बेटा जेकाँ बेटी केँ सेहो पैतृक सम्पत्तिपर अधिकारपर बहस

बेटी केँ पैतृक सम्पत्ति मे अधिकार विवादास्पद कोना?

‍- प्रवीण नारायण चौधरी

सब पिता अपन उत्तराधिकारी आ ओकरा सँ बढऽवाला नव पीढी (आबादी) लेल सोचैत छैक। उत्तराधिकारीक भूमिका बेसीतर बेटा मात्र करैत छैक। बेटाहीन पिता लेल बेटी एकमात्र विकल्प बचैछ। पुनः निःसंतान पिता लेल पोसपुत्र अथवा भातीज-भतीजीवर्गक संतान द्वारा ई पदपूर्ति होएत देखल जाएछ।
 
बेटीक भाग्य दोसर परिवार सऽ जुड़ल रहलाक कारण ओकरा पतिक पैतृक सम्पत्ति मे प्राकृतिक उत्तराधिकारीक रूपें नैचुरल इन्हेरिटेन्स राइट बनैत छैक। सामान्य व्यवहार मे यैह प्रचलित अछि। लेकिन अहू मे हर्ज कहाँ अछि जे अहाँ अपन बेटीकेँ सेहो पैतृक सम्पत्ति मे समान अधिकार देबैक… एहि तरहें जेना बेटी केँ देबैक तहिना अहाँक घर जे दोसराक बेटी आओत तऽ ओकर पैतृक सम्पत्ति मे सेहो अधिकार पर नजरि रखबैक, कारण सभक हक-दाबी एक समान बनतैक… पतिक पारिवारिक संपत्ति मे पतिक पिता द्वारा अर्जित संपत्ति पर पतिक बहिन संग अधिकार शेयर करबाक भार सेहो ओहि बेटीपर सासूरक पुतोहुक रूप मे रहतैक, आर एम्हर अपन नैहराक पैतृक संपत्तिमे अपन पिता द्वारा जोड़ल सम्पत्ति पर भाइ सब सँ अधिकार लेबाक बात सेहो रहतैक, ई कानूनसम्मत बात भारत मे आइयो संविधान द्वारा देल गेल अछि। एवम् प्रकारे सम्पत्ति अधिकारक वाद-विवाद आजुक तूलनामे कतेक बेसी बढतैक, उलझतैक आ आपसी रंजिश मे हिंसा आ सम्बन्ध बिगड़बाक अनेकानेक घटना-परिघटना घटतैक से स्वतः सोचय योग्य बात अछि।
 
व्यवहारिक तौरपर दोसरो एकटा दुविधा एहेन अछि जे पिताक सम्पत्ति मे अधिकार लेबैक आ वृद्धावस्था मे बेटा जेकाँ बेटी सेहो माता-पिताक देख-रेख करबाक पूर्ण दायित्ववाली बनत… लेकिन ओकरापर अपन संतान आ पतिक संग-संग पतिक परिवार सासु, ससूर, ननैद, भाउज आदिक कतेक दायित्व छैक से सबकेँ बुझले अछि… तखन ओतेक केँ छोड़ि-छाड़ि पैतृक संपत्ति मे हिस्सेदारी आ बेटा जेकाँ बेटी द्वारा पिता-माता केर देखभाल लेल आयब सहज नहि छैक, नहि भेलैक अछि सामान्यतया एना… ई नीति आ नैतिकता जीवन-तंत्रकेँ आरो बेसी उलझा दैत छैक।
 
यैह कारण छैक जे हिन्दू विवाह पद्धति अनुरूप जे भारतकेर संविधान नियम-कानून बनेने छैक… ताहू में एहि पर १९५६ ई. सँ २००५ ई. धरि लंबा विवाद रहलैक। २००५ केर संशोधन सँ हिन्दू उत्तराधिकारी अधिनियम १९५६ द्वारा बेटी केँ समान अधिकार बहाल कैल गेल छैक, मुदा व्यवहार मे उलझन केर कारण एहिपर अधिकारक मांग सामान्य तौरपर कतहु नहि देखल गेलैक अछि।
 
आँखि मूनि कय हम सभ कोनो निर्णय नहि लऽ सकैत छी… बल्कि ऐतिहासिक व्यवहार आ व्यवहारिक सिद्धान्त – एहि सभ बात केँ ध्यान मे रखैत आगूक समाधान ताकय पड़त। दहेज प्रथाक उन्मूलन लेल यदि पैतृक सम्पत्तिमें हिस्सा देबाक बात केँ सैद्धान्तिक रूपसँ मान्यता देल जाएत छैक तऽ स्वीकार कैल जा सकैछ, बस ध्यान एतबे रहय जे विवाह जेहेन मधुर आध्यात्मिक सम्बन्ध मे सम्पत्ति विवादक भयावह भौतिकतावादी रोगक संक्रमण सँ आगाँक नस्ल नहि खराब हो।
 
हरिः हरः!!