मिथिलाक शिथिला बनबाक स्थितिक दोषी के?

कि चाही?
 
१.
भैया रौ! हम मजबूत हेबौक त तोरे न काज एबौक! तूँ हमर प्रगति सँ जर नहि।
 
२.
भैया रौ! आब हम मजबूत भऽ गेलहुँ। तूँ हमरा बड सतेने छेँ। आब हम तोरे पहिने बाँस करबौक। बाद मे शत्रु सब सँ निबटब। पहिने तोरे साफ कय केँ हम आरो मजबूती पायब।
 
ई दुनू परिस्थिति अपन मिथिला मे भेटत। घर-घर केर कहानी थीक ई। ओना ई परिस्थिति आरो-आरो ठाम छैक, मुदा जतेक अपना सभक गाम (मिथिला) मे अछि ततेक हमरा बुझने आर ठाम नहि छैक। भाइ-भाइ मे एकता केर परिचायक परिस्थिति १ मे एक भाइ दोसर सँ अपील केने छैक ओ शाश्वत सत्य छैक, यैह हेबाक चाही। मुदा एकर प्रतिशतता आइ नगण्य छैक। आपसी प्रतिद्वंद्विताक बदतर रूप परिस्थिति २ थिकैक। एक भाइ अपन दोसर सँ प्रतिद्वंद्विताक शिकार बनि गेल ओ परिवार निश्चित गटाल मे धँसि गेल बुझू। आर ई परिस्थिति २ केर निर्माण मे बेसीकाल भाइ-भाइ केर धर्मपत्नीक अधर्म आ जर-ईर्ष्या कारक तत्त्व रहैत छैक। सच ईहो छैक जे जँ भाइ-भाइ मे स्वार्थ बीच मे आबि जायत त शंका – अविश्वास आर आपसी सौहार्द्रक स्थान पर कड़ुवाहट घर करबे करत। कलह सँ बर्बादी तय छैक। तुलसीदास केर पाँति अछि – जहाँ सुमति तहाँ संपत्ति नाना – जहाँ कुमति तहाँ विपत्ति निदाना!
 
आइ हम मिथिला समाज विपन्न कियैक छी? जाहि मिथिलाक हर गाम – हरेक ठाम मे सार्वजनिक हित केर एक सँ बढिकय एक कीर्ति आइयो अपने लोक-समाज द्वारा निर्मित जीबित अछि, हमरा लोकनि सरकारी खरात सँ बहुत नीक अपन स्वयंसेवा सँ करबाक एकटा अकाट्य इतिहास ठाढ केने छी ताहि मिथिला मे आइ दरिद्रता कियैक कहकहा लगा रहल अछि? सोचू! आइ हमर समाज स्वार्थक चपेट मे व्यक्तिवादी विकास लेल एतेक अग्रसर अछि जे बगल केर घर मे कियो भूखल मैर जायत, पड़ोसी ओकर दयनीयता पर हँसत नहि कि समाधान ताकत। केना बदैल गेलहुँ हम सब? अपन मूल संस्कार सँ दूर होएत गेला सँ आइ विकृतिक दुष्प्रभाव हमरा सब केँ पूर्ण विखन्डित कय देने अछि। सब दोष अपनहि पर लेबैक आ कि आरो कियो अछि एहि स्थितिक पाछू? बात सीधा छैक, पहिल दोषी त लोक अपने होएत अछि जे ओकर वैचारिक दृष्टि मे अपनत्व आ सौहार्द्रताक स्थान दोसराक हित करबाक स्थान अहित करब पर बेसी जाएत अछि। लेकिन ई परिस्थिति हमरा सबपर लादि देल गेल अछि। ई संस्कार राजनीतिक वैमनस्यता सँ आइ परिवार आ भाइ-भाइ धरि पहुँचि गेल अछि। भौतिकवादी युग मे सब कियो स्वार्थक परिवेष्ठन मे फँसि चुकल छी। शिक्षाक स्तर पूर्ण व्यवसायिक भ गेल अछि। नैतिकताक पतन एहि तरहक भेल अछि जेकर परावार नहि। कि समाधान संभव हेतैक? समाधान सब किछु केँ होएत छैक। जागृति चाही। हमरा लोकनि केँ मूल संस्कार – संस्कृति – सभ्यता केँ फेर सँ जियाबय पड़त।