विशेष सम्पादकीय
सन्दर्भः मिथिला महोत्सव केर नाम लेकिन काज सबटा मैथिली-मिथिलाक बिपरीत – सरकार द्वारा प्रायोजित उत्सव सँ मैथिली भाषा आ मिथिला संस्कृति प्रति अपमानक नंगा नाच
विगत किछु दिन सँ मधुबनी मे सम्पन्न ‘मिथिला महोत्सव’ मे मैथिली आ मिथिला प्रति अवहेलनाक समाचार सोशल मीडिया पर वृहत् चर्चा मे आबि गेल अछि। किछु दिन पूर्व मधुबनी जिला परिषद् केर पूर्व उपाध्यक्ष भारत भूषण जी द्वारा जिलाधिकारीक ध्यानाकर्षण करैत एकटा खबैर आयल जे मिथिला महोत्सव मे मंच सँ उद्घोषण पर्यन्त गैर-मैथिली भाषा मे आखिर कि संदेश दैत अछि।
पुनः आइ मधुबनी न्यायालय मे अधिवक्ताक रूप मे कार्यरत मैथिल बुद्धिजीवी, समाजसेवी आ सौराठ सभागाछीक पुनरुत्थान मे सदावर्त भऽ लागल व्यक्तित्व डा. शेखर चन्द्र मिश्र महोत्सवक आयोजन मिथिलाक आत्मारूप मे प्रचलित मधुबनी मे होय आर ओतय अपनहि भाषा आ संस्कृतिक विरुद्ध आचरण प्रस्तुत कएल जाय, त निश्चिते ई अपमान मिथिलाक समग्रताक भेल आर ई निरंतर किछु वर्ष सँ हरेक वर्ष कएल जेबाक बात मैथिली-मिथिला अस्मिता लेल खूल्ला चुनौतीपूर्ण अपमानक बात सेहो ओ कहलैन अछि।
यथार्थतः कोनो जिला मे स्थानीयताक संरक्षण, संवर्धन ओ प्रवर्धन लेल सरकारक खजानाक दम पर महोत्सवक आयोजन कएल जेबाक सिद्धान्त छैक। लेकिन वास्तविक प्रस्तुति एहि सिद्धान्तक ठीक बिपरीत होएत छैक।
पिछला वर्ष दरभंगा मे आयोजित मिथिला महोत्सव मे सेहो स्थानीय कलाकर्म – संस्कृतिक झलकी, सांस्कृतिक गायन-नृत्य-वादन आदि केँ दरकिनार कय मुम्बई सँ टूटपूँजिया कलाकार सब केँ इकट्ठा कय, ओडिसी नृत्य केर प्रस्तुति व विभिन्न अन्य कार्यक्रम द्वारा स्थानीयता केँ समाप्त करबाक बेतरतीब बात पर सेहो अहिना चर्चा भेल। चर्चा भेलाक बाद नागरिक समाज मे अपन मूल्य आ मान्यताक रक्षार्थ जे स्फूरणा एबाक चाही से एहि तरहक मेकेनिज्म केर अभाव मे कतहु नहि देखल गेल। यैह सहिष्णुता – अपमान प्रति सूतल समाजक चुप्पी सँ बिहार राज्य संचालन तंत्र बेर-बेर मिथिला केँ सदा-सदा लेल मृत्यु केँ दान मे देबाक कूकार्य करैत अछि।
एक त मिथिलाक समग्रता केँ विभिन्न जिला मे अलग-अलग नाम सँ आयोजन कय केँ ओहिना खण्डित कएल गेल, ताहि पर सँ स्थानीयता केँ बढावाक नामपर मिथिला क्षेत्र मे कतहु भोजपूरीक फूहर प्रस्तुति सँ त कतहु बाहरी सांस्कृतिक नग्नता सँ एतुका निजता केँ विषपान करबैत जनमानस मे पर्यन्त अपन भाषा आ संस्कार सँ दूर करबाक षड्यन्त्रपूर्ण खेला-वेला देखल जा रहल अछि। एहि मे सहरसाक कोसी महोत्सव, पुर्णियांक कोसी महोत्सव, अररियाक महोत्सव, बहुत रास एहेन उदाहरण सब प्रत्यक्ष देखि सकैत छी जाहि मे मिथिलाक सनातन पहिचान केँ धूमिल टा नहि कय पूर्णरूपेण हत्या करबाक दुष्प्रयास सेहो कएल जा रहल अछि।
एकर विरोध के करय, केकरा करबाक चाही – ईहो एकटा विडंबनापूर्ण अवस्था मे देखल जा सकैत अछि। नहि त एहि ठामक राजनीतिक कार्यकर्ता एहि षड्यन्त्र केँ बुझि पबैत अछि, नहिये कोनो सामाजिक संस्था एहि सब अपमान प्रति कोनो तरहक विरोध प्रकट करैत अछि – तखन त बिहार सरकार अपन कारिन्दा जिला प्रशासन व अन्य सरकारी संयंत्र केर भरपूर उपयोग कय विगत कतेको साल सँ मिथिला केँ मृत्युक कोरा मे सुतेबाक काज करैत जायत आर अन्त मे मिथिलाक मृत्यु सुनिश्चित होयत – एतबे बात सब इन्तजार करी। ओनाहू लोक केँ अपनहि मातृभाषा बाजय मे आ अपना केँ मिथिलावासीक रूप मे पहिचान करय मे पर्यन्त लज्जाक अनुभूति होएते अछि, आब आर कतेक और्दा एकर बाकी छैक से देखा चाही।
हरिः हरः!!