दिल्ली देशक राजधानी टा नहि अपितु दिल कहल जाइत छैक। सम्पूर्ण देशक लोक लेल, दिल्लीक आकर्षण अखनो छैक। दिनानुदिन प्रदूषित होइत दिल्ली, स्वास्थ्यक दृष्टिकोण सँ रहबाक लेल उपयुक्त नहि रहि गेल छैक मुदा तखनो विभिन्न राज्यक लोक विविध कारणे एहि ठाम आबिऐ रहल छैथ। सत्तर के दशकमे हिमालयक गोदमे रहनिहार मैथिल दिल्ली दिस पलायन तीव्रता सँ करय लगला जे नब्बेक दशक बीतैत धरि गामक गाम एहि ठाम आबि क’ बैसि गेलैक। लोकक एना दिल्ली पलायनक बहुत रास कारण छैक।
रोजी रोजगारक लेल पहिने मैथिल कलकत्ता जाइत छला। कम्युनिस्टक बढैत आंदोलन आ उपद्रवक कारण कल करखाना बंद होइत गेलैक। नबका उद्योग अन्य राज्य सभमे विकसित होमय लगलैक। कलकत्ता के बाद मैथिल दिल्ली दिस जाय लगला तकर प्रमुख कारण छलैक रोजगार, उच्च एवं तकनीकी शिक्षा आ चिकित्सा। एकर प्रभाव अतेक भेलैक जे एहि ठाम अएला से अतैएके भ’ क’ रहि गेला। फुटपाथ, झुग्गी आ कच्ची कॉलोनीमे अपन आसरा तकैत निम्न आ मध्यम वर्गी मैथिल कालांतरमे एहि ठाम स्थायी रूपेँ बसैत चलि गेला। परिस्थितवश हुुनक गाम घर आएब जाएब कम होइत गेलैन आ सेहो हुनक दोसर पीढ़ी त’ साफे छोड़ि देलनि। आब ओ विवाहो दान दिल्लीमे प्रचलित मिश्रित परंपरामे करऽ लगला। जे अपन भाषा आ संस्कृति सँ विमुख होइत गेला ओ अपन पहचानो बिसरि गेला आ तखन पुर्वांचली कहबऽ लगला। तकर बाद अपन परिश्रम आ बुद्धि सँ अर्जित धन आ प्रतिष्ठा के बलेँ कुनु आर० डब्लु० ए०, ग्राम प्रधान वा संस्थाक अध्यक्ष बनैत गेला।
मैैथिल अपन स्वभाव आ संस्कार सँ बुद्धिजीवी होइत अछि तँ कम्मे दिनमे हुनक महत्त्वाकांक्षाक ततेक नहि बढ़ि जाइत छनि जकर शीघ्र पूर्ण होयब कठीन वा असम्भव छैक। दिल्लीमे एक सय सँ बेसी संस्था छैक जे मुख्य रूप सँ विद्यापति पर्व, दुर्गा पूजा आ छठि पूजाक उदेश्य सँ बनल छैक मुदा ओकर कर्ताधर्ता मुुख्य उदेश्य सँ भटैक एहि नाम पर अर्जित पहचानक आधार पर विभिन्न पार्टीक कार्यकर्ता बनि जाइत छैैथ तकर बाद अपन राजनैतिक पहचान बनबऽ मे ओ लागि जाइत छथिन। राजनीतिक पार्टीक पैैघ नेता सभक नजरि सेेहो स्वार्थवश हिनका सभ पर रहैत छनि। हुनक पिछलग्गु बनि इहो सब अपन महत्त्वाकांक्षी उदेश्य मे लागि जाइत छैथ। ओहि मे सँ किछु गोटे सांसद, विधायक आ निगम पार्षदक एजेन्ट बनि समाजमे सक्रिय भ’ जाइत छैथ आ हुनक अनैतिक काजमे सहभागी बनि जाइत छथिन। शेर जंका एक बेर मुँह मे खुन लगलाके बाद एहने