मैथिली भाषा संग राज्य द्वारा शत्रुताक सब सँ पैघ प्रमाणः पटना हाई कोर्ट के निर्णय

अध्ययनशील मैथिलजन – याद करू ओ दिन

(सन्दर्भ मैथिली भाषा सँ राज्यक शत्रुता आ पटना हाई कोर्ट द्वारा ऐतिहासिक निर्णय)

लालूराज द्वारा कयल गेल ऐतिहासिक अत्याचार ‘बिपीएससीसँ मैथिलीकेँ हंटेनाय’ कियो नहि बिसरल होयब। नवतुरिया (युवा)केँ एहि मामिला केँ खूब नीक सँ बुझबाक चाही। १९९२ मे सरकारक आदेश भेल छल। लेकिन एकरा विरूद्ध पटना हाई कोर्ट मे रिट पेटिशन (याचिका) दायर भेल आ परिणाम –

पूरा जजमेन्ट आ एकर सम्पूर्ण टिप्पणी, तथ्य, संवैधानिक प्रावधान आ भाषिक पहिचान केर महत्व, लोकक आपसी सौहार्द्रता मे भाषाक महत्व आदि अनेकानेक बात गौर करय वला अछि, से एतय पढ़ूः

https://www.casemine.com/judgement/in/56098ac4e4b0149711384201

८ साल के कानूनी लड़ाई लड़लाक बाद पटना हाई कोर्ट द्वारा बहुत ठोस जजमेन्ट आयल। एहि जजमेन्ट मे भारतीय संविधान द्वारा लोकक भाषा केँ कोन तरहें राज्य सम्मान दियए तेकर विशद चर्चा अछि। संगहि भाषिक पहिचान के महत्ता पर सेहो बहुत महत्वपूर्ण चर्चा अछि। यथा –

Linguistic identities are not quirks of history. As heritage, a language lives with civilization and passes out with it. A language flourishes with patronage and recedes into disuse with lack of it. A state hostility to language will be its death knell. A hostility to a language is hostility to the people who use it. Even a dominant language, thus, recedes into the background. – Patna High Court, Para 9, in matter of Binay Kumar Mishra Vs. State of Bihar on 30 October 2000.

भाषाई पहिचान इतिहासक विचित्रता नहि थिक । धरोहर के रूप में भाषा सभ्यता के साथ जिबै छय आर ओकरे संग चलय छय। कोनो भाषा संरक्षण सँ बढैत अछि आ ओकर अभाव मे बर्बाद होइत खत्म भ’ जाइछ। भाषा प्रति राज्यक दुश्मनी ओकर मृत्युक घंटी होइछ। कोनो भाषाक प्रति शत्रुता ओकर प्रयोग करय बला लोकक प्रति दुश्मनी थिक । एहि तरहें कोनो प्रबल भाषा सेहो पृष्ठभूमि सँ हंटि जाइछ अछि । – पटना हाईकोर्ट आदेश, पैरा 9, बिनय कुमार मिश्र बनाम बिहार राज्य, 30 अक्टूबर 2000 के निर्णय।

जजमेन्टसँ बिहार सरकारक आदेशकेँ निरस्त (क्वैश) कय देल गेल। परञ्च कोर्ट द्वारा कहल गेल एक-एक बात मनन योग्य अछि। कनी सोचू! आइ कि बिहार सरकार के मनोदशा परिवर्तित भ’ गेल? कि मैथिली भाषी नेता एहि तथ्य केँ नहि बुझैत छथि?

एहि जजमेन्ट (निर्णय) केँ पढ़ला सँ बिहार सरकार के मनसाय आ मैथिली सँ शत्रुता ओहिना आईना जेकाँ साफ भेटत। कियो राकेश कुमार द्वारा पटना हाईकोर्ट मे एकटा रिट (याचिका) दायर कयल गेल छलैक जे मैथिली के बदला भोजपुरी केँ बिपीएससी मे लागू करबाक आदेश देल जाय। एम्हर पटना हाईकोर्ट मे ओहि याचिका पर सुनबाई पूरा भेबो नहि केलय, बिहार सरकार तड़ातड़ी ओहि रिट के आधार बना लालू कैबिनेट द्वारा मैथिली हंटा देबाक निर्णय कय देलकैक। भोजपुरी केँ जोड़बाक आधार तकबाक बदले मैथिली केँ गला घोंटि देलकैक। से कियैक? विशुद्ध राजनीति। मैथिली ओहि राजनीतिक खिलाड़ी सभक नजरि मे एकल जाति के भाषा रहय आ बिहार लोक सेवा आयोग केर परीक्षा मे मैथिली रहला सँ वैह एकल जाति केँ लाभ भेटबाक कुतर्कपूर्ण भ्रम पसारल गेल रहैक।

पटना उच्च न्यायालय के आदेश मे बहुत सुन्दर ढंग सँ बिहार सरकार केँ सुझाव देल गेल छैक जे अहाँ भोजपुरी केँ सेहो संलग्न करबाक आधार ताकू, ओकरा जोड़य मे कोनो हर्जा नहि। लेकिन ओकरा जोड़बाक बदला एकटा पहिने सँ जुड़ल भाषा केँ हंटेनाय प्रत्यक्षतः अवांछित (अराजक) राजनीति आ भाषा व भाषाभाषी संग शत्रुता थिक। भाषाक समग्र महत्व सेहो निर्दिष्ट करैत बिहार सरकारक ओहि निर्णय केँ सीधे खारिज कय देल गेलैक आ मैथिली फेर सँ आयोगक परीक्षा मे शामिल भ’ गेलैक। परञ्च वैह बिहार सरकार द्वारा विगत किछु मास पहिने आखिरकार बिपीएससी सिलेबस मे हेरफेर करैत फेर सँ मैथिली केँ हंटाये देल गेलैक।

एकरा कि कहल जेतैक? राज्य द्वारा मैथिली केँ मारबाक षड्यन्त्र आ शत्रुता छोड़ि आन कोनो बात हमरा नहि बुझाइत अछि।

हरिः हरः!!