अक्षय आनन्द सन्नी।22अक्टूबर, 2022।मैथिली जिन्दाबाद!! दियाबाती मने ओ तिथि जहिया पाहुन श्रीराम वनवाससँ अयोध्या घूरल छलाह आ लोक उल्लासमे घीकेर दीप जरओने छल । से दीप, आइयो जराइए रहल अछि लोक । मुदा रामक सासुर, सीताक नैहर अर्थात् मिथिला लेल दियाबातीक अर्थ मात्रे दीप जरायब नहि थिक। दियाबाती, एहिठाम गिरहस्थीक पाबनि थिक । दियाबाती, अपन पुरखाकेँ विदा करबाक एकटा परिपाटी थिक। दियाबाती, दरिद्राकेँ डाहि, अनधन लछमीकेँ हकारि घर बजेबाक तिथि थिक । असलमे दियाबातीकेँ दिवाली आ दीपावली सेहो कहल जाइत छैक। मुदा मिथिला लेल ई सुखराती अछि अर्थात् सुखक राति। कारण कहल जाइत छैक जे एहि रातिमे मा लछमी धरतीपर आबि भ्रमण करै छथि आ चिक्कन चुनमुन स्थान देखि ओतय वास करै छथि। तेँ ने हमरा लोकनि दियाबातीक मास भरि पहिनेसँ अपन घर-दुआरि, दुरा-दरबज्जा, अड़ोस-पड़ोसक सर-सफाइयक संग निपिया-पोतिया करैत छी। से अपना ओहिठाम एहि दियाबातीक लाथे अनधन लछमीकेँ अपना घर हकारि अनबाक अद्भुत परिपाटी रहल अछि। मिथिलामे घरही ऊक फेरबाक परंपरा, एकरे एकटा उदाहरण अछि । कहल जाइत छैक जे सभसँ पहिने अंगराज कर्ण ऊक फेरने छलाह। ऊक असलमे ख’ढ़क बनायल एकटा मनुक्खक आकृति थिक, जाहिमे पाँच ठाम बन्हन होइत छैक आ ख’ढ़क भीतरमे संठी अर्थात सनपटुआक डाँट देल जाइत छैक। दियाबातीक सांझ गोसाउनि घरक दुआरि आकि मुँहपर अरिपन लिखल जाइत छैक, ताहिपर कलश बैसा तकरा उपरमे दीप जराओल जाइत अछि। ततहि वामाकात उनटाक’ राखल उखरिपर सूपमे पानक पात, सुपारी आ धान राखल जाइत छैक। घरक पुरूख पात कलशपर राखल दीपक सहियोगे ऊक लेसै छथि आ अपन डीहपर आकि डीहक चौबगली तीन बेर ऊक फेरै छथि आ संगहि सूप महक धान मुठ्ठीमे ल’ घर सभमे छीटैत कहै छथि- अनधन लछमी घर आउ, दरिदरा बहार हो । ऊक फेरलाक पछाति आधा जरल ऊककेँ बारी-झाड़ी आकि चास-वासमे गाड़ि देल जाइत आ बीचमे देल संठी निकालि लेल जाइत अछि। वैह ल’ घरक दाइ-माइ लोकनि भोरहरबामे सूप पीटै छथि। कहल जाइत छैक जे सूप पीटलासँ दरिदरा पड़ा जाइत अछि। फेर अधजरल संठीकेँ जोगाक’राखि लेल जाइत छैक। कारण, यैह संठीसँ लवान दिन आगि लेसल जाइत छैक। दोसर अर्थमे कही त’ ऊक फेरबाक एहि प्रकियामे मुठ्ठी महक धान छीटब अनधन लछमीकेँ घर अयबा लेल हकार देब थिक त’ ओतहि ऊक भांजब अपन पितर लोकनिक प्रति पितृ कर्म थिक। मान्यता छैक जे पितृपक्षमे धरतीपर आयल पितर लोकनिकेँ यैह दियाबातीक राति ऊक फेरि विदा कयल जाइत अछि। कहल इहो जाइत छैक जे जे कियो पुरखा मरि गेल छथि आ हुनक