लेख विचार
प्रेषित: कीर्ति नारायण झा
श्रोत: दहेज मुक्त मिथिला समूह
लेखनी के धार ,बृहस्पतिवार साप्ताहिक गतिविधि
विषय :-आधुनिकता आ आडंबर युक्त विवाह सौं प्रभावित होइत समाज
गामक बुद्धि बाबू गाम सँ साकीन भऽ गेलाह। आब मात्र घरारी टा बचल छैन्ह। गामक अत्यंत प्रतिष्ठित परिवार, देखिते देखिते समाप्त भऽ गेलैक। गाम भरिक लोक जमा होइत छल बुद्धि बाबू के ओहिठाम, कारण हुनक ब्यवहार एतेक नीक छलैन्ह जे गामक कोनो प्रकारक झंझट चाहे ओ पारिवारिक रहै अथवा जमीन जायदाद के, बुद्धि बाबू अपन ब्यवहार के द्वारा दुनू पक्ष के शांत कऽ दैत छलखिन्ह आ गामक विवाद गाम सँ बाहर नहिं जाइत छलैक। जमीन जथा सेहो नीक छलैन्ह हुनका। दू भाई में गामक दस दस बीघा जमीन हिस्सा में भेटल छलैन्ह हुनका। भगवान दू टा बेटा आ पाँच टा बेटी देने छलखिन्ह। बेटा बेटी देखबा मे राजकुमार आ राजकुमारी जकाँ सुंदर। बेटी सभ पैघ छलैन्ह आ बेटा दुनू छोट। बेटी कने जल्दी सेहो बढि जाइत छैक। गामक समाज जखन बेटी के शोलह साल पार करैत देखलखिन्ह तऽ मंगनी के राय बिचार देवाक लेल बुद्धि बाबू के कनियाँ के कान में भरनाइ आरम्भ करय लगलखिन। ओहो पाँच टा बेटी होयवाक कारणे अपन कान ठाढ कयने छलीह। बुद्धि बाबू सेहो कनियाँ के आग्रह के बेसी दिन धरि रोकि नहिं पाओलाह आ नीक परिवारक लड़का के ताकय लगलाह। मध्यम वर्गीय परिवार होयवाक कारणे कतहु सम्बन्ध नहिं कऽ लैतथि तें अपना सँ कनेक ऊँचे सम्बन्ध ताकय लगलाह। बेसी धनीक रहितथि तऽ पाई कौड़ी के कोनो चिन्ता नहिं रहितैन अथवा निर्धन रहितथि तऽ कोनों निर्धन घरक लड़का ताकितेथि मुदा सभ सँ दिक्कत मध्यवर्गीय परिवार के कारण छलैन्ह। कियो ग्रामीण कहलखिन जे सौराठ सभा सँ बेटी के बियाह करू, मुदा कथी लेल ओहि पर ध्यान देथिन्ह। बेटा दुनू छोट छलखिन्ह आ विद्यालय मे पढि रहल छलखिन्ह। घर में खेती के अलावा आओर कोनो आमदनी के कोनो स्त्रोत नहिं। अंत में हारि कऽ जमीन बेचि कऽ बेटी के बियाह करय लगलाह। पाँचो बेटी के बियाह करैत करैत सभटा जमीन जथा बिका गेलैन्ह। बेटा दुनू पढि कऽ रोजी रोटी में लागि गेलखिन्ह आ परिवार के गुजर बसर करय लगलाह। गाम सँ आ अपन माय बाप सँ कोनो प्रकारक सम्बन्ध नहि रहि गेलैन्ह। गाम में दुनू प्राणी असगर काहि कटैत छथिन्ह। एहि बेर भेंट करवाक लेल गेल रही तऽ अवस्था देखि कऽ बड्ड दुख भेल जे सभक सभ दिन उपकार करय बला लोक दिस कियो हुलकी मारवाक लेल तैयार नहिं अछि। बेटा बेटी के बारे में पूछलियनि तऽ कहलनि जे हुनका सभके फुर्सत नहिं छैन्ह।अबैत काल गोर लागलियनि तऽ आशीर्वाद दैत कहलन्हि जे भगवान खूब धन सम्पत्ति दैथि जाहि सँ जीवन भरि सुखी रही। हमरा जकाँ मध्यवर्गीय कहियो नहिं बनी जे अपन इज्जत बचबैत बचबैत निर्भूमि बनवाक अभिशाप नहिं झेलय पड़य। नेत्र सँ अदृश्य नोर झेलवाक साहस नहिं करैत हुनक नेत्र सँ अदृश्य भेनाई समय केर माँग छल……. कीर्ति नारायण झा