मिथिला मे जातीय वर्गीकरणक ठोस आधार: सामाजिक सौहार्द्रक नामहि टा बाँचल अछि

मिथिलाक अनुपम सामाजिक समरसताक उदाहरण जातीय वर्गीकरण - पढू पूरा बात संपादकीय मे।

विशेष संपादकीय

domaचुनावक बेर आ जाति-पाति पर चर्चा – ई तऽ आम बात बनि गेल अछि वर्तमान मे। एक सँ बढिकय एक पोलिटिकल पण्डित सब सेहो बिना जातीय समीकरण आ जातीय आधारित जनसंख्या केर आंकड़ा गनने-बुझने कोनो आकलन-व्यकलन करय सँ परहेज करैत छथि। किछु अक्खड़ जातिवादी राजनीति केनिहार तऽ खुलेआम जनसंख्या आधारित जनगणना केर माँग करैत अछि। एक दिशि देश मे विकास आ प्रगतिक आवाज उठैत अछि, दशकों सँ समाज आ जनता केँ ठैक-फुसिया वोट-बैंक पोलिटिक्स करैत अपन सत्तासुख केँ भोगैत आयल राजनीतिक शक्ति केँ देश सँ मानू सूपड़ा साफ करयवला हिन्दी कहावत अनुरूप साफ कैल जाइत छैक, मुदा बिहार मे धड़ल्ले सँ आगामी चुनाव केर मद्देनजरि जाति-आधारित बात सब पुन: जोर पकड़ने जा रहल अछि। कियो ‘परिवर्तन रैली’ कहि एहि कूव्यवस्थाकेँ जैड़ सँ उखाड़बाक लेल करोड़ों-अरबोंक खर्चा कय रहल अछि, कियो फेर सँ ‘स्वाभिमान रैली’ केर आयोजन कय जनमानस मे एकटा संदेश दैत ई कहय चाहैत छैक जे भले किछु भऽ जाइक, विकास-प्रगति जाय तेलहंड मे, मुदा स्वाभिमान बचेबाक छौक तऽ जातीय समीकरण अनुरूप अपनहि स्वजाति वा मिलल-जुलल जातिक नेताकेँ चुनिकय पठो। राजगद्दी पर बनौने रह, भले तोरा बच्चा आ परिवारक भविष्य हम सब दिल्ली-मुम्बई मे बिहारी बनिकय बेचय लेल मजबूर करियौक, मुदा वोट तूँ हमरे दे। परिवर्तन-बनाम-स्वाभिमान केर एहि झगड़ाक अन्तिम निर्णय ८ नवंबर चुनावी परिणाम एलाक बाद होयत। मुदा चर्चा-परिचर्चा मे ई बात एखनहि सँ आबि गेल अछि।

वर्तमान युग मे जाति-पाति केर महत्त्व बहुतो कारण सँ बढले जा रहल अछि। कहियो आरक्षण, कहियो वोट बैंक, कहियो सामाजिक वर्चस्व मे जनसंख्याक बहुल्यताक दंभ – विभिन्न कारण सँ मिथिला सहित देशक विभिन्न भूभाग आइ जातीय आधारित झगड़ा मे बदतर ढंग सँ उलैझ गेल अछि। आउ, कनेक मंथन करी अपन इतिहास पर आ फेर ताकी प्रासंगिकता एहि व्यवस्थाक वर्तमान मे।

सब जाति मे एकटा विशिष्ट लूरि जेकरा मैथिली मे घरैया लूरि कहल जाइत छैक तेकरा सम्मान करैत – आ ताहि आधार पर आपसी सौहार्द्रताक एकटा विध-विधान समेत तय करैत मिथिला मे जातीय वर्गीकरण देखल जाइत अछि। एहेन कोनो जाति नहि अछि जेकर अपन किछु विशिष्टता नहि रहैक। सच देखल जाय तऽ अदौकाल सँ मानव समुदाय यैह ‘लूरि’ केर आधार पर निज-कर्म निर्धारण करैत अछि, संगहि सामाजिक योगदान मे सेहो ओकर वास्तविक कलाजीविताक महत्त्व सँ सब सहकार्यक संस्कृति बनैत छैक। एतेक तक जे पाश्चात्य संस्कृति मे सेहो जातीय वर्गीकरण भले प्रत्यक्ष रूप मे नहि कैल गेल होइक, मुदा श्रम केर आधार पर स्वत: बढई (कमार) केँ कमार कहल जाइत छैक, प्लम्बर, सोनार, लोहार, शूमेकर, स्वीपर, आदि समस्त वर्गीकरण निज कलासंपन्नता सँ कैल जा रहल जीविकोपार्जन गुने अलग-अलग वर्ग मे मनुष्य केँ विभाजित कैल जाइत छैक।

