सम-सामयिक मिथिला – चिन्तन

भोलबा हँसा देलक!!
 
– प्रवीण नारायण चौधरी
IMG-20151130-WA0028ओ कहैत छल जे यौ सर, मिथिला-मैथिली मे खाली बड़का-बड़का कार्यक्रमे सब होइत छैक…. कतय सँ अबैत छैक एतेक रास पैसा….. हम कहलियैक जे रौ! बच्चा!! तोरा कियैक बिसरा गेलौक जे मिथिला मे साक्षात् अयलीह सब ऋद्धि-सिद्धि केर दाता – आदिशक्ति जगदम्बा – जगज्जननी मैथिली यानि ‘सीता’; एहि रंग मे रंगा जो आ देख लहीन जे सबटा खजानाक चाभी कोना भेटैत छौक।
 
ओकर आँखि विस्मित रहितो ‘सीता’ केर नाम सुनलाक बाद सच मे सोचनीय बनि गेल छलैक। तेकरा बादो ओ हिसाब जोड़ैत कहय लागल, “एकटा कार्यक्रम मे कम सँ कम २ लाख, हे नै २ तऽ १ लाख तऽ लगिते टा हेतैक?”
 
ओ निर्दोष युवा – ओकर भोलापन मे पूछल जा रहल प्रश्न आ मनक भीतर ओहि नेताजी केर कहलहबा बात जे मैथिली-मिथिला खाली उच्चवर्गीय गोटेक लोकक थिकैक… ताहि कारण ओकरा मनक घर मे सन्देह बनब – ई सबटा बुझैत हम ओकरा फेरो कहलियैक, “सुने बच्चा! भले राजनीति कएनिहार किछु कहय, मुदा मिथिलाक पहिचानक महत्व लोक जखन गाम-घर सँ दूर जाएत अछि तऽ बेसी मोन पड़ैत छैक, ओहि कसक केँ दूर करबाक लेल वार्षिक उत्सव केर तर्ज पर अपन भाषा ओ संस्कृति बचेबाक लेल ओ संघर्ष करैत अछि। ताहि सँ ई समारोह सब आयोजित कैल जाएछ। १ या २ या ५ – लाखक लाख आ करोड़क करोड़ कमेबाक बुद्धि जेकरा मिथिलाक माटि-पानि सँ भेटल, जेकर स्वभावे मे सत्त्व, रज ओ तम केर संतुलित मात्रा आ जोड़ समाहित रहैत विदेहपंथ झलकैत अछि, तेकरा सब लेल ई पाइ-कौड़ीक जोगार चुटकीक खेला थीक। सबटा भगवती ‘जानकी’ पुरबैत छथिन। आर तोरा तऽ बुझले छौक न जे जतय भगवती करथिन ओतहि भगवान् पाहुन राम केँ करय पड़तनि। बिना शक्ति केर शिव शव समान होइत छैक, सुनने रहीन ई बात कि नहि! आर तऽ आर, साक्षात् मैनापुत्री गौरी आर मैनाक बुढ जमाय यानि देवाधिदेव महादेव, जिनका सीताराम-सीताराम केने बिना चैन तक नहि छन्हि ओ कि तोरा दोसर ठाम रहैत छथिन…. ओहि मिथिलाक समारोह मे एब्बे टा करैत छथिन। कहे जे जतय स्वयं शक्तिक संग परमेश्वरक वास हो, ओतय एक लाख आ दुइ लाखक बात करमे! सब हुनकहि द्वारा भऽ रहलैक अछि।”
 
आब ओकरा विस्मय सँ आँखि फाटि रहल छलैक। ओ बात पकैड़ लेलक। कहय लागल, “कहू! जे ई सार नेतबा सब बाइस-तेबाइस आ गन्हायल-गुँहायल खाएत अछि जे अपने मातृभाषा प्रति शत्रुता पोसैत अछि? कोना अपन मूल केँ छोड़ि सार सब क्षणिक पद आर बेसाहक प्रतिष्ठा लेल मगहिया डोम बनैत अछि? सार सब देख लेलक जे एहि मिथिलाक भूदेव बाभन सहित सब बड़का जातिकेँ गाम सँ बैला देल गेल एहि पैछला किछु वर्ष मे…. गाम सुन्न-मसान लागि रहल अछि…. मुदा एकरा सबकेँ तारी आ दारू मे डूबल रहब आ चौक-चौराहा पर धौंसगिरी मे अपने मे मारा-काटी करब… कि यैह टा बचि गेलैक अछि? से नञ! तऽ कियैक न मैथिलीक धारा गामो मे बहत? कियैक न मिथिला सँ लोक गामो मे परिचित होयत? एहि दिशा मे किछु करब जरुरी अछि।”
 
