विशेष संपादकीय
मैथिली-मिथिलाक कोनो कार्यक्रम होयत तऽ स्वाभाविके ओतय विशिष्ट विद्वानक बेसी उपस्थिति होयत। संयोगवश जँ आम जनता ओतय पहुँचि गेल तऽ मंत्रमुग्ध होइत सबहक मुंह सँ बहि रहल अमृत पीबि एतेक तृप्त होइत अछि जेकरा बखानय लेल शब्द कम पड़ैत अछि। एहि बीच किछु मानसिकता एहनो रहैछ जे सभा मे खाली कुर्सी दिशि ताकि हतोत्साह होइत अछि। ओ अभिव्यक्त करैत अछि, दु:ख प्रकट करैत अछि, आरो बेसी लोकक सहभागिताक अपेक्षा रखैत अछि। मुदा यथार्थत: भीड़क महत्त्व एहि सभा लेल नहि छैक। सनातन पहिचानक धनी मिथिला आइ युगों-युगों धरि जीवित छैक तऽ एकरा कोनो भीड़ नहि, आध्यात्मिक पहिचान जीवित रखने छैक।
भीड़ लेल बाइजीक नाच कराउ, बानर-भालूक नाच कराउ, साँप-छुछुन्दरक खेल कराउ, तारी-दारू-अफीम लुटाउ, आदि-आदि बहुत काज एहेन छैक जाहि मे भीड़ बजाबहो नहि पड़ैत छैक… चौक-चौराहा पर ई सब शुरु करब कि अपने-आप भीड़ लागि जायत। आइ-काल्हि नेता सब अपन वर्चस्व देखेबाक लेल भाड़ा पर भीड़ एकट्ठा करैत अछि। पंचायत सँ लैत जिला परिषद् धरि अही टा बातक होड़ रहैत छैक जे कोन सदस्य कतेक गाड़ी भैर कय आनि सकल रैली मे। कय गो ट्रेनक डिब्बा मे बलधकेल बेटिकटी आ रिजर्वेशनवलाक कोण मे ठेल-ठालिकय पटना-दिल्ली पहुँचि सकल।
परिणाम कि होइत छैक? कि ई हमरा कहय पड़त? अहाँ स्वयं नहि देखैत छियैक? अफरातफरी – गारा-गारी आ वर्चस्वक लड़ाई मे कतेको निर्दोष-गरीबक खून – यैह तऽ थिकैक वर्तमान भीड़तंत्र! अहाँ यदि सुच्चा सेवाभाव सँ मातृभूमि व अपन समाज तथा राष्ट्र लेल किछु करय चाहैत छी तऽ भीड़ कम आ समर्पण बढेबाक प्रयास मे लागू। भीड़ केँ जुटेबाक लेल भौतिकतावादी लफड़ा-झगड़ा सँ नितान्त दूर ओहेन कार्य करू जाहि मे लोक कमो रहत मुदा संवेदनशील आ सचेतनशील रहत। ओकर परिणाम बहुत दूरगामी हेतैक।
मैथिली वा मिथिला लेल वर्तमान समय ओ साधन छहिये नहि कतहु जे भीड़ भेटत। जे छहियो, ओ आपसे मे विष-वमन करैत रहैत छैक। अपना केँ सब संत बुझलक, दोसर केँ असंत। यैह तऽ अवस्था छैक। आब न कियो विदेह, न कियो जनक, न कियो विद्यापति, न कियो वाचस्पति, न कियो भामती, न कियो भारती, न कियो गार्गी…. बस छूछ-दुलारक समय मे ‘अपन मोने मियां मुँह मिट्ठू’ केर परिस्थिति विद्यमान् छैक।
जँ सच्चा पुत्र बनिकय माय-बाप प्रति सिनेह छलका सकैत छी, तहिना मातृभूमि आ मातृभाषाक प्रति समर्पण राखि सकैत छी। अपन कर्म पर बल दियौक। दोसराक चरित्र-चित्रण करब बिसैर जाउ। मिथिला मे जतेक जन्मलैक, जेकरा-जेकरा एतुका पानि पियब नसीब भऽ रहलैक अछि, ओकरा ऊपर जानकीक विशेष कृपा छैक। अहाँ के होइत छी अनावश्यक दोसरक चिन्ता मे अपना केँ गलेनिहार…? बेकार अछि ई सब! एतीकाल जँ एकटा छोट कार्य कय दितियैक तऽ चौजुगी नाम होइतय। नामे लेल काज करैत छी, पदे लेल काज करैत छी, तैयो कीर्ति स्थापित करहे टा पड़त।
मिथिला निर्माणार्थ कर्मठ पुत्र बनब बहुत जरुरी अछि!!