चिन्ता नहि, चिन्तन करूः पठनीय-विचारनीय लेख

लेख

– प्रवीण नारायण चौधरी

चिन्तन करू – चिन्ता नहि करू

चित्त मे जाहि बातक उच्चारण बेर-बेर होइत रहैछ, वैह सहज भाषा मे चिन्तन थिक। आ चित्त मे शंका-अविश्वासक चलते जे डर होइछ से चिन्ता छी। चिन्तन सदैव सुन्दर सोच-विचार आ सकारात्मकता प्रदान करैछ, तेँ सुख-शान्तिक घर छी। चिन्ता सदैव भय-दुविधा आ नकारात्मकता उत्पन्न करैछ, तेँ दुःख आ अशान्तिक कारक छी। सतर्क होउ।

हालांकि ई दुनू बात मानवीय स्वभाव मे अछि, जे स्थितप्रज्ञ होयब ओ दुनू बात मे समःस्थितिक धारण करब। मुदा से कठिन छैक सभक लेल। तेँ चिन्तन पर बेसी ध्यान दियौक। चिन्ता जहाँ हो त सावधान भ’ गेल करू।

चिन्तन बड कठिन नहि छैक। बस, मोन पवित्र रहय आ नीक-नीक बात उचरैत रहय, भ’ गेलय चिन्तन।

चित्त मे कदापि गलत आ अशुभ सोच नहि आबय, सेहो प्रयास करैत रहबाक चाही। विगत मे कहने छी जे कर्म सिद्धान्त अनुसार स्वयं केँ कर्म प्रति उन्मुख रखबाक चाही।

यज्ञ करबाक भाव मे सदिखन कर्तव्य-कर्म करैत रहबाक चाही। महान आ श्रेष्ठ-आदर्श पुरुषक अनुकरण करैत रहबाक चाही। कर्महि अनुसार ई चिन्तन सम्भव होयत। तेँ कर्म-सिद्धान्त खुब नीक सँ बुझल करू। (पढ़बाक हो त एहि लिंक पर पढ़ि लेबः https://maithilijindabaad.com/?p=21938 )

कोनो वस्तुक इच्छा होयत, जँ अपना लग नहि अछि या फेर जेहो अछि सेहो हरेबाक डर अछि – कोनो काज पूरा होय मे देरी होबय लागल – एहि सब स्थिति मे मोन बड परेशान भ’ गेल करैत छैक। एकरे चिन्ता कहैत छैक। एहि मे मन-बुद्धि दुनू अशान्त भ’ जाइत छैक। चित्त अपन सामान्य स्थिति सँ नीचाँ खसय लगैत छैक। ऊर्जा सेहो अधोगति मे बहय लगैछ।

जखन मोन मे कोनो विचारक मनन सँ एकाग्रता, शान्ति, उत्साह आ प्रेमक भाव आबय लागल त ओ चिन्तन कहाइत अछि। एहि मे मन आ बुद्धि सूक्ष्म होबय लगैछ आ चित्त सेहो अपन सामान्य अवस्था सँ उपर उठि उर्ध्वगति केँ प्राप्त होबय लगैछ।

गुरुक वचन आ शास्त्र-पुराणक गूढ़ रहस्य सब केँ जखन बुझबाक या सोझरेबाक कोशिशक क्रम मे जखन हम सब मनन करय लगैत छी, एकरो चिन्तन कहल जाइछ।

चिन्ता सँ तनाव भेल करैछ। आजुक भौतिकतावादी संसार मे यैह चिन्ताक कारण कतेको रास नव रोग मानव संसार मे प्रवेश कय गेल अछि। गये दिन लोक एहि चिन्ता-तनावक कारण हृदय रोग आ हृदयाघात अथवा मस्तिष्काघात केर शिकार भ’ गेल करैछ।

विज्ञजन कहैत छथि जे चिन्ता या तनाव दुइ तरहक होइत अछि। पॉजिटिव आ निगेटिव। पॉजिटिव मे हम सब हरेक बात मे अच्छाई तकैत छी, जाहि सँ विचार मे खुलापन अबैत अछि आ हृदय केँ सुकून-आराम भेटैत अछि। एहि सँ क्रिएटिविटी बढ़ैत अछि आर आगू बढ़बाक लेल नव-नव रास्ता सेहो खुलि गेल करैत अछि। एकरे सकारात्मक तनाव कहल जाइत छैक। निगेटिव मे हमरा लोकनि सब बात मे खराबी तकैत रहैत छी, चाहे ओ हमरा सभक भलाइये लेल कियैक न हो! एकरा नकारात्मक तनाव या चिन्ता कहल जाइत छैक। एहि चिन्ता सभक कारण अछि हमरा लोकनिक इच्छा (desires) । जतेक बेसी इच्छा होयत, ओतबे बेसी चिन्ता सँ भरब।

आध्यात्मिकता मे जखन हम सब ईश्वर केँ याद करैत छी तखन अपन असल स्वरूपक बारे मे विचार करैत छी। अगर जीवन मे चिन्ता केँ कम करबाक अछि त अपन बढ़ैत इच्छा सब केँ कम करय पड़त आर चिन्तन बढ़ाबय पड़त। जतेक चिन्तन बढ़त, ओतबे चिन्ता कम होइत जायत। कियैक तँ चिन्तन हमरा सब केँ जिनाय सिखबैत अछि आ चिन्ता हरेक क्षण मे मारैत रहैत अछि।

लगे हाथ एकटा दृष्टान्त उदाहरण रूप मे राखय चाहब। राजा जनक राजकुमारी सीताक लेल वर चयन-वरण हेतु भारी प्रण कय लेने रहथि। चूँकि सीता कुमारिकाल मे शिवधनुष केँ अपन बामा हाथ सँ उठाकय भगवतीक घर निपि रहल छलीह, पिता जनक ई दृश्य देखि अपन सुपुत्रीक गुणवती ओ शक्तिसम्पन्न कन्या हेबाक बात बुझि गेल रहथि, तेँ ओ बड़ा भारी संकल्प कय लेने छलाह। मुदा एहि पृथ्वीक अनेकों राजकुमार आ शक्तिवान-सामर्थ्यवान पुरुष जखन हुनकर संकल्प केँ पूरा करबाक स्थिति मे नहि देखेलथि, तखन राजा जनक सहित समस्त मिथिलालोक बड़ा भारी चिन्ता मे डूबि गेल छल। राजा जनक तँ भरल सभा मे एहि भूमण्डलक समस्त महीप (राजा) लोकनि केँ ललकार-फटकार तक दय देलखिन्ह। मुदा सीता ताहि क्षण चिन्तन करय लगलीह। ओ बेर-बेर श्रीराम केँ देखथि त हुनका ई विश्वास बढ़नि जे ई राजकुमार निश्चित हमर पिताक प्रण केँ पूर्ण करता। एतहि ई महान उक्ति – “जेहि के जेहि पर सत्य सनेहु, सो तेहि मिलेहि न कछु सन्देहु” – महाकवि तुलसीदास बड नीक सँ एहि चिन्ता आ चिन्तनक स्थिति केँ रामचरितमानस मे फरिछेने छथि।

आर बेसी नहि कहबाक अछि, रामचरितमानसक धनुष भंग प्रसंग सब कियो नीक सँ पढ़ब, मनन करब आ देखब जे चिन्ता आ चिन्तनक बीच जे मिहिन फर्क छैक तेकरा हम सब नीक सँ बुझिकय अपन मानव जीवन तदनुसार सफलतापूर्वक जिबय जाय। अस्तु! ॐ तत्सत्!!

हरिः हरः!!