Search

कविचन्द्र विरचित मिथिलाभाषा रामायण – लङ्काकाण्ड – बारहम अध्याय

स्वाध्याय

– प्रवीण नारायण चौधरी

कविचन्द्र विरचित मिथिलाभाषा रामायण
लङ्काकाण्ड – बारहम अध्याय

 

देखि विभीषण ओ हनुमान । अङ्गद लक्ष्मण कीश प्रधान ॥
जाम्बवान आदिक रणधीर । सभ काँ तुष्ट कहल रघुवीर ॥
अहँ सभहिक बाहुल बल पाबि । मारल रावण लङ्का आबि ॥
यावत रवि शशि नभ रहताह । यशोगान मुनिजन करताह ॥
ई चरितक जे कीर्त्तन करत । भव – वारिधि बिनु श्रम से तरत ॥
रावण मृतक पड़ल रण – भूमि । गृद्ध काक विघसित घुमि घुमि ॥
दुस्सह मन्दोदरिक विषाद । मुरछि मुरछि कर कुररी – नाद ॥
पति-गुण कहि कहि करथि विलाप । पाप – प्रताप असह सन्ताप ॥
भेलहुँ अभागिनि पहु बिनु आज । धिक् विधवा – जीवन की काज ॥
तुम्बुरु प्रभृतिक शुन जे गान । काक नोच से प्रियतम – कान ॥
यम जे लोचन – ओतहि जाथि । हा से गृद्ध नोचि कय खाथि ॥
शिव काँ माँथ चढ़ाबथि काटि । सञ्जीवन – साधन भेल माटि ॥
अहह नाथ नित नित अन्याय । एकदिन माँथा अवश विशाय ॥
परमेश्वर सौँ भारी द्वेष । दण्डक गेलहुँ दण्डी – वेष ॥
सीता हरि आनल जेहि काल । तेहिखन मानल नहि दशभाल ॥
शोक विभीषण – हृदय समाय । शीतज्वर जनु देल दलकाय ॥
कुल – प्रधान हा बड़का भाय । काल – प्रपञ्च वृथा नहि जाय ॥
अपनैक कि कहब गुण ओ दोष । के कर वारण कालक रोष ॥
विधवा – वनिता – वृन्द – विलाप । शुनि पर – मन सञ्चर सन्ताप ॥

 

।दोहा।

 

शुनु लक्ष्मण रघुनाथ कह, सत्वर अहँ तहँ जाय ।
विकल विभीषण शोक सौँ, सद्यः करू उपाय ॥
लाउ विभीषण काँ एतय, तत्त्वज्ञान शुनाउ ।
की राजा मन विकल अहँ, वनिता – वृन्द बुझाउ ॥

 

।चौपाइ।

लक्ष्मण कहल सुखद उपदेश । कनलैँ की भेटता लङ्केश ॥
देहादिक सौँ आत्मा आन । विश्व अनित्य मानि करु ज्ञान ॥
देखू रावण – देह समीप । भवन अँधार मिझायल दीप ॥
सगुण ब्रह्म रामहि काँ जानि । सेवा करू कतहु नहि हानि ॥
प्रभु कहइत छथि से शुनु कान । भ्राता रावण छथि नहि आन ॥
दाहादिक परलौकिक काज । करु गय सभटा अपनहि आज ॥
कनइत वनिता – गण करु चूप । लङ्का – राज्यक भेलहुँ भूप ॥
सभ जनि घुरिकेँ लङ्का जाथु । पानि पिबथु गय अन्नो खाथु ॥
लक्ष्मण कहल कथा शुनि कान । गेला जतय राम भगवान ॥
कहल विभीषण शुनु भगवान । रावण पतित छला सभ जान ॥
तनिकर दाह करब नहि जाय । विदित छला अततायि कहाय ॥

।सोरठा।

वैर मरण – पर्य्यन्त, कहल राम उत्तर तकर ।
भेल प्रयोजन अन्त, करु रावण – संस्कार विधि ॥
तखन विभीषण कयल, लङ्कापति – संस्कार तहँ ।
काष्ठ घृतादिक धयल, चिता धधक प्रलयाग्नि सन ॥
कयलनि तखना स्नान, देल तिलाञ्जलि हाथ कुश ।
वनिता – गण काँ ज्ञान, कहल विभीषण हित वचन ॥
क्रन्दन की रहु चूप, सगर नगर घर बनल अछि ।
हमहि भेल छी भूप, सुख सौँ रहबे पूर्व्ववत् ॥
दशमुख – घरणी जाय, बद्धाञ्जलि प्रभु सौँ कहल ।
हो की हमर उपाय, दुर्म्मति पति-सुत-रहित छी ॥

