दिल्ली। फरबरी २९, २०१६. मैथिली जिन्दाबाद!!
काल्हि २८ फरबरी, २०१६ एकटा भव्य समारोह केर आयोजन करैत ‘पाग बचाउ’ अभियान केर शुरुआत कैल गेल अछि। एखन सविस्तार एहि विषय मे कोनो जानकारी उपलब्ध नहि भऽ सकल अछि, परन्तु सामाजिक संजाल फेसबुक पर टुकड़ा-टुकड़ा मे भेटि रहल समाचार मुताबिक ई मानल जा रहल अछि जे पुनः मिथिलाक किछु सक्षम पुत्र लोकनि अपन मातृभूमि लेल एकटा नीक डेग आगू बढेला अछि।
खारी न्युज पर हिन्दी मे ई समाचार प्रकाशित अछिः
नई दिल्ली, 28 फरवरी (आईएएनएस)। मिथिलालोक संस्था की ओर से दिल्ली के आईटीओ स्थित राजेंद्र भवन में रविवार को ‘पाग बचाउ अभियान’ की औपचारिक शुरुआत की गई। इस मौके पर मिथिला के लोगों ने सिर पर पाग रखकर मार्च भी निकाला।
कार्यक्रम में बड़ी संख्या में मिथिला क्षेत्र के लोगों ने हिस्सेदारी की और पाग मार्च निकालकर एक मनोरम दृश्य प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम में मौजूद जनता दल-युनाइटेड (जदयू) के नेता एवं बिहार विधानसभा के पूर्व पार्षद संजय झा ने कहा कि इस अभियान से सीता की धरती मिथिला की समस्याओं का निदान निकलेगा।
सर्वोच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश ज्ञानसुधा मिश्र ने कहा कि इस तरह के कार्यक्रम से मिथिला से बाहर मिथिला की एक सांस्कृतिक पहचान बनेगी और यह अच्छा प्रयास है।
मिथिलालोक के संस्थापक बीरबल झा ने कहा कि पाग मिथिला की सांस्कृतिक पहचान है, महाकवि विद्यापति की तस्वीरों में उनके सिर पर विराजित इस पाग को देखकर ही लोग समझ जाते हैं कि यह मिथिला से संबंधित है, सिर पर पाग पहनना मिथिला की सदियों पुरानी विरासत है, जिसे आज बचाने की जरूरत है।
टोपी और पगड़ी का मिश्रित रूप पाग बिहार के मिथिला क्षेत्र और नेपाल के तराई इलाकों में मैथिली भाषी ब्राह्मण व कर्ण कायस्थ जातियों में अमूमन मांगलिक अवसरों पर पहनने की परंपरा रही है।
मिथिलालोक संस्था मानती है कि पाग मिथिला की सम्मान और एकता का प्रतीक है, जिसे बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। इसे मात्र दो जातियों तक ही सीमित न रखकर सभी जातियों के मैथिलीभाषी लोग पाग पहनें। मैथिल समाज के सभी वर्गो को सम्मानित किया जाना और मैथिल की पहचान पाग को बरकरार रखना इस अभियान का उद्देश्य है।
भगवान श्रीराम की ससुराल मिथिला में जिसे पाग कहते हैं, उसे पंजाब में ‘पग’ और हिंदी भाषियों के बीच पगड़ी नाम से जाना जाता है।
मिथिलालोक सांस्कृतिक धरोहर ‘पाग’ को कायम रखने के लिए विशेष अभियान की शुरुआत कर रही है।
संस्था के अध्यक्ष डॉ. बीरबल झा ने ‘पाग बचाउ अभियान’ के साथ ही कई अन्य महत्वाकांक्षी योजनाओं की घोषणा की। उनका मानना है कि इससे मिथिला की अर्थव्यवस्था में व्यापक बदलाव आएगा और मिथिला क्षेत्र के लोग रोजगार से जुड़ सकेंगे।
उन्होंने कहा कि ‘पाग सबों के लिए’ संस्था का मिशन है, ताकि समाज में सभी तबकों को सम्मानपूर्वक जीने का अवसर मिले।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
उपरोक्त समाचार हरेक मैथिल जनमानस मे एकटा नव आशा जगबैत अछि। ताहू मे आयोजक संस्था ‘मिथिलालोक’ केर अध्यक्ष बिरबल झा जे एकटा सक्षम व्यक्तित्व होयबाक संग-संग अनुभवी अभियानी तथा विभिन्न जन सरोकार सँ जुड़ल गैर सरकारी संस्थानक संचालक सेहो – हुनकर दृष्टिकोण तथा विचार जेना ऊपर कहलो गेल अछि ताहि सँ मिथिलाक लेल प्रगतिशील समय जरुर आओत।