दाह-संस्कार नीक जकाँ नहि भेलनि, जिनक आत्मा एखनो भटकिए रहल छन्हि। हुनका लोकनिकेँ परमगति प्राप्त होनि, सैह प्रार्थना ऊक फेरब थिक। से बहुतो ठाम ई ऊक वैह पुरूख फेरै छथि जिनक पिताक देहावसान भ’ गेल छन्हि। लोकक मानब छैक जे ऊकक इजोतक सहारे पितर लोकनि धरतीसँ स्वर्गक लेल प्रस्थान क’ जाइ छथि। से ई ऊक फेरब असलमे पितर लोकनिक प्रति प्रकाश तर्पण करब थिक। सहज अर्थमे कही त’ हमरा लोकनि एहि लोक परंपराक माध्यमे पुरखाकेँ प्रकाश दान करैत छी। ओतहि जँ ऊककेँ वैज्ञानिक दृष्टिएँ देखी त’ जानकार लोकनिकेँ कहब छैक जे सनपटुआक डाँट जरेलासँ अल्प मात्रामे कार्बन डाइऑक्साइड बहराइत अछि, जाहिसँ बैक्टीरियाक संग कीड़ा-मकोड़ा मरैत अछि आ वातावरणमे सेहो अपेक्षाकृत कम प्रदूषण पसरैत छैक। दियाबातीमे जतय सगर देश-दुनिया फटक्काकेँ प्राथमिकताक संग लैत रहल अछि ओतहि मिथिलामे अदौसँ दियाबातीक सिंगार हुक्का-लोली रहल अछि। हालांकि बदलैत समयक संग हुक्का लोली कतौ हेरा गेल । मुदा एखनो किछु गाम हुक्का लोलीक परंपरामे प्राण फुंकि रखने अछि। हुक्का लोली मुख्य रूपसँ बाँसक सुपतीकेँ करचीमे गाँथि बनायल जाइत छैक। दियाबातीसँ एक मास पहिनहेसँ लोक खासक’ नेना-भुटका सुपतीक सरंजाममे लागि जाइत छलाह। आ दियाबातीक राति एहिमे आगि लगा भंजैत छलाह आ आनंदित होइत छलाह। तहिना अपना मिथिलामे दियाबातीमे गेनी भंजबाक परंपरा सेहो रहल अछि। गेनी तारमे कपड़ा लपेटिक’ बनायल जाइत छलैक फेर ओकरा घंटा दू घंटा मटिया तेलमे बोरलाक पछाति लेसल जाइत छल आ धीया-पुता सभ ओकरा भंजैत एक टोलसँ दोसर टोल धरि जाइत छल। हुक्का लोली आकि गेनी भंजैत काल अक्सरहाँ ठोरपर एकटा फकड़ा नचैत छलैक- हुक्का लोली भांजै छी, मच्छरकें झड़काबै छी। से ठीके, पहिने दियाबातीक बाद गामघरमे मच्छरक प्रकोप घटि जाइत छलैक। एकर अतिरिक्त मिथिलाक लोक नम्हर छीपगर बाँसमे डिबिया बान्हि अकासदीप सेहो लेसैत रहला अछि। मुदा आधुनिकताक तेहन ने बिहाड़ि उठलैक जे दियरिसँ ऊक धरि, हुक्का लोलीसँ गेनी धरि सभटा लगैए कतौ हेरा गेलैक। से बिजलीसँ चालित भुकभुकिया ब’लक इजोत आ कानफाड़य बला बमसँ बहरायल धुँआ आकि बारूदक गन्ह बीच ताकब दुरूहे नहि असंभव सन लगैत अछि। तखन त’ दिन घुरबाक भरोस करैत एतबे कहल जा सकैए जे-
“दीयाबातीमे प्रीत सजाबी एमकी
आउ मुसकीक दियरि जराबी एमकी”
अपने लोकनिक ठोरपर सेहो एहि दियाबाती मुसकीक दीप जरए ताहि शुभकामनाक संग…
रिपोर्ट साभार: Mithila Chapter
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