सम्पादकीय
प्रश्न उठलैक जे “कोनो पूजा उत्सव लेल एकजुटता आ कोनो कीर्ति निर्माण लेल एकजुटता – दुइ मे कोन बेसी नीक?” जबाब मे लगभग सब कियो यैह कहलखिन जे कीर्ति निर्माण बेसी नीक। तऽ जनादेश साफ अछि जे कीर्ति निर्माण लेल एकजुट बनब बेसी नीक। गाम-गाम मे देखैत होयब जे अबैत-जाएत कोनो न कोनो उत्सवक आयोजन कएल जाएत रहैत अछि। युवा सब काफी जोश आ उत्साह सँ कहियो नवाह कीर्तन लेल त कहियो कोनो यज्ञ आयोजन लेल; आपस मे एक-दोसर सँ थोड़-बहुत सहयोग संकलन करैत ओहि आयोजन केँ पूर्ण मनोयोग सँ पूरा करैत रहैत छथि। ईहो बहुत जरुरी छैक। लेकिन जखन कीर्ति निर्माण हेतैक त छोट-छोट आयोजन कथमपि भैरगर नहि बुझायत आ सहिये कहने छथि निर्मल जी – ओ सब अनायासे भऽ जायत।
मिथिलाक सनातन रीत जँ देखब त गाम-गाम केर पोखरि, मन्दिर, फूलबारी, चारागाह, खेल मैदान, कतेको रास सार्वजनिक हित आ महत्वक बात सब ‘कीर्ति निर्माण’ अन्तर्गत लोक सब अपने एकजुट भऽ पूरा करैत अछि। कियो श्रमदान, कियो भूमिदान, कियो अर्थदान, सब अपना-अपना तरहें अपन अंश लगबैत ओहि कीर्ति केँ ठाढ करैत अछि जे चौजुगी लोकमानसक मन पर राज पर करैत छैक। कीर्ति निर्माण मे एकटा चुनौती होएत छैक जे भविष्य मे सेहो ओ सुरक्षित रहय। ताहि लेल सेहो व्यवस्थापन करब जरुरी रहैत छैक। संरक्षणक भार सेहो केकरो न केकरो उठाबय पड़त, नहि त आइ कीर्ति बनायब, कनेकबे दिन मे ओ ध्वस्त होयत। अतः कीर्ति निर्माण काजो भैरगर आ चुनौतियो भैरगर होएछ।
मिथिला राज्य निर्माण सेहो ‘कीर्ति निर्माण’ समान चुनौतीपूर्ण छैक। भूमिदाता, श्रमदाता, अर्थदाता, संरक्षणदाता, विचारदाता…. बहुत किछु केर आवश्यकता छैक एहि कीर्ति निर्माण मे। दाता केर पता बहुत मोस्किल सँ भेटत, खाता आ बाता सब बहुत भेटत। खाता कहला सँ जे हरदम हिसाबे टा जोड़त, दाता केँ ताकब आ कि कोना काज पूरा हेतय ताहि दिशा मे विचारब – ई सब नहि कय सकैत अछि। बस, अहाँ जुटाउ आ ओ खाता-बही पर हिसाब जोड़ता। तहिना बाता कहबाक तात्पर्य छल जे एक सँ बढिकय एक विचार देनिहार – हुकुम फरमान फतबा जारी कएनिहार – व्यवहारिक समस्या सँ कोनो मतलब नहि राखि किछु बाजिकय अपना केँ ‘फन्ने खाँ’ बुझनिहार, जँ हिनकर बात नहि मानल जायत त फेर सब भाँड़-भन्डोल करय लेल ई जी-जान एक कय देता…. एहेन सन स्थिति मे ‘मिथिला राज्य’ केर निर्माणक गति कतेक आगू बढत से सोचय योग्य विषय भेल। तखन त लागल छी, भऽ रहल छैक, विषय जिबैत छैक, ओतबे तृप्त रहू। बेसी कि कहू!!
हरिः हरः!!