नेपालक प्रदेश 1 में मैथिली के उपेक्षा पर भारी विरोध

प्रदेश १ के एकल भाषा नीति

मैथिली भाषाभाषी विभिन्न संस्था द्वारा विरोध प्रदर्शन

मैथिली स्रष्टा लेल पृथक् सम्मान समारोह के आश्वासन

विराटनगर मे पत्रकारिता के स्तर पर सवाल उठल अछि। प्रदेश १ सरकार के पर्यटन तथा संस्कृति मंत्रालय द्वारा २०७९ सालक चयनित स्रष्टा व नवोदित प्रतिभा केँ देल गेल सम्मानक सूची मे मैथिली भाषाक उपेक्षा करबाक विरोध मे कयल गेल प्रदर्शनक समाचार कोनो मुख्य खबर पत्रिका (दैनिक) मे प्रकाशित नहि भेल अछि।

आवर विराटनगर, मकालू, अन्नपूर्ण, जेन-१, हिपमत आदि केँ छोड़ि बाकी पत्र-पत्रकिका लेल हमरा सभक मांग जे मैथिलीक स्रष्टा केँ समावेश करैत प्रदेश सरकार द्वारा सम्मान-पुरस्कार वितरण कयल जाय, एहि विषय पर संचार क्षेत्र मे समाचार सम्प्रेषण करब जरूरी नहि बुझलनि।

हम सब विनम्रतापूर्वक ई मांग सभक सामने राखय चाहब जे एना खुलेआम विभेद के पृष्ठपोषण नहि करय जाउ। जे गलती छैक तेकरा गलती मानैत सुधार लेल कि हेबाक चाही ताहि पर कलम जरूर चलाउ। शान्तिपूर्ण ढंग सँ कयल गेल मांग केँ एना यदि कलमवीर वर्ग सेहो उपेक्षित करैत छी त सन्देह पसरैत अछि जे कहीं अहाँ सब सिर्फ बाँसक भाटा आ लाठी-फठ्ठा वला उपद्रवी-हिंसक आन्दोलन के बात मात्र त नहि बुझैत छियैक!

विडम्बना केहेन आ केना छैक तेकर पता लगेनाय संचारकर्मी लोकनिक कार्य थिक। जानकारी दी जे काल्हिक विरोध कार्यक्रम बीच सम्मान-पुरस्कार निर्णय समिति के संयोजक गणेश रसिक जे जानकारी करौलनि से चौंकाबय वला छल। ओ कहलनि जे ई सम्मान-पुरस्कार लेल सिर्फ एक भाषा ‘नेपाली’ केर सृजनकर्म मे लागल लोक केँ चयन करबाक अधिकार मंत्रालय दिश सँ देल गेलनि।

मंत्रालय केर सूचना वला पत्र मे लिखल अछि जे ‘प्रदेश १ मा रहेर भाषा, साहित्य, कला तथा संस्कृति क्षेत्रमा योगदान पुर्याउने…’ अर्थात् प्रदेश १ मे रहनिहार आ भाषा, साहित्य, कला तथा संस्कृतिक क्षेत्र मे योगदान देनिहार केँ प्रदेश सरकार द्वारा सम्मान आ पुरस्कार वितरण कयल जायत। ७ गते आषाढ़ जारी कयल सूचना मे ७ दिन के समय दैत नामक सिफारिश पठेबाक जानकारी करायल गेल छल। सूचना सम्प्रेषण विधिवत् कोनो समाचारपत्र मे सेहो कयले गेल होयत, तथापि मंत्रालय केर कर्तव्य बनैत अछि जे मैथिली के प्रतिनिधित्व करयवला संस्था व सरोकारवाला सब केँ सूचना दैत मैथिली के स्रष्टा केँ समेटितथि। विगत मे एहिना कयलनि सेहो। लेकिन एहि वर्ष ई चूक जानि-बुझि कय कयलनि अछि।

निर्णय समितिक संयोजक गणेश रसिक के कथनानुसार नेपाली वाहेक अन्य केँ मातृभाषा वर्ग मे राखल जाइछ आ ताहि लेल प्रदेश सरकार किंवा मंत्रालय सँ कोनो तरहक कार्यादेश नहि देल गेल छल, तेँ मैथिली भाषाक सर्जक-स्रष्टा एहि सूची मे छुटि गेलथि। आगामी समय मे मंत्रालय सँ सहकार्य करैत मैथिली भाषाक सर्जक-स्रष्टा लेल अलगे सँ सम्मान कार्यक्रम के सुझाव ओ देलनि। सवाल उठैत छैक जे संविधान नेपाली सहित सब मातृभाषा केँ राष्ट्रिय भाषाक दर्जा देने अछि। संघीय संरचना मे प्रदेश केँ १ सँ अधिक भाषा केँ प्रदेशक कामकाजी भाषा बनेबाक लेल भाषा आयोग के प्रावधान कयलक। भाषा आयोग सेहो प्रदेश १ के वास्ते नेपाली पछाति मैथिली आ लिम्बू भाषा केँ सरकारी कामकाज के भाषा बनेबाक सिफारिश कय चुकल अछि। ओहुना प्रदेश केर गठन एकल भाषा सँ ऊपर सभक लेल आ समावेशिकता केँ विशेष ध्यान रखबाक लेल भेल अछि। लेकिन मैथिली संग ई विभेद खुलेआम तानाशाही आ दमन थिक। शासक वर्गक मनोदशा आ मानसिकता केँ ठाढ़े-ठाढ़ नंगा कयलक अछि। संविधानक भावना विपरीत एखनहुँ एकलौटी राज्यक सम्पूर्ण संसाधन पर एकाधिकार रखबाक एहि सँ बेसी दुर्दान्त उदाहरण दोसर की?

हरिः हरः!!