हम ओकर आत्माक पुकार केँ मानि रहल छी। बुझैत छियैक जे जरुरत गामो मे ओतबे समारोहपूर्वक किछु करब जरुरी छैक। कएनिहार ओत्तहु कय रहल अछि। तखन आरो बेसी मात्रा मे हेतैक तखनहि जन-जन अपन मूल सँ जुड़त।
 
दर्शन कहैत छैक जे दृश्य-अदृश्य सब तत्त्व अपन जैड़ मे मिलबाक लेल व्याकुल रहैत अछि। जेना दीप लेसब, लौ हमेशा ऊपरिमुखी रहैत प्रकाशक जैड़ सूर्यक दिशा मे निरन्तर गमन करैत रहैत छैक। पानि सेहो तहिना पाताललोक (महासमुद्र) अपन जैड़क दिशा मे स्वतंत्र गमन करिते छैक। कोनो पिण्ड जे धरातलीय अवयव सँ निर्मित अछि ओ सदैव पृथ्वीक तरफ आकर्षित होइते छैक। विज्ञान एहि मे गुरुत्व बल देखौक या अन्य कोनो बल, लेकिन साफ छैक जे सबकेँ अपन मूल सँ मिलन हेतु चलायमान रहय पड़ैत छैक। गूढ सांख्य सेहो आत्मा व परमात्माक मिलन – मोक्ष केर बात करैत छैक। तखन जाहि सभ्यता मे लोक जन्म लैत अछि, भले तेकरा ओ केना बिसैर सकैत अछि। मिथिलाक लोक मे मैथिली सँ बिछोह कोनो राजनीति भले कोना उत्पन्न कय सकैत छैक।
 
ई सब बात हम सोचैत अपन अलगे दुनिया मे प्रवेश कय गेल रही। भोलबा फेर टोकलक, “सर यौ! किछु कहलियै नहि?”
 
ध्यान टूटिते हम कहलियैक, “रौ बच्चा! कतेक कहियौक! हमहुँ तोरे जेकाँ प्रश्नहि सँ खेलाइत रहैत छी। तूँ ततेक महत्वपूर्ण प्रश्न सब पूछि देलें जेकर जबाब हम किछु दियौक ततेक सक्षम अपना केँ नहि बुझैत छी। तथापि, जतेक जेकरा सऽ जेना पार लगौक, करैत चल। भगवती सबटा ठीक करथिन। मिथिला मे तिनू शक्ति आ तिनू शिव – यानि ब्रह्मा-विष्णु-महेश संग ब्रह्माणी-लक्ष्मी-गौरी सब कियो समाहित छथिन। ई भूमि सिद्ध अछि। एतय पानि सीधे हिमालय राजा द्वारा पठायल जाएत अछि। गोरक्ष यानि गोरखा द्वारा रक्षित ई समस्त भूमि सघन-वन-पर्यावरण सँ भरल-पूरल अछि। बढैत चल। एखन मिथिलाक गोपालवंशी सब लोकदेवता लोरिक केर गान छोड़ि लालूजीक चमरछोंछ अर्थात् भूराबाल साफ करो केर सामाजिक न्याय ओ सत्तालोलुपताक ‘माइ’ समीकरण मे ओझरायल छैक आर एतुका भूमिपुत्र सब ‘जातीय समीकरण’ केर गणितीय खेल मे मिथिला केँ ध्वस्त कय देने छैक। एकरा सँ ऊबार लेल सब कियो अपना-अपना स्तर सँ काज करमे तऽ सुधार जरुर हेतौक। रहलैक बात मिथिला-मैथिली चिचियेनिहार गोटेक बभना नेता आरक, तऽ एतबे बुझ जे ओकरा कोनो पार्टी मे जेबाक लेल ई सीढीक काज करैत छैक, बस। टिकट लेतौक, बाबुक जमीन बेचि चुनाव लड़ि सबटा ढूस कए देतौक, बात खत्तम। बस ‘सीताराम-सीताराम’ आर ‘अल्लाह मियां’ सँ दुआ-सलाम करैत रहे।”
 
ओ टप सँ टपैक पड़ल – अहुँ तऽ बाभने नाहैत गप दैत छियैक।
 
जोर सँ हँसी लागल। कहलियैक, “रौ बच्चा! कि करमे! हमहुँ तऽ कोनो जातिये मे जन्म लेने छियैक। हवे छैक जे जाति देखू, फेर काज करू।”
 
मुदा भोलबा गछलक, “हम अपन मातृभाषा लेल जरुर काज करब। हम मिथिलाक पुत्र छी, राजनीति अपन जगह पर रहौक। हमरा अपन घर-गाम-समाज सबहक चिन्ता अछि। हम एहि लेल अहींक कहलहबा जेकाँ जतेक सकब ओतेक करब।”
 
चाहक गिलास ताबत तीन गो खत्म भऽ चुकल छल। पान खेलहुँ, घर गेलहुँ।
 
हरिः हरः!!