सम्पादकीय
काश्यप गोत्र धारण करबाक प्रथा आ मिथिलाक समाजवाद
मिथिला समाज मे सभक सहभागिता सँ सभ्यताक संरक्षण, संवर्धन आर प्रवर्धनक अनुपम इतिहास रहल अछि। आइ एकटा सन्दर्भ मोन पड़ल अछि जे गोत्र निर्धारणक खास व्यवस्था एतय परापूर्वकाल सँ रहि आयल अछि। जेकर कोनो गोत्र नहि छल ओकर गोत्र काश्यप भेल। ई किंवदन्ति बहुतो बेर पाठक लोकनि सुननहिये होयब। आउ, एक छोट अनुसंधान मार्फत एहि बात केँ मनन करी।
डा. लक्ष्मी प्रसाद श्रीवास्तव केर लिखल पोथी ‘लोक संस्कृति कोश – मिथिला खंड’ अनुरूप कश्यप व काश्यप गोत्र परिचयः
ब्रह्माक छह मानस पुत्र लोकनि मे सँ एक ‘मरीचि’ छलाह, जे स्वेच्छा सँ ‘कश्यप’ नामक मानसपुत्र उत्पन्न कएलनि। कश्यप द्वारा दक्ष प्रजापतिक सत्रह गोट कन्या (बेटी, पुत्री) संग विवाह कयल गेल, जिनका लोकनिक सन्तान-तालिका एहि तरहें अछि।
क्र. सं. स्त्री – पुत्र
१. अदिति – देवगण, आदित्य।
२. दिति – दैत्य
३. दनु – दानव
४. काष्ठा – अश्वादि
५. अनिष्ठा – गन्धर्व
६. सुरसा – राक्षस
७. इला – वृक्ष
८. मुनि – अप्सरागण
९. क्रोधबसा – सर्प
१०. सुरभि – गौ एवं महिष।
११. सरमा – श्वापद (हिंस्रपशु)
१२. ताम्रा – श्येन (गृद्ध आदि)
१३. तिमि – यादोयण जलजन्तु
१४. विनिता – गरूड़ और अरुण।
१५. क्रंद्रू – नाग
१६. पतङ्गी – कीट-पतंग।
१७. यामिन – शलभ आदि।
एहि सूची मे ब्रह्माजनित सृष्टि आ ताहि मे कश्यप केर भूमिकाक महत्व स्पष्टे अछि।
काश्यप एक प्रसिद्ध गोत्रियऋषि, जेकर गोत्रक कोनो पता नहि हो, ओ ‘काश्यपगोत्र’ धारण कय सकैत अछि। मिथिला मे सब वर्गक हिन्दू जाति मे एहि गोत्रक लोक बसैत अछि। ‘काश्यपगोत्र’ सब गोत्र मे सर्वाधिक लोकप्रिय आर अत्यंत व्यापक होएछ।
विद्वान् राकेश झा मिथिलाक इतिहास मे वर्णित गोत्र व्यवस्था सँ सम्बन्धित संस्मरण सुनबैत कहलनि जे गोत्र व्यवस्था, पंजी व्यवस्था, वैवाहिक सम्बन्ध तय करबाक निर्णय अधिकार आदि लेल मिथिला मे मध्यकालीन युग सँ प्रचलित अछि। एहि ठाम काश्यप गोत्र सब जाति-वर्ग द्वारा एहि लेल स्वीकार्य भेल जे गोत्र-व्यवस्था निर्धारणक समय मे जाहि कोनो जातिक लोक केँ अपन गोत्र सँ परिचिति नहि छल हुनका तात्कालीन काश्यप-गोत्री राजा अपन संतानवत् मानिकय अपनहि गोत्र प्रदान कएने छलाह आर प्रजा खुशीपूर्वक ओ आत्मसात कएने छल। एवम् प्रकारेन ई प्रथा मात्र आ मात्र मिथिला टा मे अछि जे विभिन्न गोत्रोत्पन्न मनुष्यक संग बहुल्य जाति-समुदाय काश्यप-गोत्रीय भेटत। ईहो एकटा अकाट्य प्रमाण भेल जे मिथिला मे सर्वजाति-समुदाय मे गोत्रक निर्धारण परापूर्वकाल सँ चलैत आबि रहल अछि।
आइ-काल्हि राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि लेल आ मिथिला समाज केँ छहोंछित करबाक लेल भले कियो सियारपंथी केनिहार नेता वा मैनजन एतुका भाषा, संस्कृति, सभ्यता केँ कोनो खास जातिक वर्चस्व वा एकाधिकार केर मानि बैसय आ गलत प्रचार करय – लेकिन एतुका सिद्धान्त सदैव सम्पूर्ण समाजक समग्र चिन्तन करैत कोनो व्यवस्था कायम कएलक तेकर ई एकटा अकाट्य प्रमाण थिक जे जेकर अपन गोत्र पूर्वहि सँ निर्धारित नहि अछि त एतय रहनिहार सभक गोत्र काश्यप थिक। मिथिला सभ्यताक ईहो खासियत छैक जे बिना एक-दोसरक श्रमदान लेने आ ओकरा लेल सुनिश्चित अंशदान देने कोनो कार्य सविधिपूर्वक सम्पन्न नहि भऽ पबैत छैक। शुभ-अशुभ कोनो कार्य हो, सहभागिता सर्व-समुदायिक चाही। शास्त्र-पुराण सेहो जनककालीन मिथिला सँ आइ धरिक व्यवस्थापर किछु एहने राय रखैत अछि। मुदा राजनीतिक भुमड़ी मे आइ मिथिला समाज केँ फँसाकय एतुका समाज केँ बाँटि देल गेल अछि ईहो स्वीकार करहे पड़त। आर, सर्वस्वीकार्य एकजुटता लेल आब कठोर संघर्ष करहे पड़त।
हरिः हरः!!