नेपालक आन्दोलन पर विचार मंथन – सन्दर्भ मैथिल बुद्धिजीवीक मधेशी पहिचान प्रति स्वीकार्यता या मैथिल पहिचान लेल संघर्ष
नेपाल मे संविधान घोषणा होयबाक आखिरी पहर आबि गेल छैक। सरकारक प्रवक्ता लोकनिक मानल जाय तऽ यैह महीना भाद्र केर अन्त धरि संविधान घोषणा कय देल जायत। नव नेपाल संघीय प्रदेशक अवधारणा सहित संविधान बनाकय मस्यौदा प्रस्ताव पर जनभावना संकलित करैत संशोधित रूप – अन्तिम रूप पर बहस कय रहल अछि।
हाल घोषित सीमांकन मे मिथिलाक्षेत्र केर भूगोल केँ पौराणिक ऐतिहासिक साक्ष्यक आधार पर प्रदेश दुइ कहि नामकरण लेल प्रादेशिक सभा केर निजी अधिकार लेल छोड़ि देल गेलैक अछि। परञ्च मधेशवादी राजनीतिक दल तथा मधेशी जनताक एकजुटता आइयो शासकवर्ग सँ ‘समग्र मधेश एक प्रदेश’ यानि मेची सँ महाकाली धरिक मधेश पट्टी केर एक स्वायत्त प्रदेश लेल माँग जोर पकड़ने छैक, आइ लगातार सातम दिन मधेश मे बन्द-हड़तार जारी छैक। संभव छैक जे कोनो बेर फेर नव घोषणा सरकारक तरफ सँ मधेश केर आन्दोलन केँ संबोधन करबाक लेल भऽ सकैत छैक।
यदाकदा एकटा प्रश्न उठैत रहैत छैक जे मैथिल पहिचानधारी – यानि मिथिला-मधेशक वासिन्दा आ खासकय एतुका बुद्धिजीवी मधेशी पहिचान पेबाक लेल प्रयत्नरत अछि आ कि मैथिल पहिचान केँ स्थापित करबाक चाहत रखैत अछि। मिथिमिडिया केर संपादक रूपेश त्योथ एहि पर अपन राय दैत लिखैत छथि जे मैथिल बुद्धिजीवी कन्फ्युज लगैत छथि। परन्तु वास्तविकता परिस्थिति मुताबिक किछु आरे छैक। मैथिल बुद्धिजीवी लोकनि मधेश पर कन्फ्युज नहि छथि, बल्कि पहाड़ी शासक वर्ग द्वारा देल गेल औपनिवेशिक पहिचान केँ स्वीकार करैत मैथिल मधेशी कहेनाय स्वीकार कएने छथि। आरो भीतर प्रवेश केला पर पता चलैत अछि जे पहाड़ी शासक सौंसे तराई पट्टी जे भारतक सीमा सँ लगैत छैक, जाहि पट्टी पर पहाड़ी शासक केर अधिकार सुगौली संधि सँ अंग्रेज द्वारा भेट गेलैक, तेकरा मधेश कहैत छलैक, ओतय बसोवास कएनिहार केँ मधेशी।
विगत २० वर्ष सँ नेपाल मे राजनैतिक अवस्था मे परिवर्तन लेल विभिन्न प्रकारक संघर्ष चललैक, २५० वर्षक पुरान राजसंस्था केर अन्त भेलैक, आ आब राजतंत्रिक प्रजातांत्रिक मुलुक सँ संघीय लोकतांत्रिक गणतंत्र नेपाल केर रूप मे उदित भेलैक अछि, जाहि मे संपूर्ण मधेश आ मधेशीक उत्पीड़ण युग अन्त कय पहिचान सहितक संघीय मधेश प्रदेश निर्माण केर पैघ माँग छैक। पहाड़ी शासक वर्ग एना सौंसे