–उग्रनाथ झा
अभिभावक शब्दहि सऽ स्पष्ट दृष्टिगोचर होएत छैक देखभाल केनिहार यानि रक्षाकेनिहार , प्रतिपाल केनिहार । जहन बात बच्चा के होई छैक त एहन में अभिभावक के अर्थ और विस्तृत भ जाएत छैक । जेतय देखभालक अर्थ नेनाक चतुर्दीक विकास पर आश्रित होएत छैक। एहि कारणे अभिभावक के दायित्व अधिक बढ़ि जाएत छैक ।चाहे ओ अन्न वस्त्र शिक्षा सं जुड़ल दायित्व हो वा नैतिक , सामाजिक आ चारित्रिक निर्माण हो । सभ पर नियंत्रण संग उचित मार्गदर्शन के जिमेवारी अभिभावक पर टिकल रहैत छैक । जौं एहि में कोनो भी तरहक बिन्दू के अनदेखा भेल त पाल्यक विकास एकभग्गु भेनाय असंभव नहि । ताहि लेल कहल गेल छै जेहन बीया तेहन उपजा। पूर्व में समाज में संयुक्त परिवारक बहुलता रहैत छल ।त बच्चा के वरिष्ठ जन सामिप्य सदैव सकारात्मक आवोहवा में रहैत छल ।जे भिन्न भिन्न स्थिति परिस्थिती में मानवीय कर्तव्यक दायित्व सं अवगत करबैत रहैत छल । जतय जेठ छोट के प्रति कर्तव्य बोध । गाम घर समाज के प्रति व्यक्ति कर्तव्यक बोध देखा देखी उपजै छल । ओहि परिवार फराक फराक सदस्यक प्रति संतुलित आदर सम्मान उपजै छल । जतय बच्चा लोकनिक चरित्र निर्माण के सशक्त स्तंभ सभस साक्षात्कार होएत छल । लेकिन आब एकसरुआ परिवारिक प्रथा के चलनसारि भेला सं या भौतिकतावादी संसार में माता पिता के कामकाजी भेला सं माता पिता के पलखति कहां जे नेना के चारित्रिक निर्माण में सहयोग करैथ। हुनका निक बेजाए के बारे में बुझाबैथ । बस एक पेशेवर शिक्षक (किएक त शिक्षक टाकाके के अनुकूल ज्ञान देनिहार) के भरोसे पठन पाठन के बाट धरा देल जाए छै । जाहि शिक्षा सं नैतिक शिक्षा आचार विचार आधारित संस्कारक बात के दूर दूर तक संबंध नहि और अपना आप केँ नेना किताबी किड़ा बनि शिक्षा प्राप्त करैत छथि मुदा ओ व्यवहारिक शिक्षा सँ बहुत दूर भय जाएत छथि । फलस्वरूप जेना जमीन पर लतरैत लत्ती के जमबुत सहारा भेट जाए छैक त फल फूल पाबि प्रसंशनीय होइत छैक , जौ कमजोर आधार भेटल लतरैत लत्ती के सम्हारब कठिन । तहिना सहि मार्गदरशनके अभाव सँ जौ बच्चाक संगत निक पकराएल त निक भाव अथवा खराब संगत पाबि खराब । ताहि लेल बच्चा के दोष देबा सं पहिने हमरा लोकनि स्वयं पर आत्ममंथन करि ।जे हम सभ अपने कतेक दोषी छि। हमरा अहाक इएह अनदेखी बच्चा के मोन बरहुं बना दैत छैक । जेकर परिणाम संगति में छोट छोट बच्चा भांग गांजा दारु ताड़ी के सेवनक आदी भ जाएत छैक । जखन ध्यान अबैत अछि त बहुत देर भ गेल रहैत अछि । बहुतायत में देखब जे लोक अपन बाल बच्चा के पाय द पठा देत पान,गुटखा इत्यादी दुकान सं आनि दय। बालमनमे इहो जिज्ञासा बहकबाक कारण बनैछ। आई हमरा लोकनि शोसल मिडिया युग में जीवि रहल छि । पांच साल सं ऊपर के बाल बच्चा के हाथ में मोबाइल छै । आ ओहि सं छोट बच्चाके ललचटनी के जगह मोबाईल ,मां दादी लोरि के जगह मोबाईलक कार्टून आ रैम्स। त निश्चय ओकर मानस पटल पर विभिन्न प्रकार चलचित्रक छाप पड़ैत छैक ।