तथाकथित आ स्वघोषित नेता वा कार्यकर्ता निगम पार्षद, विधायक आ सांसद बनवाक दिवास्वप्न देखाऽ लगैत छथिन। किछु एहनो छैथ जे कुनु पैघ नेता के चंगुलमे फंसि अपन समय, श्रम आ अर्थक हानि उठबैत रहैत छैथ मुदा राजनीति के लत सँ उबरि नै पबैत छैथ। सिर्फ पाग दोपटा, मखानक माला आ मिथिला पेन्टिंगक आदान प्रदान सँ अपन पहचान बनबैत रहबा सँ हुुनक कुनु सार्थकता नहि बुझना जाइत छैक।
दिल्लीक अपुष्ट आंकड़ा अनुसार एहि ठाम पच्चीस लाख मैथिल छथि मुदा राजनितिमे हुनक हिस्सेदारी नगण्य छनि। जखन कि दिल्ली के प्रत्येक नगर निगम वार्डमे कमोबेेस दस बीस टा विभिन्न पार्टी सँ संबध कार्यकर्ता छैक, कहवाक तात्पर्य ई जे कूल २५० नगर निगम वार्ड मे २५०० मैथिल कार्यकर्ता त’ छैथे मुदा जखन चुनाव होइत छैैक त’ सब पार्टी के उम्मीदवार जयों जोड़ियो ली तखनो कूल दू दर्जन भरि मैथिल उम्मीदवार नहि पुड़ैत छैक आ सभ कयो पार्टीक संंगठन मे कुनु पद ल’ गौरवान्वित होइत रहैत छैथ।
पुर्वांचलीक नाम पर ढेर रास पद आ अन्य मनोनीत पद सभ हिनका सभ के द’ नेता सभ सम्पूर्ण समाज के ठकि रहल छैथ आ हिनका सब सँ सम्पूर्ण मैथिलक समर्थनक गारंटी ल’ लैत छथिन। आइ दिल्लीक राजनिति मे पांचो टा पार्षद वा विधायक नहि भ’ सकलैथ एहि सँ पैघ विडम्बना कि भ’ सकैत अछि ? पिछला दिल्ली नगर निगम चुनाव २०१७ ई० मे भेल छलैक जाहि मे हमरा जनतबे ग्यारह टा मैथिल पार्षद विजयी भेल छलैथ । एहि बेरक दिल्ली नगर निगम चूनावमे मैथिल उम्मीदवार के सोचल समझल राजनीतिक तहत टिकट नहि देल गेलनि। अखन धरि पांचो टा मैथिल पार्षदक नाम देखवामे नहि आएल अछि। आब चुनाव एक गोट व्यवसाय छैक। करोड़क खर्च क’ टिकट प्राप्त करबा सँ प्रचार धरि, दिन राति लागय पड़ैत छैक। चूनावी मैदान बनबऽ मे बड्ड बेसी तिकडम करऽ पड़ैत छैक।
मैथिल व्यक्तिगत रूपें जतेक उन्नति क’ लैथ मुदा मैथिल समाज पहिनेहुँ पिछड़ल छल आ अखनो पिछड़ल अछि। दिल्ली सन महानगरमे मैथिलक लेल कुनु स्थान वा सभागार नहि अछि। होस्पिटल, कालेज वा स्कूूल नहि अछि। दुखक गप्प ई जे मैथिल अखनो हिस्सेदारी नहि मांगि, भिक्षा मंगैत अछि मंदिरक नाम पर वा विद्यापतिक नाम पर। अत्यंत संकीर्ण सोच रखनिहार मैथिल के अपन एहि स्थितिक पर आत्मा विश्लेषण वा अवलोकनक करबाक चाही। सब दिना सँ वोट बैंक मानय जाइत अछि पुर्वांचली तँ अपन स्थिति परिस्थिति के बुझैत गमैत एकताक एक सुत्रमे गांथल रही।
……अरुण कुमार मिश्र