सन्दर्भ: मैथिली भाषा-साहित्य केर सेवा मे बढोत्तरी करबाक लेल सर्वजातीय प्रतिभाक खोजी किऐक नहि कैल जाइछ?
कि मैथिली भाषाक सृजन-शिल्प मे साहित्य अकादमी द्वारा एहेन कोनो कार्य भऽ सकल अछि आइ धरि जाहि सँ ई कहल जाय जे सच मे मैथिली सोइत बाभनक बाद बाभन आ काइथक मोनोपोलि भाषा नहि थीक? आइ धरि साहित्य अकादमीक विभिन्न कार्यक्रम मे स्रोत व्यक्ति सबहक सहभागिता देखि ई कतहु सँ नहि लगैत अछि जे अकादमी वा अकादमी संग आबद्ध लोक कहियो मैथिली भाषा केँ समस्त मिथिलावासीक भाषाक रूप मे विकसित होमय देता….! ई सच मे दर्दनाक अछि।
लेकिन चिन्ता नहि करू….. जाहि मे सर्व-समागम नहि, ओकर अपनहि औचित्य पर प्रश्न चिह्न लागि जाइत छैक। बस डेढ दिन की चाँदनी, फिर अंधेरी रात!! नेपाल मे मैथिलीक भविष्य ओहि सँ बहुत इतर होयत!! पूर्ण आशान्वित छी!! मुदा भारतक विशाल मिथिला मे एहि तरहक पक्षपातपूर्ण आ गैरसमावेशीमूलक सहकार्य सँ दु:खी सेहो छी। सहभागिता मे कुशल व्यक्तित्व पर हमर कोनो प्रश्न नहि अछि, मुदा प्रयास एहि लेल जरुर हेबाक चाही जे सिर्फ खानापूर्ति करबाक लेल एक-आधटा वैह नाम जे सब मे देखल जाइछ तेकर अलावो आरो स्रष्टाक खोजि-खोजि समेटी, ई भावना तऽ आम जनमानस मे जायब जरुरी अछि। आखिर राज्य द्वारा संचालित आ बड़-बुजुर्ग अभिभावक लोकनि द्वारा संरक्षित एहि अकादमी मे जखन एहेन अराजकता रहत, तऽ बाकीक बेहाल होयब कोन पैघ बात भेल?
वर्तमान युवा पीढी मे विद्यानन्द बेदर्दी, नारायण मधुशाला, प्रिन्स मेहता, विन्देश्वर ठाकुर, प्रभात राय भट्ट, सुनील प्रियदर्शी, अशरफ राइन, आदिक जेना मैथिली भाषा एवं साहित्य मे योगदान भऽ रहल अछि नेपाल मे, किछु तहिना जँ भारतो मे होइतय तऽ हम दावाक संग कहि सकैत छलहुँ जे भाषिक पहिचान आ ताहि सँ आत्मसम्मानक बोध-अनुभूतिक प्रतिशतता आजुक तूलना मे बहुत आगू बढैत। मैथिली जिन्दाबादक ध्यान एहि दिशा मे निरन्तर लागल अछि जे हर वर्गक मैथिली स्रष्टाक पहिचान आ सम्मान हो। मुदा एकटा बातक अफसोस एतहु होइत अछि जे विद्यापति कोषक वितरण मे पारदर्शिताक कमी प्रा. परमेश्वर कापड़ि समान दिग्गज अभियानीक रहैतो होइत अछि। चिन्तन जारी राखू, सम्मान सँ बढिकय सृजनशीलता सँ आत्मसम्मानक अर्जन पर ध्यान राखू, मैथिली जिन्दाबाद होबे टा करत।
हरि: हर:!!