लेख्य कृति जनकल्याणक निमित्त हो

लेख्य कृति जनकल्याण लेल हो
एकटा बात पर सब ध्यान दियौक
– नव लोक जँ अशुद्ध लिखय-बाजय त चलतैक, लेकिन अभ्यस्त आ सुपरिचित सर्जक जँ निरन्तर अशुद्ध लिखब त मानसिक शान्ति नहि भेटत, किछु न किछु उपद्रव होइत रहत। वाणी आ लेखनीक शुद्धता बहुत पैघ शक्ति-ऊर्जा उत्पन्न कयल करैत छैक। पहिने हमरा ई बात नहि बुझल छल, गलती करी त सुधार दिश ध्याने नहि जाय। जहिया सँ ई बात बुझलियैक जे शुद्ध उच्चारण सँ शक्तिक आविर्भाव भेल करैत छैक, अशुद्ध सँ नकारात्मक शक्तिक आविर्भाव भेल करैत छैक, तखन सावधान भेलहुँ।
– शुद्धताक दबाव सब पर नहि देल जा सकैत छैक, लेकिन जे पढ़ल-लिखल आ समझदार लोक होइछ ओकरा निश्चित एहि बातक ध्यान राखय पड़ैत छैक। मैथिली पठन-पाठन एतबे कमजोर पड़ि गेलैक पेटपोसा पढाय-लिखाय मे जे नवागन्तुक लेखक-लेखिका केँ शुद्धता-अशुद्धताक द्वन्द्व सँ निर्द्वन्द्व रहि लेखनी लेल आह्वान कयल जाइत रहल विगत किछु साल पूर्व मे। फेर धीरे-धीरे मैथिली लेखनी मे उत्तरोत्तर बढ़ोत्तरी होइत जा रहल अछि। कतेको रास नवागन्तुक लेखक-लेखिका सब कतेक जल्दी चर्चा मे आबि गेलथि सेहो अपने सब जनिते छी। तथापि, एकटा गलत रवैया कि देखल जाइछ जे लेखन मे बेहतरी हेतु सत्प्रयासक अभाव, श्रेष्ठजनक लेखनी केँ पढ़िकय ओहि मे सँ अपना लेल किछु अनुकरणीय मार्ग अपनेबाक कमी-कमजोरी… तखन त फेर ‘मनमुखी’ लेखनी मात्र होइत रहत आ अशुद्धताक कारण वातावरण मे जे शक्ति-ऊर्जा अयबाक चाही से नहि आबि सकत। बुझय जाउ।
– आइ-काल्हि देखैत होयब जे कतेको लेखक-लेखिका लोकनि ‘हमर १५मा कृति फल्लाँ किताब प्रकाशित भेल’, कियो ५मी, कियो ६ठा, कियो ३रा, आदि मे प्रकाशित कृति केँ मात्र गानिकय अपन पीठ अपनहि ठोकैत छथि, ताहि पर लज्जा-लेहाजे कतेको लोक हुनका ‘वाह, बधाई!’, ‘वाह! शुभकामना!’, ‘आह-आह!’, ‘वाह-वाह’ कहि हुनका केना प्रोत्साहित नहि करथि, से कयले जाइछ। परञ्च, यैह प्रकाशित कृति केर चर्चा जे आम पाठक सँ होइतय से कतहु नहि अभरत। कियैक? कियैक तँ मनमुखी-आत्मरती लेखन सँ सामान्यजन केर कल्याणक कोनो मार्ग प्रशस्त नहि होइछ। एहेन कृति लेखकक वैह छवि बनबैछ जेना रंग-बिरंगी फुक्का (बैलून) हवा पाबि फूलिकय फूल जेकाँ आकर्षक बनैछ, वास्तविकता हवा निकलिये फुस्स आ फुस्सा सिद्ध होइछ। अतः कृति हमेश जनकल्याणक भावना सँ हो, लेखन हमेशा लोकहित मे हो। एतबा ध्यान राखू। ॐ तत्सत्!
शेष सब शुभे-शुभे अछि, शुभे-शुभे हो!!
हरिः हरः!!