हुनके जेकाँ आदर देब त निश्चिते ओ सब कियो हमरा लोकनिक रक्षक बनिकय महादेव समान सिद्ध देवताक देवता बनिकय रक्षा करता। जेना विद्यापति हाक्रोश पारिकय उगनाक अन्तर्धान उत्तर कानय लगलाह, हमहुँ अपन जीवन मे एहेन निश्छल-अटल मित्र केँ हेरा गेला पर कनैत छी।
 
अन्त मे, विद्यापति जीद्द ध लेलाह। कहार केँ कहलखिन जे राख एत्तहि। आगू जेबाक इच्छा आ शक्ति नहि रहि गेलौक। बहुते वर्ष सँ गंगाक तट पर हम जाएत रहलहुँ, आइये भक्त-भगवान बीच अटूट संबंधक परीक्षा भऽ जेतौक जे आबयवला पीढी केँ प्रेरणा देतौक। कतेको प्रवीण विद्यापतिक मार्गचित्र पर चलतौक। राखे एत्तहि। गंगा केर भक्ति जँ सच हृदय सँ कएलहुँ त आब अन्तिमकाल ओ स्वयं हमरा अपन कोरा मे अन्तिम साँस लेबाक मौका जरुर देतीह। आर, सब केँ पता होयत जे गंगाजी अपन धार केँ मोड़ि समस्तीपुर जिलाक ओहि स्थान धरि वेग सँ एलीह आर महाकविक महाप्रयाण मे सहयोग केलीह। हमहुँ सब जे काज करैत छी, बस भक्तिपूर्ण भाव सँ स्वयं भगवानक आराधना कय, केवल शरणागत भक्त बनिकय। रक्षा हुनकर हाथ मे छन्हि। कर्म हमरे करबाक अछि। विद्यापतिजी केर मूर्ति राखि दीप जरा भगवान् केँ बजा लैत छी आर मैथिलीक हरेक कार्यक्रम स्वयं महादेवक त्रिशूलपर पूरा होएछ। अस्तु!
 
विद्यापतिजी केँ बेर-बेर प्रणाम! आरो बहुत लिखबाक छल। मुदा लेख लंबा भऽ गेल। ओनाही लोक मैथिली कम पढैत अछि। डिस्को जमाना! अपन मातृभाषा पढबे नहि करब आ हिन्दी-अंग्रेजी झाड़ब! झाड़ू! एलौं, गेलौं, भेलौं। कियो यादो नहि करत। क्षमा करब, प्रवीणक आदति कनेक खराब छैक, मुंहे पर कहि देत।
 
हरिः हरः!!