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कविचन्द्र विरचित मिथिलाभाषा रामायणः लङ्काकाण्ड – चौदहम अध्याय

स्वाध्याय

– प्रवीण नारायण चौधरी

कविचन्द्र विरचित मिथिलाभाषा रामायण

लङ्काकाण्ड – चौदहम अध्याय

।जयकरी छन्द।

क्रम क्रम सकल देखाबथि बाट । रथपर सौँ सीता काँ राम ॥
गिरि त्रिकूट लङ्का रण-भूमि । काक गृद्ध मड़ड़ाइछ घूमि ॥
राक्षस वानर काँ एत मारि । मुइला एतहि दशानन हारि ॥
कुम्भकर्ण घननादक झुण्ड । बहुतक एतहि खसल छल मुण्ड ॥
ई बाँधल भेल सागर – सेतु । वानर – निकर उतरबा हेतु ॥
परम पवित्र पाप सभ हरथि । सेतुबन्ध दर्शन जे करथि ॥
हम रामेश्वर स्थापन कयल । शरण विभीषण एहि थल धयल ॥
दर्शन कयल जानकी जाय । जय शिव रटथि सैन्य – समुदाय ॥
किष्किन्धा ई कपिपति – ग्राम । कहि किछु काल कयल विश्राम ॥
तारादिक सुग्रीवक दार । चढ़ली पुन रथ उड़ल उदार ॥
सीता – प्रिय – कारण व्यवहार । करथि रघूत्तम विश्वाधार ॥
मुइला बालि बली एहिठाम । ऋष्यमूक गिरि हिनकर नाम ॥
पञ्चवटी अयलहुँ से ठाम । राक्षस सङ्ग जतय सङ्ग्राम ॥
भेला जे जे समर समक्ष । मारल गेला से से रक्ष ॥
मुनि सुतीक्ष्ण मुनि तथा अगस्त्य । आश्रम दूनू परम प्रशस्त ॥
तापसगण पड़इत छथि दृष्टि । धन्य धन्य थिक हिनकर सृष्टि ॥
चित्रकूट गिरि होइछ प्रकाश । बारह वर्ष जतय छल वास ॥
होउ प्रसन्न शरण हम धयल । भरत बहुत हठ एतहि कयल ॥
भारद्वाजाश्रम ई थीक । यमुनातट मे लगइछ नीक ॥
ई थिकि गङ्गा करू प्रणाम । परम पवित्रा कहलनि राम ॥
सरयू निकट अयोध्या धाम । थिक कर्त्तव्य नगर – विश्राम ॥

।सोरठा।

भरद्वाज – मुनि – धाम, अटकाओल कौबेर रथ ।
अभिनत कयल प्रणाम, मुनि हर्षित पुचलनि कुशल ॥
पूर्ण चतुर्दश वर्ष, तिथि भल आइलि पञ्चमी ।
मन बाढ़ल हर्ष, वार्त्ता पुर पहिलहि उचित ॥
जिबइत छथि सभ माय, भरद्वाज मुनि शुनल अछि ।
कुशल क्षेम दुहु भाय, पुरी सुभिक्षा अछि कहू ॥
अति प्रसन्न सब लोक, भरद्वाज हसयित कहल ।
अपनैँक केवल शोक, आबि गेलहुँ देखबे करब ॥
कन्द मूल फल खाथि, माथ जटा बल्कल वसन ।
अनतय कतहु न जाथि, भरत खरौँ सेवा करथि ॥

।चौपाइ।

तप – प्रताप अपनैक पद ध्यान । रामचन्द्र हमरा सभ ज्ञान ॥
जे जे चरित कयल प्रभु जाय । आज्ञा पायब देब शुनाय ॥
नहि अछि आदि मध्य नहि अन्त । परब्रह्म छी देव अनन्त ॥
अपनैँक नाभिकमल – उत्पन्न । ब्रह्मा करथि सृष्टि सम्पन्न ॥
निर्गुण ब्रह्म सगुण अवतार । हरण करैछी पृथिवी – भार ॥
करु पवित्र प्रभु हमरो गेह । सेवक – विषय विशेष सिनेह ॥
अङ्गीकार कयल भगवान । अति आतिथ्य सुभोज्य विधान ॥
भेटय तीर्थ तहाँ तहाँ जाथि । तीर्थ – कृत्य – विधि तहाँ नहाथि ॥

