जातीय पहिचान आ जातिवादी राजनीति

विशेष संपादकीयः सन्दर्भ बिहारक पंचायती चुनाव आ मतदानक आधार

caste-Indianpolitics-in-Indiaबिहार मे पंचायतक चुनाव समाप्त भेलाक बाद बहुतो ठामक परिणाम सेहो लगभग घोषित कैल जा चुकल अछि। किछु ठाम गणना जारी रहबाक कारण घोषणा होयबा मे कतहु-कतहु बाकिये अछि। भारतीय लोकतंत्र मे मतगणनाक आधार हरेक योग्य मतदाताक मतसंख्या सँ होयबाक कारण उम्मीदवार अपना पक्ष मे संख्या बढेबाक लेल कोनो दाव बाकी नहि रखैत अछि, मुदा सबसँ सुलभ दाव-पेंच ‘जातीय पहिचान’ केर आधार पर होएत आइ करीब सात दसक सँ देखल जा रहल अछि जाहि पर विचारक लोकनि चिन्तन करब सेहो शुरु कए देलनि अछि जे एक परिणाम आखिर देश-समाज केर कतेक हित मे आ कतेक अहित मे होयत।

जाति आधारित मत संख्या अपना पक्ष मे करबाक लेल उम्मीदवार मात्र अपन जाति देखैत अछि। योग्यता आ दक्षता सनक जरुरी पक्ष गौण भऽ रहलैक अछि। लेकिन प्रतिद्वंद्विता जखन एक्के जाति मे अनेक उम्मीदवार ठाढ होएत छैक तखन दोसर या तेसर या फेर चारिम दर्जाक आधार योग्यता आ दक्षता बनैत छैक जे मत निर्धारण करबाक कारक तत्त्व रूप मे अभरैत छैक। मतदानक संपूर्ण तौर-तरीका मे जातीय पहिचान आजुक समय मे अत्यन्त उच्च भूमिका खेलाय लागल छैक। हरेक मतदान क्षेत्र मे कोन जातिक लोक कतेक छैक, ओहि जातिक कय टा उम्मीदवार ठाढ भेल, ताहू मे केकर पलड़ा भारी छैक, फेर आन जातिक मत संख्या केर स्थिति कि छैक, ताहि जाति मे फेर कय गोटा उम्मीदवारी देलक, कोन जातिक उम्मीदवार आनो जाति मे अपन विश्वास कायम राखिकय जीतक सूचकांक केँ अपना पक्ष मे कय सकैत अछि… हरेक विश्लेषणक आधार मे अगबे ‘जातीय पहिचान व जाति आधारित मत संख्या’ वर्तमान भारतीय लोकतंत्र मे माथ चैढकय नचैत देखाएछ।

तऽ कि आगामी समय मे सत्ताक खेल एहि तरहें बहुसंख्यक जाति अपना पक्ष मे करैत आन जातिक योग्य व दक्ष नेतृत्वकर्ता केँ धकियाकय देशक विकास गति केँ अवरुद्ध कय देत? एकटा प्रश्न जैड़ मे ठाढ देखाएछ। पंचायत स्तर पर जेना समितिक निर्धारण होएत देखैत छी ताहि मे चुनल उम्मीदवार ५ वर्ष धरि विकासक कार्य अवरुद्ध कय देत, अपन जातिक दबंगइ सँ पंचायतक सरोकार केँ दरकिनार कय देत आर एहि तरहें राज्य वा केन्द्र सँ भेटल विभिन्न विकासक योजना पर्यन्त केँ जमीन पर सार्थक रूप सँ उतारय मे कन्नी काटत, तखन जाति-पाति मे बँटल समाज कोन नैतिक आधार पर ओकर विरोध करय, ओकरा पर अविश्वास प्रस्ताव आनय आ कोना ओकर मनमानी केँ निरस्त करय – एहि सब तरहक परिस्थिति यथार्थ धरातल पर कतेको ठाम देखल जाएत अछि। एना मे ई प्रश्न मुंह बाबिकय ठाढ अछि जे कहीं एहि कारण सँ बिहार एतेक पिछड़ल राज्य केर रूप मे तऽ नहि गनाएत अछि? गाम-पंचायत सब यैह मनमानीपूर्वक विकासक योजना सब संग बलात्कार करैत विकास केँ उपेक्षित तऽ नहि रखने अछि?

राजनीति मे सत्ता धरि पहुँचब जरुरी छैक। मुदा संख्यात्मक मत प्रणाली मे उम्मीदवार लेल एकटा न्युनतम टार्गेट पर्यन्त नहि राखब, दक्षता-योग्यताक सीमा सेहो नहि तय करब, समाज केँ हरेक पाँच वर्ष मे चुनावी दंगल केर विभिन्न चरण पंचायत, विधानसभा आ संसदीय प्रतिनिधि चुनबाक बेर आपस मे टूटबाक-फूटबाक लेल छोड़ब… ई कतहु न कतहु मानवता विरुद्ध बात सेहो भेल से संकेत भेटैत अछि। जतय एक दिस परोपकार सँ पैघ दोसर कोनो धर्म नहि, सामाजिक समरसता सँ पैघ दोसर कोनो सौहार्द्र नहि आ सामाजिक न्याय लेल सब केँ सजग होयबाक गूढ नीति-निर्माण पर बड़का-बड़का बजट प्रावधान, आरक्षण आ पिछड़ल वर्ग केँ आगू अनबाक अनेक योजना बनैत अछि ताहि ठाम सैद्धान्तिक तौर पर जातीय पहिचानक विकल्प नहि रहि जाएब आखिर कि समाधान देत देश केँ किंवा समाज केँ – ई सोचनीय स्थिति देखा रहल अछि। मानव समाज आपस मे सौहार्द्रता व सहकार्य केँ बढेबाक स्थान पर घृणा आ विद्वेषभाव सँ भरय, एना मे भारतक भविष्य कोन दिशा मे जा रहल अछि ई स्वयं एकटा बड पैघ सवाल अछि। अतः राजनीतिक परिवेश मे जातीय पहिचान केर बढि रहल ई उग्रता पर अंकुश लगेबाक लेल आ गुणस्तरीय प्रगतिशीलता लेल सेहो उचित सहभागिता सुनिश्चित कैल जायत ई बस आशा कैल जा सकैत अछि। चिन्तक व नीति निर्माणक केर ध्यान एहि दिशा मे जाएब जरुरी छैक।