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मंत्र साधनाक सहज स्वरूप आ महत्व पर प्रवीण प्रकाश

मंत्र शक्ति – साधना केना करी
– प्रवीण नारायण चौधरी
 
बहुते लोक ई अनुभव कएने होयब जे कोनो शब्दक उच्चारण बेर-बेर करैत रहला सँ ओकर प्रभाव हमर-अहाँक मन-मस्तिष्क होइत आत्मा धरि पहुँचैत निश्चय परमात्मा धरि पहुँचि जाइछ । शब्दक निरन्तर उच्चारण सँ ओकर भाव केर सम्प्रेषण जहिना मन-मस्तिष्क आ आत्मा-परमात्मा धरि पहुँचैत अछि – यैह होइछ मंत्र शक्ति ।
 
मंत्र – अर्थात् शब्दक समूह जाहि सँ पवित्र भावनाक उद्गार होइछ । मोनक तार केँ झंकृत करयवला शब्द-समूह व वाणी । एकर गूढ़ परिभाषा आरो विशद् भ’ सकैछ, मुदा हम अपन मोनक अनुभव सँ जे बात बुझल से लिखल अछि । उदाहरणार्थ –
 
त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्चसखा त्वमेव ।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम् देव देव ॥
 
ई श्लोक अपने सब बहुत बाल्यकाल सँ विद्यालय मे सिखलियैक । एहि श्लोकक सम्पूर्ण भाव केँ जाने-अनजाने अपना लेलियैक । एहि तरहें स्तुतिगान करैत स्वयं केँ परमात्मा मे लीन कय लेलियैक । एकर सार्थकता सँ स्वयं मे एहेन शक्तिक आविर्भाव कय बैसलियैक जे कखनहुँ स्वयं केँ असगर, असहाय आ कि अभागल नहि बुझि सदैव ईश्वरक शरणागत मानि निडर, निःशंक आ निश्छल बनबाक दिशा मे बढैत चलि गेलियैक । यैह भेलैक मंत्र ।
 
द्विज केँ जखन उपनयन होइछ, गायत्री मंत्र गुरु सँ कान मे प्रवेश करबैत ओकर गूढ़ता केँ मनन करैत आध्यात्मिक शक्ति सँ विशेष आशीर्वाद आर्जन लेल तैयार कयल जाइछ ।
 
ॐ भुर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरैण्यं भर्गो देवस्य धिमहि धियो योनः प्रचोदयात् ।
 
अर्थात् – हम ओहि प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवश्वरूप परमात्माक ध्यान करी जे हमर बुद्धि केँ सन्मार्ग मे प्रेरित करथि ।
 
मंत्र मात्र शब्दसमूह आ कोनो निश्चय भावना बिना सेहो सम्भव छैक । जेना – नाम मंत्र – केवल प्रभुजीक नाम केर सुमिरन करब से मंत्रोपासना समान उच्च भाव सँ परिपूर्ण होइत छैक । तहिना बीजमंत्र – मात्र एक शब्दक होइतो ओहि मे अत्युच्चभाव समाहित रहबाक कारण सर्वाधिक प्रभावशाली मानल गेल छैक । आर यदि अहाँ मौन मात्र छी, ध्यान सँ परमात्मा धरि अपन भाव केर सम्प्रेषण कय सकैत छी त अहाँ मंत्र साधना सँ बहुत उपर ‘मुनि-महात्मा’ बनि जाइत छी ।
 
सुनु सिय सत्य असीस हमारी, पूजिहि मनोकामना तुम्हारी ।
नारद बचन सदा सुचि साचा, सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा ॥
 