एकर सफलता पहिले डेग पर कतेक पैघ भेल अछि तेकर अनुमान सामाजिक संजाल पर लगभग ८०% जागरुक आउडियेन्स द्वारा भिन्न-भिन्न रूप मे एहि अभियान पर चर्चा सँ ज्ञात होएत अछि। ई मानल बात छैक जे मिथिला मे बयानचंद व हुकुमचंदक संख्या कम नहि, आर एहेन लोक सब सदिखन कोनो नीक डेगक छूछ आलोचना टा करैत छथि, ताहि अनुरूपे एखन स्पष्ट रूप सँ देखल जा सकैत अछि जे कियो ‘पाग बचाउ’ केर जगह ‘मिथिला बचाउ’ हेबाक चाही कहैत, तऽ कियो ‘दिल्ली मे मिथिला बनत, मिथिला मे एकर कतहु चर्चे नहि’, कियो ‘पाग तऽ समय-समय पर उपयोग मे अछिये…. मिथिला केँ बचेबाक बात होइतय तऽ बेसी नीक…’ – आदि-आदि बात कहि एहि अभियानक बहुचर्चा मे अपन मत राखि रहला अछि।
विदित हो जे मिथिला सँ प्राचीन न्याय तथा नव्य न्याय केर विद्या-विधा स्थापित भेल अछि। कोनो अभियानक औचित्य एहिना विभिन्न चर्चा-कूचर्चा मे पड़िते अछि। एकटा कथा छैक जे महाराजा ओतय सँ मधुश्रावनी मे जे भार साँठल गेल छल से लोक सब देखैत मंत्र-मुग्ध तऽ होएत छल, मुदा दुसबाक प्रवृत्ति प्रकृति मे होयबाक चलते अन्ततोगत्वा बूट केर नाक टेढ कहि दूसैत अपन-अपन घर जाएत छल। मिथिलालोक द्वारा आरम्भ कैल गेल एहि अभियानक सार्थकता सबहक बुझय मे एक्के बेर आबि जायत से कतहु सँ संभव नहि। कारण, मिथिला मे अफिसर क्लास मात्र ५% जनमानस अछि। विशाल जनमानस मजदूर क्लास केर रहबाक कारणे ‘पाग’ केर अर्थ धरि विस्तृत पटल पर बुझि सकबाक संभावना न्यून बनैत अछि। तथापि, एकटा बात तऽ निश्चिते सब केओ बुझैत अछि जे ‘पाग’ मिथिलाक पहिचानक प्रतीक चिह्न आ सम्मान सँ माथ पर शोभा पाबयवला परिधान थीक। संस्कृत मे एकरा शिरस्त्राण कहल जाएछ। संसार भरिक जतेक सभ्यता अछि ताहि सब मे माथ केर शोभा लेल विभिन्न परिधानक प्रयोग कैल जाएत रहल अछि। आर मिथिलारूपी अति प्राचीन सभ्यताक पहिचान पाग केर बचेबाक लेल ‘मिथिलालोक’ केर अभियानक जतेक प्रशंसा कैल जाय ओ कम होयत।
कहैत चली जे बयानचंद ओ हुकुमचंद केर बयान आ हुकुम केर प्रासंगिकता आजुक स्वतंत्र अर्थतंत्र मे कतहु सँ औचित्यपूर्ण नहि अछि। भले केओ ‘सुच्चा मैथिल’ कहेनिहार ‘पिछड़ा-वर्गक चिन्तक’ कहेनिहार एकरा सीमित जाति केर धार्मिक-व्यवहारिक उपयोगिताक वस्तु मानि एहि सँ दूर रहबाक प्रयास करैथ वा फेर ढकोसलाबाज मिथिला चिन्तक जे करम करता शून्ना मुदा बजता धरि दून्ना – एहेन-एहेन कूतर्की आ फूतर्की पैंतराबाज लोक सब एकर आलोचना मे लागल रहि जेता, लेकिन पाग पहिरिकय जखन दिल्ली वा मुम्बई वा कोलकाता वा कोनो अन्य स्थान पर एकटा लोक बहरायत तऽ सहजहि हुनका देखिते लोक मे मिथिलाक स्मृति तीव्र होयत आ ओ अपन मूल सँ कदापि नहि भटकता। मिथिलाक दर्द अछि लोकपलायन आर ताहि सँ समस्या अछि लोक-संस्कृति विनष्ट होयब। लेकिन ई अभियान हर मैथिल जनमानस मे अपन पहिचान प्रति सम्मोहन उत्पन्न करत आ एहि मे वर्ग-विभेद कतहु सँ नहि देखायत। आइ यैह टोपी राजनीति मे एकटा विशेष स्थान बना लेलक अछि। गाँधीवादी रहू वा नहि, उजड़ा गाँधी टोपी टा पहिरि लेला सँ गाँधी विचार केर समर्थक मानल जाएब। रंग केसरिया भऽ गेल तऽ संघी विचारधाराक परिपोषक मानल जाएब। झाड़ू छाप टोपी भेल तऽ आम आदमी मानल जाएब। भाइ! अपन-अपन ट्रेड आ ट्रेन्ड अछि सबहक, मुदा ओ चीज एक्केटा थीक, पाग। बुझू होशियार लाला – दाकियानूसी-झाड़फानूसी हुकुमचन्द-बयानचन्द बाबु लोकनि। बनू करमचन्द आ करू किछु कार्य। तखनहि भेटत मिथिला राज्य!!
परञ्च एकटा सार्थक आलोचना आयोजक मिथिलालोक केँ जरुर सोचबाक चाही जे एहि अभियान लेल खुद मैथिली मिडिया पर समाचार संप्रेषण लेल कोनो विज्ञप्ति या विज्ञापन किऐक नहि देल गेल? ई प्रश्न बहुत गंभीर अछि जाहि दिशा मे अध्यक्ष बिरबल झा सहित समस्त स्टेकहोल्डर्स केँ विचार करबाक चाही। पाग केर सम्मान बढेबा मे पहिले तऽ घरहि सँ अभियान केर शुरुआत कैल जाएत। दिल्लीक मेट्रो केँ लाभांश देल गेल, टाइम्स अफ इंडिया पर सेहो समाचार आबि रहल अछि, लेकिन बारीक पटुआ तीत मानि यदि मैथिलीक छोट-छोट मिडिया प्रयास केँ दुत्कारल गेल अछि तऽ आयोजनकर्ताक बड पैघ भूल भेल अछि ई जरुर आत्मसात करैत आगामी समयमे एहि तरहक भूलक पुनरावृत्ति रोकल जाय।
हरिः हरः!!