विशेष सम्पादकीय
मैथिली फिल्म व बालीवूड मे कार्यरत मिथिलाक प्रतिनिधित्व कएनिहार संजीव पूनम मिश्र द्वारा एकटा सार्वजनिक आह्वान करैत हिन्दी मे कहल गेल अछि जे विद्यापति बाबा केँ रिहा कय दियौन भाइ, कहिया धरि हिनकर आत्मा केँ कनायब।
हमरा सबहक भाषा, संस्कृति ओ पहिचानक एकटा प्रमुख अंग मैथिली फिल्म मे समर्पित स्रष्टा लोकनि पर हम सब गर्व करी। इशारा मे जाहि चूक पर चर्चा अछि ओ बहुत कष्ट दैत अछि। एहि पर नहि केवल हमर, विश्वास करू, लगभग सबहक ध्यानाकर्षण भेल होयत। एकरा वास्ते आत्मसमीक्षा करैत हम आजुक संपादकीय मे एहि विषय केँ पुनः चुनल जे आखिर आयोजक लोकनि सच्चे मे कोनो महत्वपूर्ण पारिवारिक अंग केँ माइनस करय चाहैत छथि? कि हुनकर इच्छा एहि तरहक रहैत अछि? आ कि किछु समस्या हमरो मे अछि जाहि लेल हम आयोजनोपरान्त अपन असंतोष टा प्रकट करैत छी? आर एहि तरहें मैथिली-मिथिलाक क्रान्ति केँ अपन गोपापंथी सँ अवरूद्ध करबाक कूचेष्टा करैत छी? कि हम सब अपन योगदान आ निर्भीक सहभागिता सँ स्वतंत्र प्रयास नहि कय सकैत छी? कि हम सब ओहि दोष केँ दूर नहि कय सकैत छी? बहुत रास प्रश्न हमर दिमाग मे अचानक आबि गेल अछि।
हुनकर भाव मे स्पष्ट उक्ति देल गेल अछि जे १२म अंतर्राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन जे मुम्बई केर विरार मे २२-२३ दिसम्बर केँ भव्यतापूर्वक संपन्न भेल ओ विशुद्ध राजनीतिक अखाड़ा समान रहल, ओतय कला आर फिल्म केँ तरजीह नहि देल गेल ओ आरोप लगौलनि अछि।
एतय हुनकर लिखल स्टेटस केँ जहिनाक-तहिना राखल जा रहल अछिः
“विद्यापति बाबा को रिहा कर दो भाई,कब तक इनकी आत्मो को रुलाओगे ……अंतर राष्ट्रीय मैथिली सम्मलेन, मुंबई vishuddh political अखाड़ा.., KALA ,FILM KI MAAN KI AANKH…..
…माफ़ी के साथ कहना पड़ रहा है की इस सम्मलेन ने घनघोर निराश किया है ,आयोजकों से कुछ सवाल करना चाहता हूँ….
1. जो फिल्म मैथिली साहित्य भाषायी आंदोलन और दहेज़ पर आधारित थी जिसका असर मैथिलि अस्टम सूची में भी देखा गया जिनका योगदान भुलाया नहीं जा सकता में बात कर रहा हूँ मुरलीधर जी का जिन्हें इस सम्मलेन में आमंत्रित तक नहीं किया गया ,
२. सस्ता जिनगी महग सेनूर के महान अभिनेता ललितेश झा जी कहाँ थे, राजीव सिंह , और नाट्य कर्मी कई रंग कर्मी जिनका योगदान अविश्मरणीय है,
३. मैं बात कर रहा हूँ विद्यापति जी हिन्दुस्तान के घर-घर तक पहुँचाने वाले non मैथिल संतोष बादल जी का, जिनकी हिंदी फिल्म फाइनल मैच की पूरी शूटिंग दरभंगा में हुई थी, जिनका मैथिली प्रेम जगजाहिर है, इस कड़ी में नितिन चन्द्रा का नाम लेना वाजिव होगा,
४. मैं बात कर रहा हुँ झा विकास का जो मैथिली के लिए जान न्योछावर तक करने तैयार रहते हैं जिनका , खाना , पीना, सोना, सिर्फ मैथिली के लिए ही है , जिनके लिए अपना कोई बजट नहीं होता फिर व् फिल्म बनाने क लिए आतुर रहते हैं,
५. प्रवेश मल्लिक ये नाम तो सुना होगा न आप लोगों ने, चलिए याद नहीं है तो मैं ही बता देता हूँ गीत घर घर के , जिन्होंने मैथिली फोक को घर घर पहोंचाया,
और अंत में नाट्य विधा जिसके माध्यम से लगातार लोगों तक समाज की बुराईयाँ या समाज में घटित घटनाएँ , पमरिया को राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने वाला श्री कुणाल , या दिल्ली में नाट्य आंदोलन करने वाले मैलोरंग के साथी प्रकाश, मुकेश , राजीव , कौशल, Pawan jee और कई शहरों में काम करने वाले कई रंग कर्मी जिन्हे क्या मिला सम्मान या अपमान। ……. संगठन के एक साथी राम नरेश शर्मा कहा थे.
और एक बात जिन्हे जोड़ा जा सकता था मुकेश सिंह (द्वारकाधीश) , संतोष मंडल (एडिटर) , अभिजीत सिंह, राहुल सिन्हा, भास्कर झा, मनोज झा, नवीन मिश्रा, प्रेम प्रकाश कर्ण, राम बहादुर रेनू और rakesh Sinha हमारे परम प्रिये कुमार शैलेन्द्र जी जिनका जीवन मैथिली के लिए समर्पित हुआ इन जैसे ….. और कई ऐसे नाम हैं जिनके योगदान को नाकारा नहीं जा सकता।।
ये कतई न समझा जाये जिन्हें सम्मान मिला उनसे मेरा विरोध है..एक बार सोचियेगा जरूर, और पोलिटिकल मंच बंद करे। ..आ बाबा विद्यापति को मंच से रिहा करें।”