।बरबा छन्द।

कहलनि श्रीरघुनन्दन, शुनु हनुमान ।
अयलहुँ से वार्त्ता पड़, भरतक कान ॥

।प्रज्झटिति छन्द।

पुर झटिति पवन – सुत अहाँ जाउ । सभ कुशलक्षेम जनकाँ शुनाउ ।
गुह शृङ्गवेरपुर हमर मित्र । तनिकहु कहि देबक सभ चरित्र ॥
छथि नन्दिग्राम मे भरत भाय । आगमन कुशल तनिकाँ शुनाय ॥
पुन हमर निकट अहँ शीघ्र आउ । कहु किछु विलम्ब नहि अहँ लगाउ ॥
मानुष – तन धयलय हनूमान । चलला उड़ि नभ जनु गरुत्मान ॥
से शृङ्वेरपुर प्रथम जाय । अयला रघुनन्दन से शुनाय ॥
चौदह वर्षोत्तर अहँक मित्र । सभटा कहि देलनि तनि चरित्र ॥
अतिशय मन हर्षित गुह निषाद । छुटि गेल सकल संशय – विषाद ॥

।चौपाइ।

कहि हनुमान चलल उड़ि गगन । रामतीर्थ सरयू देखि मगन ॥
सरयू लाँघि गेला तहिठाम । भरत छला जहाँ नन्दिग्राम ॥
रामचरण – पङ्कज अनुराग । डेढ़ कोश निजपुर सौँ लाग ॥
अति कृश देखल भरत – शरीर । नहि सुखाय पल नयनक नीर ॥
जटामुकुट बलकल भल चीर । दीन मीन संक्षीण सुनीर ॥
कन्द मूल फल भक्ष्य – विधान । रामचन्द्र – पद केवल ध्यान ॥
पुर – प्रधान काँ शोक अभङ्ग । वसन पहिर से गेरुक रङ्ग ॥
चौदहवर्ष जानि अवसान । पलपल हर्ष विषाद समान ॥
धर्म्ममूर्त्ति जनु देखल ठाढ़ । हर्ष हनूमानक मन बाढ़ ॥
कहलनि विनत हाथ दुनु जोड़ि । चिन्ता भरत अहाँ दिय छोड़ि ॥
त्यागु त्यागु निज हृदय – महाधि । राम – वियोगज – शोक – समाधि ॥
गाछ सुखायल लता समूल । भेल सपल्लव नव फल फूल ॥
नाच मयूर पूरस्वर गाब । षड्ज सु – मूर्तिमान बनि आब ॥
कोकिल – कुल कल करइछ गान । स्वर पञ्चम शुनि पड़इछ कान ॥
केकयि – नन्दन करु अनुमान । अयला रामचन्द्र भगवान ॥
राजराज – रथपर रघुराज । राजा बनल अबै छथि आज ॥
रावण काँ मारल सङ्ग्राम । कर्म्म अमानुष कयलनि राम ॥
क्रम क्रम चरित कहल सभ गोट । नहि कर्त्तव्य भरत मन छोट ॥
सीता लक्ष्मण चित्त प्रसन्न । प्रभु सङ्ग मित्र सुगुण – सम्पन्न ॥
हर्षक कथा शुनाओल कान । करु उद्योग मिलन सन्मान ॥

।आर्य्या दोहा।
।जाज तिरहुति।

पवन – तनय – मुखवाणी, शुनल भरत हित कान ।
सकल-कला – कल्याणी, ब्रह्मानन्द – समान ॥
फरकै छल अछि दहिना, भुज ओ दहिना आँखि ।
सत्य – वचन प्रभु तहिना, मरइत लेलनि राखि ॥

।मिथिला-सङ्गीतानुसारेण कोडार-छन्दः।

अयला भ्राता नरेश ।
केकयी – कुमत्रणा सौँ बनी मुनिवेश ॥
विष्णु की विरञ्चि अहाँ की स्वयं महेश ।
मानव कि कारुणिक लयलहुँ सन्देश ॥
हर्षकथा बराबरि वित्त नै विशेष ।
रघुनाथ – सभ्य अहाँ लोभक न लेश ॥
आउ मिलि पाउ सुख कहू कि निदेश ।
धन्य धन्य आज हम छूटल कलेश ॥