।अहीर छन्द।
।तिरहुति।

छल छथि पति दशमाथ, हे माधव, तनि बिनु विकलि अनाथ ।
ओ अरि – भाव बढ़ाय, हे माधव, प्रभु तन गेलाह समाय ॥
हम पापिनि सहि ताप, हे माधव, परिणत भेल फल पाप ।
हम घननादक माय, हे माधव, जलनिधि – शोक समाय ॥
प्रभुक चरण भरि नयन, हे माधव, देखल मुक्तिक अयन ।
जय रघुनन्दन वीर, हे माधव, नूतन जलद शरीर ॥
भ्राता युगल उदार, हे माधव, करब हमर उद्धार ।

।मिथिला सङ्गीतानुसारेण कलहंस छन्दः।
।श्रीमालव छन्दश्च।

देवर अहाँ एत छथि महाराजे । सुखसभ अनुभव तनिक समाजे ॥
दशमुख-घरणि करणि अछि नीके । पुर परिजन सभ अहँइक थीके ॥
देवर वदान्य सह करु सहवासे । मन नहि राखब किछु विपतिक त्रासे ॥
शुनि प्रभु – वचन सकल दुख-हीना । लङ्का-भूति मानल से अपन अधीना ॥

।सोरठा।

सभ काँ नगर पठाय, प्राप्त विभीषण प्रभु – निकट ।
पङ्कज – नयन उठाय, देखल भक्त – प्रधान काँ ॥
रामक दण्ड – प्रणाम, बहुत विनय मातलि कयल ।
चलला सुरपति – धाम, प्रभु – आज्ञा सौँ हर्षयुत् ॥

।जयकरी छन्द।

करु अभिषेक विभीषण माथ । लक्ष्मण काँ कहलनि रघुनाथ ॥
पूर्व्व कयल हम लङ्कानाथ । सुखशासन न विभीषण – हाथ ॥
विधिपूर्व्वक ब्राह्मण सभ आब । हाटक – घटसौँ जलधि – जल लाब ॥
पुरजन वानर सैन्य अनेक । कयल विभीषण नृप – अभिषेक ॥
प्रभुक प्रणाम विभीषण करथि । रत्न अमूल्य चरण पर धरथि ॥
देखि विभीषण प्रभु कृतकृत्य । बड़ गोट राज्य पाबि गेल भृत्य ॥
मिलि सुग्रीव संग रघुनाथ । भेल विजय – यश अहँइक हाथ ॥
मारल रावण लङ्काराज । देल विभीषण काँ भल काज ॥
विजय – लाभ भेल अहँक प्रसाद । राखल उचित मित्र – मर्याद ॥
लङ्का मारुतसुत अहँ जाउ । सीता काँ वृत्तान्त शुनाउ ॥
रावण – मरण प्रथम कहि देब । समाचार तनिकर बुझि लेब ॥
शुनि प्रभु – वचन गेला हनुमान । दनुजी – जन मन कर अनुमान ॥
प्रथमहि लङ्का अयला जैह । मन अबइछ लगइछ रङ्ग सैह ॥
जनकनन्दिनी देखल जाय । दिन दिन गेलि बहुत दुबराय ॥
रामचन्द्र-पद मे दृढ़ ध्यान । चिन्हल न आयल छथि हनुमान ॥
हाथ जोड़ि तहँ कयल प्रणाम । दूर ठाढ़ भय कहलनि नाम ॥
स्वामिनि रावण काँ रघुवीर । मारल समर अमर – मन थीर ॥
भेल विभीषण नव लङ्केश । जय – जय करथि अमर अमरेश ॥
प्रभु – आज्ञा सौँ हर्ष समाद । अयलहुँ कहय न रहय विषाद ॥
रावण दशा कि अछि कहबाक । घर पर सञ्चर गृद्ध ओ काक ॥
गेला विभीषण आज्ञा पाय । अन्त – क्रिया कयलनि बुझि भाय ॥
जत छल लङ्का रावण – वंश । सभहिक भेल समर विध्वंस ॥
श्री रघुवर प्रभुवर जे दास । से सभ कुशल समर निस्त्रास ॥
वैदेही मन शुनि बड़ हर्ष । तन पुलकित लोचन जल वर्ष ॥
रघुवर – प्रिय – सेवक हनुमान । वचन अहाँक सुधाक समान ॥
प्रिय वचनक तुल की वसु देब । सकल लोक उत्तम यश लेब ॥
शुनु वैदेहि कहल हनुमान । देवि – अनुग्रह सम की आन ॥
रावण काँ मारल रघुवीर । मन छल कलुषित से सुख थीर ॥
हनुमानक शुनि वचन उदार । सीता उत्तर कहल विचार ॥
करुणा – सदन समीर – कुमार । कहल समाद प्रभुक दरबार ॥
आज्ञा देथि दुखी – दुख – हरण । देखी श्री रघुनन्दन – चरण ॥
चलल अनिल सुत कयल प्रणाम । पहुँचलाह रघुवर जहि ठाम ॥
सीता – दशा कहल सभ कहल । गदगद कण्ठ नयन जल बहल ॥
जेहि कारण सागर मे सेतु । दशकन्धर मारल जे हेतु ॥
तनि सीता – मन छूटय शोक । देखल जाय मङ्गाय सुलोक ॥
रघुनन्दन – माया के जान । मन मे कयल तखन प्रभु ध्यान ॥
सीता अनल – गता बहराथु । माया – सीता छाया जाथु ॥

