गोपाल मोहन मिश्रक एकटा कविता ” हे माँ सरस्वती ! “
वर दियs वीणावादिनी वर दियs
जीवनक हर पल के स्वर दियs
हे हँसवाहिनी ज्ञानक सत्संग दियs
हे ज्ञानदायिनी विमल उमंग दियs॥
हे हँसवाहिनी धैर्य,विवेक,विक्रम दियs
हे ज्ञानदायिनी शारदा, पराक्रम दियs
साहसिक, सुशील, स्नेही जीवन दियs
त्याग-तप-संयम, सत्य केर वर दियs॥
हे वीणावादिनी स्वाभिमान भरि दियs
हे हँसवाहिनी,ज्ञानदायिनी निर्मल हृदय दियs
शिव-राम-कृष्ण सन प्रखर वीर बना दियs
लव-कुश, ध्रुव-प्रहलाद-सुग्रीव सन बना दियs॥
हम मानवताक विकास करी, त्रास हरी
अनसूईया, सीता, सावित्री सन यम-ताप हरी
जन-मन-गण अधिनायक सन, हर घर कs दियs
हे वीणावादिनी,हे हँसवाहिनी ज्ञानप्रकाश भरि दियs॥
वर दे वीणावादिनी वर दियs
जीवनक हर पल के स्वर दियs॥