।दोहा।

ग्राम देब शय गोट हम, शय हजार देब गाय ।
मुग्धा षोड़श कन्यका, मरयित लेल जिआय ॥

।चौपाइ।

भरत एक मन करु जनु शोक । कुशलक्षेम अबइत छथि लोक ॥
जनिक हेतु चिन्ता विस्तारि । अयला से रण रावण मारि ॥
अपनैँक कुशल बुझक छल काज । आगु पठाओल श्रीरघुराज ॥
दारुण शोक करू परित्याग । जागल भरत इष्टजन – भाग ॥
देखब भाय मनोरथ पूत । किछु विलम्ब नहि एक मुहूर्त ॥
लक्ष्मण सङ्ग राम कृत – कार्य्य । आबि गेला अछि कुशल सभार्य्य ॥
हरपनार – सौँ गेला नहाय । रघुनन्दन सन अयला भाय ॥
खसि पड़ला महि हर्ष अपार । अति आनन्द कि तन सम्भार ॥
मारुत – सुत काँ हृदय लगाब । उजड़ल नगर बसाओल आब ॥
बहुत वर्ष शोचहिँ गेल बीति । वार्त्ता आइ प्राप्त भल रीति ॥
जौँ जिब रह तौँ सहज स्वभाब । शय वर्षहु पर आनन्द आब ॥
कहु वानर रघुवर सतसङ्ग । कोन गत बाढ़ल प्रीति अभङ्ग ॥
क्रम क्रम सकल चरित हनुमान । कहल मगन – मन शेष समान ॥
भरत कहल शत्रुघ्न बजाय । अयला अरि जिति बड़का भाय ॥
देवी देव जते छथि गाम । तनिक समर्च्चन हो तहिठाम ॥
वन्दी मागध प्रभृति जे लोक । आबथि शीघ्र रोक नहि टोक ॥
गणिकागण काँ शीघ्र बजाब । मङ्गलदायिनि गाइनि आब ॥

।गीत तिरहुति।

भरत निकट मे एक जन, बड़ परसन,
कहलनि शुभ सन्देश, आब प्रभु यहिखन ॥
जनिक वियोग सकल जन, अति अनमन,
देखब जनक – दुलारि, राम ओ लछमन ॥
हर्ष – नोर दृग बहयित, ई कहयित,
बीतल चौदह वर्ष, विषम दुख सहयित ॥
गीत सुन्दरी गाबथि, हरि आबथि,
रामचन्द्र घनश्याम, चातकी पाबथि ॥

।जयकरी छन्द।

हाथी घोड़ा रथ पथ लागु । रानिक चलय सबारी आगु ॥
चलल सकल पुरजन अगुआय । देखब राम इ नयन जुड़ाय ॥
ब्राह्मण वृद्ध कहथि सभ लोक । आज छुटत मानस जत शोक ॥
मुक्तारत्नमयोज्वल गाम । तोरण विविध पताका धाम ॥
घर – बाहर छवि तेहन बनाब । वासव – मानस विस्मय आब ॥
वृन्द वृन्द चलली पुर – नारि । रम्भा रतिक गर्व्व देल टारि ॥
शय हजार घोड़ा रथ सङ्ग । एक अयुत तत मद मातङ्ग ॥
कनक – अलङ्कृत रथ पथ राज । स्वागत रामचन्द्र महराज ॥
शिविका चढ़लि चललि सभ माय । बाल तरुण कि रहय पछुआय ॥
रामक खरौँ भरत धय माँथ । हाथ जोड़ि कह भेटता नाथ ॥
पयरहि चलल सङ्ग लघु भाय । गगन निहारथि दृष्टि उठाय ॥

।सोरठा।

आब कि अछि कहबाक, भुज उठाय हनुमान कह ।
सभ जन ऊपर ताक, रथ अबइछ जनु चन्द्ररवि ॥
सीता लक्ष्मण राम, ओ सुग्रीव कपीश छथि ।
भक्त विभीषण नाम, मन्त्री मान्य अनेक जन ॥

।मिथिला सङ्गीतानुसारेण कामोद छन्दः।

मन बड़ हरष बरष दृग – वारि
सीता राम लक्ष्मण बदन निहारि ।
गेला वनवास ओ बरष दश चारि
अयला अबधि – दिन रावण केँ मारि ॥
आनन्द – सुधावगाह सब नरनारि
मनोरथ – द्रुम कुसुमित सभ डारि ॥
त्रिदश आनन्दमग्न नररूप धारि
मर्त्य देवलोकक टुटल जनु आरि ॥

