मैथिली भाषाक आशुकवि बद्रीनाथ रायः संघर्षमय जीवन मे अनवरत सृजनक अद्भुत कथा

विशिष्ट व्यक्तित्व परिचयः कवि बद्रीनाथ राय

मिथिलाक्षेत्रक मधुबनी जिलाक कर्मौली गाम सँ एकटा आशुकवि देखाइत छथि हमरा – नाम छन्हि ‘बद्रीनाथ राय’।

हिनका सँ परिचय हिनक सचेष्ट जिज्ञासा आ मिथिला राज्य पर लिखल एक लेख-विचार पर उठायल गोटेक प्रश्न सँ। मोन मे किछु सवाल छलन्हि, बात भेल। जतेक तक बुझा सकैत छलहुँ बुझेलहुँ, तथापि हिनकर मोनक जिज्ञासा अन्यान्य रूप मे बनले रहलनि। ओहि सँ बेसी बुझेबाक सामर्थ्य हमरो मे नहि छल। समय पर छोड़ि आगू बढ़ि गेलहुँ हम दुनू गोटे।

एकटा छुट्टीक दिन फेर कोनो बात पर सवाल कयलनि। आइ हमरा रहल नहि गेल त हिनका सँ विस्तार मे परिचय आरम्भ कयलहुँ। हिनकर अन्तर्ज्ञान आ मिथिला-मैथिलीक बारे गहींर समझ-विश्लेषण काफी प्रभावित कय रहल छल। हम कहलियनि जे अपने त बहुत अध्ययनशील लोक बुझा रहल छी, कहलनि जे ‘आमात्य’ छी हम, राजा जनककाल सँ मंत्रीक जिम्मेदारी सम्हारैत रहला अछि बाप-पुरखा। परिचय बढैत रहल, मिथिलावाद केर वर्तमान पर बहुते रास चर्चा भेल। बहुत लोक केँ चिन्हितो रहथि। सासुरक नाम परजुआरि आ ताहि ठाम सँ मिथिलावादी नेता आदिक चर्चा करैत अचानक सुनबय लगलाह सासुर पर रचित किछु हास्य कविता। आब हिनकर असल परिचय सोझाँ आयल हमरा ई त कविराज थिकथि। जी, से काव्य-सृजन सामर्थ्य एहेन तीक्ष्ण धार वला छन्हि जे पुछू जुनि – ५ मिनट मे केहनो सभा केँ अपन काव्य वाचन सँ कवितक रस मे सराबोर करयवला सामर्थ्यवान् कवि छथि।

काल्हि-परसू फेर अवसर भेटल हिनका सँ बात करबाक। वीडियो फोन कयल त देखय छी टोपी पहिरने छथि। पुछलियनि जे ई टोपी? त कहलनि जे ड्यूटी पर छी। कहने नहि रही श्रीमान् जे सन्तान मे मात्र एकटा बेटी टा अछि, अपने वृद्ध छी, वृद्धा पत्नीक संग अछि, भरि जीवन संघर्ष करिते रहल छी, आर ई संघर्ष अनवरत अन्तिम क्षण धरि चलिते रहत। बड़ा भावुक भ’ गेलहुँ। सच मे हिनकर उमेर आब रिटायर भ’ गामहि मे रहयवला बुझा रहल छल हमरा। लेकिन ई त कर्मवीर महापुरुष निकललाह। ड्यूटी सेहो एक्के शिफ्ट के नहि, कहियो-कहियो डबल शिफ्ट के करबाक मजबूरी छन्हि। कहलनि जे एहि उमेर मे इहो काज भेटल अछि से भगवानक कृपे बुझैत छी। डबल शिफ्ट नहि करब त दिल्ली जेहेन जगह पर घर भाड़ा आ खाना-पीनाक संग दबाई के खर्चा कतय सँ जुटायब। पत्नीक स्वास्थ्य, अपन स्वास्थ्य – सब तरहें बुझु जे खर्चा त चाहबे करी। एहि संसार मे याचना सँ कि भेटैत छैक, के केकरा देनिहार, कियैक केकरो सँ मांगू… अपन मेहनति सँ जे आर्जन करैत छी, स्वाभिमानक संग ओहि मे निर्वाह करैत आनन्दित मोन सँ जिबि रहल छी।