मधेश पर मधेशीक हक-अधिकार सौंपब देशक विखंडन होयब मानि मिश्रित संस्कृति आ भूगोल केर देश मे उत्तरे-दक्षिणे प्रदेशक निर्धारण करैत अपन वर्चस्व केँ बरकरार राखबाक आन्तरिक मनसा सँ समाधान निकालबाक लेल चेष्टा कय रहलैक अछि, तऽ मधेशवादी राजनीतिकर्मी मधेश प्रदेश अलगे बनबैत स्वायत्तशासन केर बात कय रहलैक अछि। यैह द्वंद्व मे मधेश क्षेत्र सशक्तरूप सँ ब्रान्डेड आ स्थापित भेलैक, जेकरा महज ‘मैथिल’, ‘भोजपुरी’, ‘अबधी’, ‘थारू’, ‘राजवंशी’, ‘दलित’, ‘मुसलमान’ आदिक उप-पहिचान सँ दबौनाय संभव नहि प्रतीत होइत छैक। मधेशक विशालता कोनो उपक्षेत्रीय पहिचान सँ ऊपर छैक। एहि मे कतहु दुइ मत नहि।
मुदा पहाड़ी शासकवर्गक जिद्द आ मधेशवादीक जिद्द कतहु न कतहु देश मे एहेन तनाव उत्पन्न कय रहलैक अछि जेकर सच पूछू तऽ आवश्यकता छहिये नहि। नेपाल एक तऽ ओहिना भौगोलिक रूप सँ छोट मुलुक, ताहि मे मधेश समान बहुसांस्कृतिक-बहुभाषिक-बहुपहिचानक प्रदेश केँ एक करब आ ठीक तहिना बहुसांस्कृतिक-बहुभाषिक-बहुपहिचानक पहाड़ प्रदेश केँ पूब सँ पच्छिम धरि एक करब आ तहिना हिमाली प्रदेश केँ एक करब अवैज्ञानिक आ अदूरदर्शी हेतैक, ई मानल बात छैक।
ताहि हेतु, उत्पीड़ण केँ दूर करबाक उद्देश्य केँ सर्वोपरि मानैत बहुप्रदेशक अवधारणा आनैत नेपाल मे संघीयता केँ स्थापित करब जरुरी छैक। स्वायत्तशासी प्रदेश बनेबाक बात सही छैक, लेकिन मुलुक केर संप्रभुता आ अखंडताक रक्षा लेल केन्द्रक अधिकार, राष्ट्रपति शासनक अधिकार आ देशक सब प्रदेशक नागरिक लेल डोमिसाइल नागरिक अधिकार केर सुनिश्चितिक उपाय सहित सशक्त संविधान केँ अन्तिम रूप देबाक आवश्यकता छैक। एहि लेल उपक्षेत्रीय मधेशी पहिचानक आधार पर कम सँ कम तीन आ बेसी सँ बेसी चारि प्रदेश, मिथिला, भोजपुरा आ अबध तथा थरुहट तथा पहाड़ एवं हिमाल जोड़िकय कुल चारि प्रदेश, यानि संपूर्ण मे आठ राज्य (प्रदेश) संग नव नेपाल गणराज्य बनेला सँ दीर्घकालीक समाधान आ शान्तिक स्थापना हेतैक ई हमर व्यक्तिगत सोच अछि।
सच मे, मिथिला बिना तऽ संघीय संरचना नेपालक स्थापित करब संभवो नहि छैक, कारण मिथिलाक ऐतिहासिकता एहेन अकाट्य आधार छैक जे समस्त नेपाल केँ ठाढ करय मे सब दिन सहयोगीक भूमिका खेलेने छैक, मधेशक माँग सेहो यैह मिथिला सँ उठल छैक आ संघीयताक माँग सेहो एहि मिथिलाक देन छैक नेपाल मे। तखन मिथिला केँ लोप कय संघीयताक स्थापना नेपाल मे अकल्पनीय छैक।