सामाजिक संजाल आ हमर मिथिला

सामाजिक संजाल आ हमर मिथिला

‘संजाल कि जंजाल?’ – विषय पर गम्भीर विमर्श कयल गेल छल हालहि आयोजित जनकपुर साहित्य कला आ नाट्य महोत्सव मे।

संजाल सँ सार्थकता-सकारात्मकताक भान होइत छैक, जंजाल सँ निरर्थकता या नकारात्मकताक।

२००७ सँ संजालक सक्रिय उपयोग करैत हमर अनुभव संजालहि केर रहल, जंजाल किन्नहुं नहि बुझायल।

अति सर्वत्र वर्जयेत – कोनो बात आवश्यकता सँ फाजिल भ’ जाय त अतिचार-अत्याचारक भान पाठक, दर्शक, उपभोक्ता, प्रयोगकर्ता आदि केँ होइत छन्हि। हालांकि एकरो उपचार छैक – अनफोलो, ब्लौक, अनफ्रेन्ड, इग्नोर आदि। अनफोलोक अर्थ भेल जे कोनो व्यक्तिक पोस्ट्स सँ अतिचार-अत्याचारक अनुभव भेल त ओकर पोस्ट्स सोझाँ नहि आबय ताहि लेल ‘अनफोलो’ वला बटन दबाउ।

ब्लौक केर अर्थ भेल जे बेर-बेर कियो सीमाक उल्लंघन करैत अहाँक मोन केँ आहत कय रहल अछि त ओकरा ब्लौक करू, ब्लौकिंग फीचर केर प्रयोग करू। ओहि तरहक विचलन विरूद्ध रिपोर्ट सेहो कय सकैत छी। संजाल व्यवस्थापक स्वयं एहि बातक संज्ञान लय कम्युनिटी स्टैन्डर्ड केर मानक मुताबिक चेक-जाँच कय दुरुपयोग करनिहार केँ रोकबाक मदति करता।

तहिना, आहत होइ कोनो मित्रक व्यवहार वा बात वा विचार सँ त मित्रक सूची सँ बाहर करू।

इग्नोर भेलय जे देखू आ अपन मनोनुकूल नहि अछि त कोनो प्रतिक्रिया देबाक जरुरते नहि छैक।

हमर मिथिला मे ९० बट्टा १०० एहि फीचर के प्रयोगकर्ता छथि। सब अपने ज्ञानी, दोसरक ज्ञान केर कोनो जरूरते नहि पड़ैत छन्हि। जाहि घैला मे खाली जगह बचय ताहि मे न पानि आरो अँटतय…! एतय त पहिने सँ घैला फुल अछि, फेर कहू के केकर पोस्ट्स पढ़य आ सामाजिक संजाल केँ जंजाल कियैक बुझय?

हमरा एकटा विशेष अनुभव ई भेटल जे पाण्डव-कौरव बहुते तरहक शिष्य सब भेटल सामाजिक संजाल सँ। लेकिन ‘एकलव्य’ सेहो कम नहि भेटल।

आनन्दक बात छैक जे उपरोक्त ‘इग्नोर फीचर’ केर प्रयोगकर्ता बीच सँ एकलव्य जेहेन शिष्य भेटल कतेको। जहाँ गुरु द्रोण सोझाँ पड़ला आ कि स्वाभाविके नतमस्तक भ’ प्रणाम करैत द्रोण सँ आशीर्वाद प्राप्त करबाक अनुनय मे रत एहि तरहक एकलव्यक मात्रा सेहो उल्लेख्य अछि हमर मिथिला मे। चुपचाप पोस्ट पढ़ि लेलहुँ आ समुचित ज्ञान हासिल कय लेलहुँ, अपन उपस्थिति कोनो हिसाब सँ गुरुजी बुझि नहि जाइथ तेँ लाइक-कमेन्ट सँ बचैत रहलहुँ।

ई प्राकृतिक प्रेम केर कारण यैह छैक जे निरपेक्ष रूप मे यदि अहाँ अपन प्रयोग रूटीन अनुसारे करैत छी, बड बेसी सरोकार-दरकार मे नहि ओझराइत छी, त अहाँक फोलोअर्स स्वतःस्फूर्त बढ़ैत चलि जाइत छथि। हमरा हिसाबे अहाँ अपन योगदान दय मे लागल छी, स्वाध्यायी आ सर्वहितकारी-सर्वोपकारी छी, न उधो से लेना आ न माधो के देना वला हाल मे अपन तपश्चर्या मे रत छी – त अहाँक प्रतिष्ठा द्रोण वला बनिते टा अछि।

ओना धनुर्धर अर्जुन वला उमेर सेहो २०११-१५ धरि जिबय के अनुभव भेटल। जहिना धनुर्विद्या सिखि अर्जुन श्रेष्ठ धनुर्धर बनि गेलाह, तहिना अपन सटीक बाण (प्रखर क्रिया-प्रतिक्रिया, वाद-विवाद, टाइट कमेन्ट्स, वगैरह) सँ सेहो अपन मिथिलाक बहुल्य लोक संग अन्तर्क्रिया करबाक अनुभव भेटल। हिन्दी आ अंग्रेजी मे ज्ञान दयवला नव जोगीक किदैन मे जट्टा वला जोगी सब सँ अक्सर एहिना अर्जुन रूप मे फेस करय पड़ल। तहिये ओ गीत सेहो लिखल गेल छल – ‘फेसबुक पर फेस के लफड़ा, बात के रगड़ा, बात के झगड़ा… लेकिन जगतौ मैथिल एहिना से जगबय लेल हमहुँ लबड़ा’ (पूरा गीतः https://youtu.be/A-70YHVHU80 ) – उमेर बितैत द्रोण वला जीवन सही बुझा रहल अछि, ओना शिष्य सब मोर्चा सम्हारय मे दिक्कत करैत अछि त फेर अपने तैयार-तत्पर रहय मे कोनो हर्ज नहि छैक एखनहुँ। कारण एक्के टा – अपन मिथिलाक माटि-पानि मे तीव्रता बहुत छैक आ टेढ़ी मे मस्त ‘लोक-समाज’ केँ सही-सटीक-समुचित ताड़णा देनाय आवश्यक छैक, ठीक तुलसीदासजीक ओहि लाइन जेकाँ – ढोल गँवार सूद्र पसु नारी – ये सब हैं ताड़ण के अधिकारी!!

संजाल जखनहि जंजाल भेल, वानप्रस्थ जीवनक आरम्भ भेल। वनगमन करैत तपस्या मे लागि जाउ। ॐ तत्सत्!!

हरिः हरः!!