सीताजी लेल स्वयंवर रचेनिहार पिता जनकक संकल्प कतेक कठोर छल से विदिते अछि । सब घबरा गेल छल । आखिर ई शिवधनुष केकरा सँ भंग हेतैक आ के सीताक पाणिग्रहण करता ! चर्चाक विषय भ’ गेल छलैक । ओना सीता साक्षात् भगवतीक अवतार रहथि, परञ्च मानुष तन मे मानुसिक लीला काल हुनको चिन्ता बढ़ि गेल छलन्हि । ओ सेहो आतुर भ’ गेल रहथि । आराध्या गिरिजा महारानी केँ पूजन लेल गेल छलीह, फुल लोढ़ैत समय राजकुमार रामचन्द्र जी केँ भाइ लक्ष्मण संग विचरन करैत देखलीह आ मनहि-मन श्रीराम केँ वर रूप मे वरण कयलीह । वरण पछाति अपन मोनक बात लोक आराध्य देव वा जन्मदाता माता-पिता सँ करैत अछि । चूँकि जानकीक माता-पिता अपनहि तरहक प्रण कय लेने रहथि – त सीताजी लेल विकल्प एक्कहि टा बचलनि जे ओ केवल अपन आराध्या सँ मोनक बात राखि सकैत छथि । गौरी-पूजन कय ओ श्रीरामक दर्शनक भाव सेहो प्रकट कयलीह । आर ताहि समय गौरी – गिरिजा भवानी हुनका आशीर्वाद दैत उपरोक्त मंत्र आशीर्वाद स्वरूप प्रदान कयलीह ।
 
आब जे कियो कुमारि कन्या सुन्दर वर केर चाहत राखि एहि मंत्र (भाव) केर साधना करैत छथि, हुनका उपर निश्चय गौरी भवानी संग-संग अधिष्ठात्री लक्ष्मी महारानी आ ब्रह्माणी सरस्वती सहित तीनू देवी आ तीनू देव – त्रिदेव केर कृपा भेटब सुनिश्चित होइछ । बस, ध्यान एतबी रखबाक रहैछ जे हरेक साधना हृदय-मन केँ एकाग्र कय केँ करू । कनिकबो विचलन सही नहि छैक ।
 
विचलन मादे सेहो एकटा छोट कथा कहि दी –
 
एक बेर कतहु भक्ति आ भगवानक शक्ति पर किछु हिन्दू आ किछु मुसलमान संगहि किछु आन लोक सभक बीच बाते-बात मे परीक्षा होबय लगलैक । शर्त रखनिहार शर्त राखि देलखिन जे देखी किनका मे अपन भगवान प्रति केहेन भक्ति अछि आ तेकर केहेन शक्ति छैक एकर परीक्षा हो । एक गोट हिन्दू भक्त केँ कहल गेलनि जे एहि गाछ पर चढ़ू आ अपन भगवान् केँ सुमिरिकय उपर सँ नीचाँ कुदू । ओ हिन्दू भक्त गाछ पर चढ़लाह आ ‘जय श्री राम’ कहिकय कुदि गेलाह, बचि गेलाह । तहिना मुसलमान भक्त सँ हुनक आस्था मुताबिक खुदाक स्मरण करैत यैह काज करय कहल गेलनि, ओहो कयलनि, जीत भेटलनि । एकटा आर भक्त सोझाँ अयलाह जे न भगवान् केँ मानैथ, नहिये खुदा केँ – ओहो परीक्षा देब कहिकय गाछ पर चढ़लाह, ओहो कुदि गेलाह – मुदा बिच्चहि मे एतबा डर लागि गेलनि जे खने ‘राम’ खने ‘खुदा’ केँ गोहारय लगलाह, राम आ खुदा – कियो काज नहि अयलखिन्ह । नीचाँ खसिते टाँग-हाथ तोड़ि ६ मास घर आराम कयलनि । चारूकात कोहराम मचि गेलैक जे ‘राम-खुदैया’ करनिहारक टाँग-हाथ टुटि गेलनि ।
 
कहबाक तात्पर्य ई भेल जे मंत्र प्रति मन सँ समर्थन आ तदनुसार भक्तिभाव सँ भरिकय साधना कयला पर शक्तिक आविर्भाव हेब्बे टा करैत छैक । अगबे गफलतबाजी करब आ तखन भगवानहि केर परीक्षा लैत रहब त राम-खुदैया वाली हाल सँ कियो नहि बचा सकत । सावधान !
 
हरिः हरः!!

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