मिथिलाक सामाजिक सौहार्द्रताक एकटा मजबूत आधार एक-दोसरक आवश्यकता केँ परिपूर्ति करबाक लेल बनल विध-विधान सँ सेहो देखल जा सकैत छैक। जेना, समाज मे केकरो विवाह होइक, वा श्राद्ध होइक, अथवा कोनो तरहक सार्वजनिक सहभागिताक कार्यक्रम चाहे निजी वा सामुदायिक स्तर पर भऽ रहल होइक, मुदा ओहि मे सब जाति ओ वर्गक सहभागिता रहिते टा छैक। एकटा धोबिन सँ लैत डोमाक चंगेरा-कोनिया, कुम्हारक अहिबात-पुरहर, नौआक हवन हेतु काठ-सामग्री एवं अन्य विधक समान केर संकलन, तहिना सोनार, चमार, कमार, पटवा। बड़ई, खवास, आदि सब जातिक ओकर विशिष्ट कर्म ओ श्रमक आधार पर सहयोग लेबाक आ बदला मे ओकरा समुचित साली देबाक सेहो विधान एतहि रहल अछि। बाद मे मुसलमान धर्म अपनौनिहार केँ सेहो किछु यैह शैली मे विशिष्ट कलासंपन्नताक आधार पर समाज मे स्वीकृति भेटलैक से स्पष्ट अछि। जोलहा, कुजरा, धुनिया, आदि अनेको वर्गक मुसलमान मिथिला मे भेटैत अछि। घर-गृहस्थीक लेल आवश्यक प्रत्येक कार्य केर निष्पादन हेतु मैथिल केर विभिन्न जाति एवं उपजातिक सृजन होयबाक दृष्टान्त सुस्पष्ट अछि।

मुदा वर्ण व्यवस्था मे पहिने सँ कैल गेल आशंका मुताबिक जखन लोक अपन कर्म व आचरण केँ त्यागि दोसराक कर्म-आचरण तरफ प्रवृत्त होयत, तऽ स्वाभाविके जातीय वर्गीकरणक अप्रासंगिकता सेहो देखाइत अछि। वर्तमान समय मे वेद पढबाक या कोनो प्रकारक शिक्षा ग्रहण करबाक लेल कोनो जाति केँ विशेष आरक्षण नहि देल गेल अछि। तुलसीदास एवं समस्त इतिहासकार-पुराणकार लोकनिक कथनानुसार वर्णसंकरक उत्पत्ति एहि युग मे स्वाभाविके अछि। ब्राह्मण केँ अपन कर्म पर एकाधिकार नहि रहि गेल छन्हि, आ नहिये अपन ओहि पुरहिताइ सँ हुनकर वा हुनक परिवारक पेट पोसाइत छन्हि। ओ निकृष्ट सँ निकृष्टतम् कार्य करैत अपन बाल-बच्चा-परिवार-समाज आ व्यवहार केर रक्षा मे रत छथि, कर्म भले शूद्रवत् आ सेवादायी दास वर्गहि केर कियैक नहि हो, ओ करैत छथि। तहिना शूद्र लोकनि आइ ब्राह्मणक छद्मवेष मे कूत्सित दान लेबा सँ हर्ज नहि मानैत छथि। धर्म एवं परंपराक अधिकांश बात यैह तरहक खिचड़ी वर्णसंकर बनि गेल छैक। ई समय, परिस्थिति आ काल अनुरूप निर्धारित भऽ रहलैक अछि। देखिते छियैक जे आइ आडंबरी बजक्कर-फचैंर बिन ज्ञानहु आ संस्कारहु केँ बड़का प्रवचनकर्ता आ उपदेशक बनिकय समाज केँ दिशा देमयमे लागि गेल छैक। कतेको साधू तऽ रंगेहाथ असामाजिक आ आपराधिक वृत्तिमे पकड़ैयो गेल अछि। ब्राह्मण सहित विभिन्न उच्चवर्गक अपनहु माँग जे समाजक अगुआवर्ग आ प्रबुद्धवर्ग हम छी आ हमरे ऊपर समाजक हर वर्ग केँ समेटिकय प्रगतिशील मार्ग पर चलबाक भार अछि, एहि वैदिक सत्य सँ सब कियो आइ विमूख अछि। धर्म-परिवर्तन सँ लैत स्वतंत्र व्यभिचार (फ्री सेक्स) आदिक ओकालति कैल जाइत छैक वर्तमान मे। भारतीय दर्शन केँ नकारल जाइत छैक, इट-ड्रींक-एण्ड-बी-मैरी केर क्रिश्चियन थ्योरी सबकेँ नीक लगैत छैक। कहियो चार्वाक् समान दार्शनिक विचारक कहैक जे जावम् जिवेत् सुखं जिवेत् – ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत्; आइ राज्य द्वारा सेहो आ विभिन्न बैंकिंग कारोबार कएनिहार द्वारा सेहो आम जनमानस केँ सब तरहक लोन (कर्जा) लेबाक लेल उकसायल जाइत छैक। आब बुझि सकैत छी जे मिथिलाक अदौकालक सामाजिक समरसताक सान्दर्भिकता आ प्रासंगिकता आइ कतय ठाढ अछि। एहि समाजक नेतृत्वकर्ता कतेक टूकड़ा मे बाँटि अपन खीचड़ी पका रहला अछि। विकास आ प्रगतिक चिन्ता तऽ दूरे छोड़ू, बस दारूमय जीवन, जातिय टूकड़ा मे यौवन आ मनमौजी भरल व्यवहार मे आम जनजीवन….! लगे रहो मुन्ना भाई!! हिन्दीक ई आधुनिक कहाबत सहित आइ हिन्दी दिवस पर संपूर्ण मैथिल जनमानस मे शुभकामना दैत अपन भाषिक पहिचान केँ सम्बल बनेबाक दायित्व निर्वाह करबाक अपील संग एहि संपादकीय केँ अन्त करैत छी।

हरि: हर:!!