मैथिलीभाषीक अन्तर्संघर्ष

mrsss18कहाबत कोनो बेजाय नहि छैक – ढेर जोगी मठ उजाड़। मिथिला मे विद्या सँ वैभव होयबाक बात चीर-परिचित छैक। लेकिन विद्याबल सँ सृजनशीलताक बढोत्तरी होयबाक ठाम मालिकपनी देखेबाक लेल कनिके मे बेसी प्रदर्शनक अहंकार आजुक प्रदूषित मिथिला मे जगजियार भऽ रहल अछि। कतय आत्मविद्याक आश्रयी मैथिल कहेनाय आ कतय सदेहो केँ विदेह कहेबाक मान-मर्यादा – आजुक परिवेश मे विद्याबलक मापन अर्थ-संपन्नता आ भौतिकवादी प्रदर्शन समाजपर हावी होयबाक कारण धुमिल भऽ गेलैक अछि।

जखन-जखन आपसी सौहार्द्र आ घरायशी व्यवस्था मे दरार पड़ैत छैक, बहरिया लोक केँ लूटिमे लटबा मचेबाक नीक अवसर भेटैत छैक। पूर्वमे पेशाक आधार पर जातीय वर्गीकरण आ सुसंपन्न आर्थिक परिकल्पना सँ परिपूर्ण वर्तमान मिथिला मे बिहारी राजनीतिक तंत्र यानि जातिवादिताक जहर आवश्यकता सँ बहुत बेसी अपन असर पसारि चुकल छैक। घर मे रावण तऽ दुइ-चारि छल, विभीषणरूपी नेतागणक किरदानी सँ मिथिला वर्तमान पटना ओ परदेशी पद्धतिक शिकार अपनहि समाजकेँ तोड़ि-फाड़ि मात्र वोट लेल अन्तर्संघर्षक भूमड़ी मे फँसि गेल छैक। एकर काट निकालब आब संभवो नहि छैक आ एहेन परिस्थिति मे मिथिलाकेँ बचेबाक लेल एकमात्र उपाय छैक जे सोराज हासिल कय कटबो-मरबो करत तँ अपन राज्य लेल। लेकिन बिहारी राजनीतिक पद्धति समाजमे मैथिली भाषाकेँ कोनो एक वा किछु उच्च जातिक कहि जनवर्गीय सहभागिताकेँ पहिने अलग कय चुकल छैक, तऽ दोसर दिशि बिहारी राजनीति मे बहुसंख्यक वर्गक शासन होयबाक कूचालि सँ पूर्व समयक सामन्ती युगक प्रतिशोधक आगि सेहो पसारैत मिथिलाकेँ पुनर्समृद्धिकेँ पूर्णरूपेण अवरुद्ध बनायल जा चुकल छैक। जखन कि बिहारी शासन दशकों सँ मिथिलाक सर्वांगीण विकासक घोर उपेक्षा किछु एहि तरहें केने छैक जे पूर्व अंग्रेजो सरकार मे जतेक समृद्धि छलैक वा सामन्ती युग पर्यन्त मे जतेक संपन्नता छलैक से आइ विपन्न आ लोकपलायनक वीभत्स डंक सँ समाज त्रस्त छैक।

दोसर दिशि बुद्धिजीवी आ समाजसेवी वर्ग मे स्फूरणा प्राय: खत्म एहि लेल भऽ चुकल छैक जे हरेक ठाम जातिवादिताक जहर बेसी काज करैत छैक, बौद्धिकता केँ के पूछैत अछि। समाजसेवी सेहो अपन इज्जत बचेबाक योजना पहिने बनबैत अछि, समाजक चिन्ता लेल बस मुहपुरुखाइ टा देखेनाय सँ काज चलि जाइत छैक। समावेशिक समाज आ आपसी सौहार्द्रक स्थापना पुन: एहेन अवस्था मे होइत संभव नहि देखा रहल छैक। साक्षरताक अर्थ रोटी-कपड़ा-मकान सँ बहुत ऊपर धन-संचय आ भौतिकवादी प्रदर्शन तक चलि गेल छैक। घोर कलियुगी प्रभाव सँ ग्रस्त मिथिलाक संरक्षण एहेन अवस्था मे संभव नहि छैक, ई एकटा सच जेकाँ प्रतीत होमय लागल छैक।

एहि बीच गोटेक आन्दोलन आ संघर्ष सँ मुद्दाक जीवित रखबाक कार्य कैल जाइत छैक। मुदा जहिना कोनो संघर्षक चर्चा चारूकात होमय लागल आ कि ओहि मे दस जोगीक मुरियारी अलगेनाय आ फेर ओहि संघर्षक दस अलग धर भेनाय – यानि आपसी एकजुटता भंग होइत विषय पोषण कमजोर पड़ि जाइत छैक। आपसी दोषारोपण बेसी, सहयोगक तऽ चर्चे छोड़ू। जनजागरणक समुचित प्रयास मे बिना सरोकारवाला लोक सेहो उलहन-उपराग आ टांग खिचनाय किछु एहि बेतरतीब ढंग सँ करैत छैक जे कोनो नीक लोक मैथिली-मिथिला लेल सोचनाइयो पाप मानय लागैत अछि। तथापि एकमात्र सिद्धान्त जे स्वयंसेवा आ स्वसंरक्षण एहि ठामक वासीन्दाक रक्त मे मूल तत्त्वक कार्य कय रहलैक अछि, तैँ एहेन घातक अन्तर्संघर्ष मे सेहो ई पहिचान हुकुर-हुकुर करैत जीवित छैक। यदि राज्यक उपेक्षा अहिना रहि गेलैक तऽ एकर मृत्यु होयबाक खतराकेँ कियो नहि टालि सकैत अछि।