।सोरठा।

मित्र नवल लङ्केश, कहल रघुत्तम हर्षयुत् ।
लय आनू एहि देश, सीता भीता छथि वृथा ॥

।चौपाइ।

स्नान वस्त्र सुन्दर नवरङ्ग । सकलाभरण – विभूषित अङ्ग ॥
शिविका पर लय आनू आज । प्राणेश्वरि काँ हमर समाज ॥
गेला विभीषण सङ्ग हनुमान । करबाओल तनिकाँ आस्नान ॥
बड़ि बड़ि वृद्धा काँ मङ्गबाय । तेल सुगन्धि देल लगबाय ॥
सभ सौँ उत्तम छल नव कोष । वस्त्र पहिरलनि से निर्दोष ॥
जनि पहिराओल गहना सर्व्व । वस्तु अमूल्य कि खर्व्व निखर्व्व ॥
शिविका चढ़लि कहार उठाय । चललि राजपथ सङ्ग सहाय ॥
सङ्ग पदाति न किछु पछुआथि । हट हट करयित आगाँ जाथि ॥
देखय दौड़ल वानर – ठठ्ठ । धक्का खड़गिक सह निरहठ्ठ ॥
नहि हट पथ सौँ कपि जे झट्ट । बेँतक मारि सहथि पट पट्ट ॥
वानर – वृन्द कयल चित्कार । राक्षसगण वानर काँ मार ॥
राम समीप गेला सभ गोट । मन विषाद किछु लगलैँ चोट ॥
देखि सबारी अबइत एक । अनुव्रजन कर लोक अनेक ॥
कहल विभीषण काँ तहँ राम । वैदेही आबथु एहिठाम ॥
उतरि सबारीपर सौँ लेथु । निज – पद – दर्शन जकाँ देथु ॥
रघुनन्दन आज्ञा देल जेहन । जनकनन्दिनी कयलनि तेहन ॥
राम असह्य कथा किछु कहल । सर्व्वसहा – तनया सभ सहल ॥
सीता काँ मन मे भेल आनि । लक्ष्मण काँ कहलनि शुनि कानि ॥
करु करु देवर ज्वलित हुताश । करब सकल मन संशय – नाश ॥
प्रभु अनुमति बुझि जोड़ल अनल । देखइत लोक शोक सौँ कनल ॥
राम निकट भय भेला ठाढ़ । धह धह धाह आगि मे बाढ़ ॥
पतिक प्रदक्षिण कय कय बेरि । बेरि बेरि चरणाम्बुज हेरि ॥
वैदेही सभ शक्तिक शक्ति । रामचरण मे अविरल भक्ति ॥
विकल लोक ओ राक्षसदार । कि होयत कि होयत वचन उचार ॥
सकल देवता भूसुर – चरण । कयल प्रणाम कष्ट सभ हरण ॥
सीता निर्भीता निज चित्त । साहस कर आमर्ष निमित्त ॥
करयुग जोड़ल अनल समीप । विधु – दिनकर – कुल कीर्त्ति – प्रदीप ॥
जौँ रघुवर मे सत्य सनेह । तौँ रह अनल बनल ई देह ॥
जौँ पति तेजि मन अनत न जाय । तौँ रह अनल बनल ई काय ॥
जाग्रत स्वप्नदशा मे आन । पुरुषक भेल न मन मे ध्यान ॥
सत्य स्वकीया जौँ हम नारि । पति – पद – व्रत मन गर्व्व विचारि ॥
ज्वलित अनल मे पड़बे जाय । व्रत अन्यथा देह जरि जाय ॥
साक्षी पावक रक्षा करब । संशय सकल – लोक – गत हरब ॥
कयल प्रदक्षिण अग्नि – प्रवेश । जय – जय शब्द भेल नभ बेश ॥
सीता अनल – राशि मे ठाढ़ि । सीता – कान्ति कोटिगुण बाढ़ि ॥
सकल सिद्ध कह बारंबार । एहन विशुद्ध आन के दार ॥
लक्ष्मी सीता करु जनु त्याग । सकल लोक काँ अनुचित लाग ॥
अनल कहल बनि दिव्य स्वरूप । शुनु जगदीश्वर माया – भूप ॥
छल छथि सीता सोपलि जतय । प्रकट भेलि छथि देखू ततय ॥

।इति।

हरिः हरः!!

Related Articles