मैथिली जिन्दाबाद केर तरफ सँ दियाबातीक शुभकामना

happy diyabaatiआउ दियाबाती पर एकटा नव दिया जराबी!

यावत्सञ्जायते किञ्चित्सत्त्वं स्थावरजङ्गमम्।
क्षेत्रक्षेत्रज्ञसंयोगात्तद्विद्धि भरतर्षभ॥१३-२६॥
समं सर्वेषु भूतेषु तिष्ठन्तं परमेश्वरम्।
विनश्यत्स्वविनश्यन्तं यः पश्यति स पश्यति॥१३-२७॥

एहि स्थावरजङ्गम् यानि चर-अचर जगत् मे जे किछु सत्त्व यानि जीव-निर्जीव वस्तु अछि ओ केवल क्षेत्र तथा क्षेत्रज्ञ केर संयोग, यानि इहलोक आर परलोक केर मेल सँ निहित अछि।

आर, जे एहि सब मे परमेश्वर केर समान रूप सँ स्थित रहब दर्शन करैत अछि ओ विनश्यत्सु-अविनश्यन्तं यानि विनाशहु मे अविनाशी अछि।

देखल जाउ! गीत गूढ सँ गूढतम् ज्ञान केर अम्बार थीक। बस उपरोक्त दुइ श्लोक केर उठबैत मानुसिक मस्तिष्क सँ एकर व्याख्या करैत अनेक स्वरूप मे हम सब ज्ञान हासिल कय सकैत छी। लेकिन अपन सीमित सोचबाक सामर्थ्य वा बुझबाक सामर्थ्य केँ जनैत अपन भितरक अन्हार केँ दूर करबाक लेल योग्य गुरुक सान्निध्य लेला सँ ज्ञानज्योति अवश्य प्रकाशमान होइछ।

गीता कृष्ण आर अर्जुन केर बीच मे संवाद अछि, लेकिन एकरा हम-अहाँ अपना भीतर सेहो दर्शन कय सकैत छी। बिल्कुल, जेना अन्तर्आत्मा सँ निकैल रहल आवाज स्वयं श्रीकृष्ण केर प्रतिनिधित्व करैत अछि तहिना मन-बुद्धि-अहंकार-ज्ञानेन्द्रिय-कर्मेन्द्रिय ई सब ओहि आत्मा सँ सदिखन जुड़ल हर आवाज केँ सुनैत अर्जुनक भूमिका करैत अछि। लेकिन स्पष्ट ई अछि जे मन चंचल अछि, एकर प्रकृति छैक जे अपन-अपन विषय मे बेसी धाही देखबैत छैक। जेना जीह केँ नीक-नीक स्वाद चाहबे करी। आँखि केँ सोहनगर वस्तु देखबाक इच्छा रहिते छैक। कान केँ सुमधुर आ मन-लोभावन संगीत सुनबाक इच्छा रहिते छैक। कहल गेल छैक जे आत्मा सँ सीधा सम्बद्ध १७ तत्त्व १७ दिशा मे गमन करैत छैक। मुदा धन्य धर्म जे परमात्मा व आत्माक बीच समन्वय केर दिशा तय करैत सदैव परमपिता परमेश्वर प्रति समर्पित राखि हर जीव केँ सही जीवन दिशा प्रदान करैत छैक।

दियाबाती हिन्दू धर्मक एकटा विलक्षण दिवस थीक। एकरा कतेको लोक कतेको प्रकार सँ वर्णन करैत अछि। समग्र मे एकर आध्यात्मिक रूप यैह कहैछ जे शत्रुक दमन केला पर विजित मुद्रा मे आत्मप्रसन्नता लेल दिया जराउ। ई शत्रु भले प्रतीक स्वरूप रावण वा ओकर अहंकार आ अत्याचार केँ कहल गेल हो, लेकिन हमरा लोकनि जे आजुक पर्व मनाबैत छी हुनको भीतर अनेको रावणक वास अछि जेकरा हमरहि भीतर रहल ‘राम’ द्वारा बध करब आवश्यक अछि। तखनहि हम विजेता होयब। तखनहि दिया जरेबाक आध्यात्मिक अर्थ चरितार्थ होयत। ओना, स्थूल शरीर केँ सेहो पोषण चाही। ताहि हेतु जे प्रसाद आदि भोग लगेबाक परंपरा चलैत आबि रहल अछि ओहो अपना ठाम पर जायज अछि। सौहार्द्रतापूर्ण ढंग सँ सामूहिक रूप मे पाबैन मनेबाक परंपरा हमरा लोकनिकेँ सांसारिक सुख पेबाक लेल सेहो उद्यत् करैत अछि। निश्चित रूप सँ लक्ष्मी धन आर समृद्धिक संग स्वास्थ्य आ सुख देबाक लेल पूजित होएत छथि आजुक एहि विशेष दिवस पर। मैथिली जिन्दाबाद केर तरफ सँ अनेकानेक शुभकामना अछि।

हरिः हरः!!