विचार
– प्रवीण नारायण चौधरी
पक्षपातक आघात – न्यायी व अन्यायी सभक लेल
(दर्शन-चिन्तन)
गीताक ज्ञान समग्र मे यैह छैक जे अपन कर्त्तव्य व कर्म प्रति साकांक्ष रहैत कर्म करैत रहू । अर्जुन द्वारा सारथि स्वयं श्री कृष्ण रहितो आखिरकार अपन मन मे उठल क्षोभ जे युद्धक मैदान मे अपनहि लोक सँ केना लड़ब, कथी लेल लड़ब, लड़ि-मरिकय राज्ये लेब से कोन काजक होयत, आदि-इत्यादि प्रश्नक बिहाड़ि-बिर्रो उठलाक बाद अर्जुन गाण्डीव पटकि देलनि । आ, तेकर बाद श्री कृष्ण हुनका बुझबैत गेलाह आ गीताक ज्ञान रूप मे हमरा-अहाँ लेल कुल ७०० श्लोकक अत्यन्त गूढ़तम् ज्ञान केर स्रोत ‘गीता’ प्राप्त भेल ।
महाभारतक युद्ध मे देखब जे दुइ पक्ष बीच संघर्ष भेल – कौरव आ पाण्डव । कौरवक अपन पक्ष रहनि, पाण्डव केर सेहो अपन पक्ष रहनि । दुनू अपन-अपन पक्ष मे तर्क-कुतर्क, न्याय-अन्याय, समर्थन-घमर्थन, सत्य-असत्य आदि भावनात्मक आधार तैयार कएने रहथि । एहि दुनू पक्ष मे कतेको कर्त्तव्यनिष्ठ कर्त्ता अपन-अपन मत आ विवेक सँ संग देबाक लेल ठाढ़ भेलाह । जखन बात युद्ध सँ अधिकार प्राप्त करबा धरि पहुँचि गेलैक त न्याय व अन्याय केर समुचित ज्ञान रहितो कतेको धर्माधिकारी अन्यायी पक्ष संग ठाढ़ होयब अपन कर्त्तव्य बुझलनि । संख्याबल अन्यायी पक्ष संग बेसी देखल गेल महाभारत युद्ध मे ।
युद्ध मे सद्गति पेनिहारक संख्या दुनू पक्षक भेल, परञ्च जीत न्यायी केर भेल सेहो सिद्धतथ्य थिक ।
रक्तक धार बहि गेल । लहास सँ पाटल युद्ध-मैदान मे दुनू पक्षक स्त्री पहुँचैत छथि । हृदय-विदारक दृश्य देखि सभक मोन ‘गमगीन’ छन्हि । कननमुंहें भेल गान्धारी श्री कृष्ण प्रति कुपित होइत छथि । हुनका मात्र नहि, लगभग सब केँ श्री कृष्ण पर बहुत उम्मीद रहनि । ओ युद्ध रोकि सकैत रहथि । चमत्कारी लीला सँ श्री कृष्ण अनेकहुँ असम्भव केँ पहिनहिं सम्भव कय देने रहथि, तखन एतेक अपेक्षा राखब स्वाभाविके रहैक । गान्धारी श्री कृष्ण केँ कुपित भ’ श्राप दय देलीह । “जहिना अहाँ सन् सामर्थ्यवान् रहैत ई युद्ध नहि रोकल जा सकल, ई कुरुक्षेत्र सन्ततिक लहास सँ पाटल अछि, रक्तक धार चहुँदिश बहि रहल अछि, एहने अन्त अहाँक यदुवंशक सेहो होयत । अपनहुँ अन्त एहने देखब ।”
भगवान् श्री कृष्ण हँसिकय हुनकर श्राप अपन माथ पर लय लेलाह । आइयो द्वारका आ सोमनाथ प्रभास क्षेत्र मे जाइत छी त यदुवंशक अन्त – श्री कृष्णक अन्त – श्री बलरामक धराधाम छोड़बाक दृश्य व सम्पूर्ण कथा-गाथा क्षेत्रक प्रकृति तथा आवोहवा मे ओहिना अनुगुंजित होइत देखाय पड़ैत अछि ।
हम मानव अपन मानवीय दृष्टि सँ सत्य आ असत्य केँ सदिखन परिभाषित करैत रहैत छी । कौरव-पाण्डव केर पक्ष स्वयं मे अभरैत देखैत रहैत छी । श्री कृष्ण स्वयं द्रष्टा आ साक्षी रूप मे ‘आत्मा’क जगह पर विराजमान छथि । हृदय मे अनेकों बेर हुनकर विभिन्न लीला व चमत्कारक स्वरूप सब स्वतः दर्शन होइत रहैत अछि । महाभारतक युद्ध आइयो मन मे मचल रहैत अछि । रक्तरंजनाक दृश्य बन्द आँखिक दृष्टिपटल पर साक्षात् देखाइत रहैत अछि । मुदा सब किछु देखितो फेरो भीष्म-द्रोण बनिकय जन्मान्ध धृतराष्ट्रक पुत्रमोह आ पाण्डव जेहेन कुटुम्बी प्रति अन्यायी बनबाक सत्य बुझितो गलत पक्षक पक्षपोषण करैत रहैत छी ।
पक्षपात केर आघात अवश्यम्भावी छैक । बेर-बेर बुझाउ आ सावधान होउ । श्री कृष्णक चमत्कारक अपेक्षा कम कय निजकर्त्तव्य-निजकर्मक धर्म पर अडिग रहू । धर्मो रक्षति रक्षितः !!
हरिः हरः!!