स्वाध्याय
– प्रवीण नारायण चौधरी
प्रथम सोपान अर्थात् बालकाण्ड केर विभिन्न अध्याय केर मोतीक दर्शनोपरान्त आब हमरा सब दोसर सोपान अयोध्याकाण्ड मे प्रवेश कय रहल छी। एक बेर फेर मोन पाड़य चाहब जे उद्देश्य एतबे अछि कि मानवीय जीवन लेल वरदान ‘रामचरितमानस’ मे देल गेल उत्कृष्ट उदाहरण आ सहज शिक्षा केर लाभ हम समस्त मैथिल मानव केँ प्राप्त हुए मैथिली मे।
रामचरितमानस मोती
द्वितीय सोपान-मंगलाचरण
यस्यांके च विभाति भूधरसुता देवापगा मस्तके
भाले बालविधुर्गले च गरलं यस्योरसि व्यालराट्।
सोऽयं भूतिविभूषणः सुरवरः सर्वाधिपः सर्वदा
शर्वः सर्वगतः शिवः शशिनिभः श्री शंकरः पातु माम्॥१॥
जिनकर अंक मे हिमाचलसुता पार्वतीजी, मस्तक पर गंगाजी, ललाट पर द्वितीयाक चन्द्रमा, कंठ मे हलाहल विष और वक्षःस्थल पर सर्पराज शेषजी सुशोभित छथि, ओ भस्म सँ विभूषित, देवता लोकनि मे श्रेष्ठ, सर्वेश्वर, संहारकर्ता आ भक्त लोकनिक पापनाशक, सर्वव्यापक, कल्याण रूप, चन्द्रमाक समान शुभ्रवर्ण श्री शंकरजी सदा हमर रक्षा करथि।
प्रसन्नतां या न गताभिषेकतस्तथा न मम्ले वनवासदुःखतः।
मुखाम्बुजश्री रघुनन्दनस्य मे सदास्तु सा मंजुलमंगलप्रदा॥२॥
रघुकुल केँ आनन्द देनिहार श्री रामचन्द्रजीक मुखारविंद केर जे शोभा राज्याभिषेकहु केर बात सुनिकय नहि तँ प्रसन्नता केँ प्राप्त भेला आर नहिये वनवास केर दुःख सँ मलिने भेल, ताहि मुखकमलक छबि हमरा लेल सदा सुन्दर मंगल दयवला हुए।
नीलाम्बुजश्यामलकोमलांग सीतासमारोपितवामभागम्।
पाणौ महासायकचारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम्॥३॥
नील कमल समान श्याम आर कोमल जिनकर अंग छन्हि, श्री सीताजी जिनकर वाम भाग मे विराजमान छथि आर जिनकर हाथ मे क्रमशः अमोघ बाण व सुन्दर धनुष अछि, ओहि रघुवंशक स्वामी श्री रामचन्द्रजी केँ हम नमस्कार करैत छी।
दोहा :
श्री गुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि॥
श्री गुरुजी केर चरण कमलक रज सँ अपन मनरूपी दर्पण केँ साफ कयकेँ हम श्री रघुनाथजी केर ओहि निर्मल यश केर वर्णन करैत छी जे चारू फल धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष केँ दयवला अछि।
१ जहिया सँ श्री रामचन्द्रजी विवाह कयकेँ घर अयलाह तहिया सँ अयोध्या मे नित्य नव मंगल भ’ रहल अछि आर आनन्दक बधावा सब चहुँदिश बाजि रहल अछि।
२. चौदह लोकरूपी भारी पर्वत पर पुण्यरूपी मेघ सुखरूपी जल बरसा रहल अछि। ऋद्धि-सिद्धि और सम्पत्तिरूपी सुहाओन नदी सब सेहो उमड़ि-उमड़िकय अयोध्यारूपी समुद्र मे मिलि गेल अछि।
३. नगर के स्त्री-पुरुष खूब उच्चकोटिक मणि केर समूह बनल छथि जे सब प्रकार सँ पवित्र, अमूल्य और सुन्दर छथि। नगर केर ऐश्वर्य किछु कहल नहि जाइछ। एना बुझाइत अछि मानू ब्रह्माजीक कारीगरी बस एतबहि टा होइन्ह। सब नगर निवासी श्री रामचन्द्रजी केर मुखचन्द्र केँ देखि सब तरहें सुखी भ’ गेल छथि।
४. सब माता लोकनि आ सखी-सहेली सब अपन मनोरथरूपी बेल केँ फरल देखि खूब आनन्दित छथि।
५. श्री रामचन्द्रजीक रूप, गुण, शील और स्वभाव केँ देखि-सुनि राजा दशरथजी सेहो खूब आनन्दित छथि।
हरिः हरः!!