।जयकरी छन्द।

देखि कयल जन हर्षक सोर । अयला राम सुदिन भेल मोर ॥
लक्ष्मण सीता रथपर राज । भल भल हित जन तनिक समाज ॥
वृद्ध बाल वनितागण भाष । देखल राम पुरल अभिलाष ॥
उतरि बाजि गज रथ असबार । रामचन्द्र दिश गगन निहार ॥
भरत ऊर्द्ध्वमुख जोड़ल हाथ । सानुज सजन देखल रघुनाथ ॥
स्यन्दनस्थ रघुनन्दन केहन । गिरि सुमेरु पर दिनकर जेहन ॥
वन्दन करथि भरत अनुराग । बद्धाञ्जलि दृगपल नहि लाग ॥
रथ लय चलु एहि महि निज ठाम । अयलहुँ गाम कहल प्रभु राम ॥
भरत कयल वन्दन कय बेरि । पुष्पक महिपर रघुवर हेरि ॥
भरत उठाय अङ्क आरोप । चिर – वियोग दुःखक भेल लोप ॥
लक्ष्मण सौँ मिलि मिल केँ भरत । कहथि धन्य प्रभु – सेवा – निरत ॥
वैदेहीक उचारल नाम । चरण – सरोरुह करथि प्रणाम ॥
भरतक भक्ति – दशा सभ देख । धर्म्म देहधारी मन लेख ॥
हनूमान जन देथि चिन्हाय । सानुज भरत मिलथि तत जाय ॥
कपिपति जाम्बवान युवराज । मैन्द द्विविद ओ ऋषभ समाज ॥
मुदित विभीषण सौँ मिललाह । क्रम क्रम जे जन मुख्य छलाह ॥

।रूपमाला छन्द।

नल गवाक्ष सुषेण आदिक गन्धमादन नाम ।
शरभ पनश मनुष्य – तन सभ बनल छल तहि ठाम ॥
सकल जन सौँ भरत मिलला कुशल पुछलनि सर्व ।
सकल जन मिलि कर प्रशंसा भ्रातृ – भक्ति अखर्व्व ॥
कहल मिलि सुग्रीव केँ पुन अहाँ मुख्य सहाय ।
राम रण दशवदन जीतल अहाँ पाँचम भाय ॥
तखन पुन शत्रुघ्न रामक चरण कयल प्रणाम ।
लक्ष्मणक सीताक वन्दन कयल से तहिठाम ॥

।चौपाइ।

शोक – विकल जननी काँ जानि । राम प्रणाम कयल सन्मानि ॥
केकयि तथा सुमित्रा माय । लगला गोड़ सभहि काँ न्याय ॥
तखनुक कहल कि जाइछ रीति । हरषेँ कनयित गबयित गीत ॥
भरत खरौँ से रघुवर – चरण । पहिरायल सभ सङ्कट – हरण ॥
आइ सुफल भेल जीवन मोर । अयश मेटायल सञ्चित घोर ॥
सञ्चित द्रव्य सैन्य बल कोश । दश-गुण अछि प्रभु-चरण – भरोश ॥
लेल जाय निज राज्यक भार । किङ्कर हम कि करब उपकार ॥
शुनि कपिवर – लोचन बह वारि । अकपट भरतक विनय विचारि ॥
उतरलाह रथपर सौँ राम । कहलनि अयलहुँ अपना गाम ॥
पुष्पक – रथ अहँ धनपति – धाम । जाउ कुसल सौँ रहु तहिठाम ॥

।दोहा।

गुरु वसिष्ठ पद – कमल मे, रघुवर कयल प्रणाम ।
गुरु-आज्ञा आसन निकट, कयल राम विश्राम ॥

।कवित्त।

रामचन्द्र – जननि पसारि आँखि देखु अहाँ,
जानकीसहित राम लछन किशोर केँ ।
भूमि नाचै सुन्दरी गगन किन्नरी ई नाचै,
बाट बाट भाट सुकवित्त पढ़ैँ शोर केँ ॥
राग नाचै रागिनी भवानीपति नाचि कहै,
भल कैल मारल जे दशकण्ठ चोर केँ ।
जननी प्रणाम राम करथि जानकीयुत,
कौसल्या हरषि लेल मुख चुमि कोर केँ ॥

।इति।

हरिः हरः!!

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