मुदा ओही अबोध नेना के मन मस्तिष्क पर ओकर मूल कथ्यक भाव प्रदर्शित नहि भ ओकर प्रत्यक्ष क्रिया प्रतिक्रिया अपन छाप छोड़ैत छैक ।जेकर ओ अनूकरण करैत छैक । जखन की एक सहि अभिभावक कर्तव्य जे समय समय पर ओकर (देखल चलचित्र /कार्टून)मूल आशय सं अवगत कराबथि आ मनोविकार के दूर करथि। लेकिन वास्तविकतामे अभिभावक लग पलखति कहां रहैत छन्हि । फलस्वरूप बचपना मायाक दुनिया में ओझराएत अपना के एतेक मजबूत क लैत छैक जे एक समय में अभिभावक सं प्रतिवाद करवा में संकोच महसुस नहि करैत अछि।
बढ़ैत अर्थोपार्जन आ सुधरैत अर्थव्यवस्था में हमरा लोकनि बाल बच्चा के निक भोजन बस्त्र आवास आ भौतिकवादी सुख सुविधा देबाक कोशिश करै छि । जाहि मे हमरा लोकनि ओकर ओढ़न पहिरन रहन सहन पर खर्च त करैत छि परंतु दिनचर्या पर ध्यान नहि दैत छि जे बच्चा के आकर्षण कोम्हर छै। आखिर ओ आकर्षण कतय तक जाएत ओकर परिणाम कि भ सकै छैक। आधुनिकता के नाम पर बचपना बुझि सहयोगात्मक रवैया रखै छि उदाहरणार्थ पश्चिमी परिधान , पश्चिमी/आधुनिक आयातित गीत नाद , बतकुटौबली जे किशोरावस्था तक पहुंचति पहुंचति अपन अधिकार बुझि ओहि दायरा सं वापसि स्वीकार नहि करैति छथि। जे परिवार समझ दुरुह बाट तैयार करैत छैक।
पहिने सझिया परिवार में विभिन्न संबंध के परिजन संग रहबाक कारणे बहुत हास्यविनोदी संबंधीक सम्पर्क में रहबाक कारने समयानुकूल मानसिक कौतुहलवश गोपनीय आ आवश्यक जानकारी हास्ये विनोद रुप प्राप्त भय जाए छल । जे अंतर्मन में उपजल भ्रामक आ पथभ्रष्टता के बाट में देवाल के काज करैत छल । उपर्युक्त दुविधा के निवारणार्थ कहल जाए छलै जहन धिया पूता के माय बापक चप्पल पैर में अटय लगै त ओकरा संग मित्रवत व्यवहार करि । यानी किशोरावस्था (लगभग 14-25 बर्ष) में प्रवेश काल बच्चा के शारिरिक आ मानसिक परिवर्तन काल होएत छैक ओहि समय ओकरा जेहन बात मोन में उपजतै ओहने काज करत। ताहि हेतु ओकरा संग हर विन्दू पर चर्चा करैत हर जिज्ञासा के स्वयं शांत करक चाहि। नहि त ओ अपन दूविधा के समाधान हेतु आसपास के समवयस्क अथवा स्वयं के अनुकूल व्यक्ति सभ के सहारा लैत छैक जे जदि सहि बाट देखोनहार भेल त सहि अन्यथा बच्चा भटकाव के बाट चैल पड़ैत छैक । ताहि हेतु अभिभावक के पहिल कर्तव्य जे कतबो व्यस्त रही परंतु बच्चा स्वयं ध्यान जरूर राखि किएक त अहिक नहि बल्कि देश के भविष्य साबित भ सकैत अछि। अहांक एक चुक अहांक संग संग हित -मित परिजन आ समाज पर प्रश्न चिन्ह लगा सकैत अछि। मान मर्यादा कुल पाग सभटा धुमिल होएबाक कारण बनि सकैत अछि।
ताहि हेतु जाहि तत्परता सं बच्चा के भरण पोषण आ शिक्षा के स्थान दैत छि ताहि रूपे ओकर चारित्रिक निर्माण हेतु तत्परता बना क’ रखबाक आवश्यकता छैक । तखनहि एक आदर्श अभिभावक के दर्जा प्राप्त भ सकैत अछि।