अपन युवाकाल गामहि मे बितौलनि, लेकिन आइ शहरक प्रवासक्षेत्र मे रहि अपन जीवनक संघर्ष लेल बाध्य छथि। बेटीक विवाक करेबा धरि जमीन-जथा लगभग बेचय पड़ि गेलनि। दबाइ दोकान करैत रहथि गाम मे, सेहो उधार-पुधार मे बर्बाद भ’ गेलनि। बड रोचक ढंग सँ वर्णन करैत कहैत छथि जे लोक उधार ल’ गेलाह आ टका के तगादा कयलापर परदेशिया पूत केँ चिठ्ठी लिखलहुँ, टका अबिते होयत, अबैत देरी अहीं केँ देब से जवाब भेटल। फेर मास-दुइ मास बितलापर पुछलियनि त कहलनि जे टका त आयल, मुदा कि कहू, अहाँ त सज्जन लोक छी, आर किछु मास मानि जायब… फल्लाँ के पाय सेहो छलन्हि, ब्याज बड कड़ा छल… ताहि पर सँ गारि-फझेतक डर…. से हुनके दय देलियनि…. अहाँ किछु दिन आर रुकि जाउ। अन्त मे झोरा-झपटा बान्हि कविजी दिल्ली पहुँचि गेलाह, पैछला १० वर्ष सँ बाध्य भ’ ‘सेक्युरिटि गार्ड’ के नौकरी करैत अपन जीवन निमाहि रहला अछि। ई कटु आ यथार्थ दृश्य थिकैक अपन मिथिलाक सुयोग्य सज्जन सभक। हमरो गामक गणेशक पान दोकान एहिना बन्द भ’ गेल छलैक, केम्हरो सँ लोक आयल, पान खयलक, चलि देलक। लोक टोकबो करैक जे हौ गणेश, एना सब के बाकी कियैक दय छहक? गणेश कहय, जाय न दियौक, चिन्हबो करबय न जे के वापस करय य आ के खा कय पचबइ य! कनी दिन बाद गणेश अपन फक्कर भ’ गेल। अस्तु…!

फेसबुक पर सेहो सक्रिय रहैत छथि बद्रीनाथजी। एक-एक बात पर नजरि रहैत छन्हि। बीच-बीच मे यथार्थ जिज्ञासा रखिते टा छथिन। बहुत कम लोक भेल आइ तक जे हिनकर जिज्ञासा केँ पूर्णरूप सँ शान्त कय दियए। हम दावीक संग कहि सकैत छी जे हिनकर पूछल सवाल के जवाब १०% विज्ञजन छोड़ि आर कियो दइयो नहि सकैत छथि। काल्हि-परसू हिनकर कमेन्ट मे रहय किनको कविता पर जे “ई गद्य थिक आ कि पद्य? घाहिल शब्द केर कि अर्थ?”, कियो हिनका जवाब नहि दय सकलथि। कोनो कविता पर झूठक वाहवाही करनिहार पर सेहो तन्ज कसने रहथि बद्रीनाथजी, मुदा केकरो साहस अथवा सटिक जवाब हिनका दय लेल नहि जुड़लनि।

बद्रीनाथजीक सवाल मात्र नहि, अहाँ मैथिलीभाषी समाज जँ आजुक सैकड़ों कवि आ साहित्यकार सँ सवाल पूछब त अहाँ केँ सही-सटिक-समुचित जवाब नहि भेटि सकत। लेकिन छूछ वाहवाही आ किछु विज्ञजन खोंचकुमार-पेंचकुमार (समीक्षक) लोकनिक लम्बा-चौड़ा योग्यता-दक्षता प्रमाणपत्र जारी कयल अहाँ देखि लेब। जाहिठाम भाव स्पष्टे नहि भेल, ताहिठाम सर्टिफिकेट जारी कय ई सिद्ध करब जे साहित्य ई भेल, त कहू ओ साहित्य हमरा-अहाँक समाज लेल कतेक उपयोगी भ’ सकत? खैर… एखन विशिष्ट व्यक्तित्व परिचय मे हम एतबे कहब जे अपन मिथिलाक ‘जनकवि’ सब बद्रीनाथजी जेकाँ माटि मे लेरहायल संघर्ष कय रहल छथि, हिनका सब केँ ताकि-ताकिकय समाज मे साहित्यक सार्थक सन्देश दैत मैथिली भाषा-साहित्य केँ आगू बढेबाक जरूरत अछि। खाली झूठक वाहवाही आ मुंह पोछबाक कोनो काज कयला सँ एकदम नहि होयत!

हम प्रयास मे छी जे कहियो हिनकर प्रस्तुति सब लाइव मे आनी! देखू कहिया पार लगैत अछि!

हरिः हरः!!